अखिलेश अखिल
राजनीति कब अपना रुख बदल दे और कब उस पर नया चढ़ जाए यह कोई नहीं जानता. कौन नेता कब दगा दे दे और कौन नेता किसी के लिए तारणहार बन जाए, इसे भी कौन जाने ! यही वजह है कि राजनीति को सम्भावनानो का खेल कहा गया है. यह सत्ता का धंधा है जिसका कोई चरित्र नहीं होता. नेताओं के जो बयान जनता के सामने आते हैं वो हाथी के दांत के समान होते हैं और जो बातें पेट में दबी रहती हैं उसपर खेल किया जाता है. चरित्रहीन राजनीति पर आप सवाल उठाते रहिये लेकिन उसका चरित्र कभी धवल नहीं होता.
ये तमाम बातें इसलिए कही जा रही है कि बिहार इस बार फिर से सियासी खेल का अखाड़ा बनता दिख रहा है. राजधानी पटना में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अपनी नई सियासी पार्टी के नाम का गुरुवार को एलान करने वाले थे. मगर अब पीके ने कहा है वह अभी बिहार में नई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाएंगे, पीके ने कहा कि पहले वह बिहार में तीन हजार किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे, लोगों से मिलेंगे उनकी राय लेंगे इसके बाद जरूरत पड़ी तो राजनीतिक पार्टी बनाएंगे. एक तरफ पीके के बड़े सियासी खेल की तैयार हैं तो दूसरी तरफ अस्पताल से छूटे लालू प्रसाद की बिहार और प्रशांत पर पैनी निगाह है. उधर बीजेपी की बिहार इकाई को लग रहा है कि प्रशांत ने पार्टी बना ली तो उसके सवर्ण मतदाता खिसक सकते हैं इसलिए बिहार में प्रशांत की भूमिका के लिए बीजेपी नेता सुशिल मोदी कोई जगह की सम्भावना से इंकार कर रहे है. दिल्ली में भी लालू प्रसाद पीके की भूमिका को नकार रहे हैं लेकिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार पीके के आगमन पर मौन हैं और उस मौन में मुस्कराहट भी.
सबसे पहले बीजेपी के बड़े नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ट्विट करके पीके के एलान से पहले ही कह दिया कि बिहार में किसी नई पार्टी के लिए न कोई जगह है और न कोई संभावना है. उन्होंने कहा कि बिहार में पहले से चार पार्टियां हैं और उन्हीं के बीच राजनीति घूमती है. सवाल है कि पीके की सियासी तैयारी से बीजेपी की बेचैनी का क्या कारण है? क्या बीजेपी को लग रहा है कि पीके की ये तैयारी उसका वोट काट सकती है और जदयू के साथ गठबंधन में बीजेपी की जगह ले सकती है?
इधर, बुधवार को एम्स से डिस्चार्ज होने के बाद लालू प्रसाद यादव से जब प्रशांत किशोर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए इसका जवाब दिया. आरजेडी सुप्रीमो ने कहा, ‘प्रशांत किशोर सारे देश से घूमकर आ गए हैं. उन्हें लोगों ने लौटा दिया. अब वहीं पहुंचे हैं, जहां उनका कोई ठिकाना नहीं रहेगा.’ और पीके के सवाल पर नीतीश जब सवाल किया गया तो वो मौन हो गए. कुछ भी नहीं बोले. इस सब के इतर बिहार में जदयू और बीजेपी के बीच बहुत कुछ होता दिख रहा है. लेकिन सब मौन हैं. आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की अपनी दुदुम्भी है तो गैर बीजेपी दलों का अपना शंखनाद. इस खेल में नीतीश कुमार भी एक पात्र हैं लेकिन वो बोलते कहाँ ! वो मौनव्रत में रहकर ही खेल कर जाते हैं. किसी को पता भी नहीं चलता. जब पता चलता है तबतक गेम पूरा हो चुका होता है. बिहार की राजनीति आज इसी मुहाने पर है.
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने गुरुवार को अपनी आगे की रणनीति का खुलासा किया. उन्होंने ऐलान किया है कि वह अभी बिहार में नई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाएंगे. पीके ने कहा कि पहले वह बिहार में तीन हजार किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे. लोगों से मिलेंगे उनकी राय लेंगे इसके बाद जरूरत पड़ी तो राजनीतिक पार्टी बनाएंगे. हालांकि उन्होंने दो मई को ट्वीट कर कहा था कि वो बिहार से ‘जन सुराज’ की शुरुआत करेंगे. इसके बाद से बिहार में चर्चा शुरू हुई कि क्या प्रशांत किशोर कोई राजनीतिक पार्टी बनाएंगे ? या कोई सामाजिक अभियान की शुरुआत करेंगे ?
प्रशांत किशोर ने बिहार में गुरुवार को पदयात्रा का एलान कर एक नए सियासी खेल की बिसात बिछा दी है, हालांकि प्रदेश की जनता उन्हें पहले भी इस अवतार में देख चुकी है. सितंबर 2018 में महागठबंधन को सत्ता में लौटने में मदद करने के बाद पीके जेडी(यू) में शामिल हो गए थे. नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से पुरस्कृत किया था. उन्हें युवा कैडर को सक्रिय करने का काम सौंपा गया था. 2019 के पटना विश्वविद्यालय चुनावों में उन्हें जेडीयू के छात्र विंग की उपस्थिति दर्ज कराने में मदद करने का श्रेय दिया गया.
जनवरी 2020 में पीके को जेडीयू से निष्कासित कर दिया गया. नीतीश कुमार ने कहा कि उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री अमित शाह के आग्रह पर चुनावी रणनीतिकार को पार्टी में शामिल किया था. जेडीयू से निकाले जाने के बाद “बात बिहार की” अभियान शुरू किया. यह सदस्यों के नामांकन के लिए एक ऑनलाइन अभियान था. उन्होंने विकास सूचकांकों का हवाला देते हुए दिखाया कि राज्य अपने समकक्षों से कैसे पिछड़ गया.
राजनीतिक कंसल्टेंसी फर्म I-PAC के एक सूत्र ने कहा: “हमने कुछ लाख से अधिक सदस्यों को प्राप्त करते हुए अभियान को अच्छी तरह से शुरू किया. फिर हम दूसरे असाइनमेंट में फंस गए और चीजें आगे नहीं बढ़ीं. लेकिन अभियान के तहत एकत्र किया गया डेटा अभी भी बहुत महत्वपूर्ण है.”
राजनीति के इस प्रक्षेपण के हिस्से के रूप में, किशोर डॉक्टरों, आरटीआई कार्यकर्ताओं, सेवानिवृत्त शिक्षकों सहित नागरिक समाज के प्रमुख सदस्यों से मिलते रहे हैं. उन्होंने कहा है कि वह एक “साफ रिकॉर्ड” के साथ अच्छे नामों की तलाश कर रहे हैं. उनके द्वारा आयोजित की जाने वाली बैठकों में सहयोगी कथित तौर पर आगंतुकों का बायोडाटा और विस्तृत सुझाव लेते हैं. उनमें से एक आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “एक शुरुआत करनी होगी. यदि प्रशांत किशोर एक वैकल्पिक मॉडल पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें उनका समर्थन करना चाहिए और उन्हें खारिज नहीं करना चाहिए.”