Thursday, December 26, 2024
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समरकंद की बैठक : नाटो के जवाब में बना SCO भारत के लिए अहम क्यों ?

 

15 सितम्बर से उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में SCO की बैठक हो रही है. SCO यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन. इस बैठक में हिस्सा लेने पीएम मोदी खुद समरकंद पहुंचे हैं. बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी पहुंच रहे हैं. एशिया के चार ताकतवर देशों के प्रमुखों के एक मंच पर आने की वजह से एससीओ सुर्खियों में है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर भारत के लिए यह संगठन इतना अहम क्यों है ?

एससीओ का गठन 2001 में हुआ था और इसमें भारत 2017 में शामिल हुआ. यह एक पॉलिटिकल, इकोनॉमिकल और सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन है. भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान समेत इसके कुल 8 स्थाई सदस्य हैं. 1996 में पूर्व सोवियत देशों रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजेकिस्तान और चीन ने मिलकर शंघाई फाइव बनाया था. 2001 में शंघाई फाइव के 5 देशों और उज़बेकिस्तान के बीच हुई मुलाकात के बाद शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी एससीओ का जन्म हुआ.

शुरुआत में एससीओ में छह सदस्य-रूस, चीन, कज़ाकिस्तान, ताजकिस्तान, किर्गिस्तान और उज़बेकिस्तान थे। 2017 में भारत और पाकिस्तान के भी इससे जुड़ने से इसके स्थाई सदस्यों की संख्या 8 हो गई. 6 देश- आर्मीनिया, अजरबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और टर्की SCO के डायलॉग पार्टनर हैं. 4 देश- अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया इसके ऑब्जर्वर सदस्य हैं. अब तक ऑब्जर्वर रहे ईरान को नवंबर 2021 में एससीओ के स्थाई सदस्य के रूप में शामिल किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है.

2001 में अपनी स्थापना के बाद से, एससीओ ने रीजनल सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों, आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई पर ध्यान केंद्रित किया है. एसीईओ के एजेंडे में इसके सदस्य देशों का विकास भी शामिल है.

आबादी और भौगोलिक स्थिति के लिहाज से ये दुनिया का सबसे बड़ा रीजनल ऑर्गेनाइजेशन है. दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों भारत और चीन के इसका सदस्य होने से एससीओ ऐसा संगठन है, जो दुनिया की करीब 40% आबादी को कवर करता है. एरिया की बात की जाए तो यूरेशिया के 60% और दुनिया के करीब एक तिहाई इलाके को यह कवर करता है. ग्लोबल जीडीपी में इसकी करीब 30% में हिस्सेदारी है. साथ ही ये संगठन हर साल खरबों डॉलर का एक्सपोर्ट करता है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत को अगले साल एससीओ सम्मेलन के साथ ही जी -20 की भी मेजबानी करनी है. इसलिए भारतीय अधिकारियों ने समरकंद में होने वाले एससीओ सम्मेलन के नजदीक आते ही चीन को साफ तौर पर कह दिया कि प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में तभी हिस्सा लेंगे, जब वह एलएसी पर अप्रैल 2020 से ही तैनात अपनी सेनाओं को पहले की स्थिति में वापस बुला लेगा. इस मैसेज का असर भी हुआ और एससीओ बैठक से ठीक एक हफ्ते पहले ही 8 सितंबर को चीन ने अपनी सेना को एलएसी में पूर्वी लद्दाख के हॉट-स्प्रिंग्स-गोर्गा इलाके, जिसे पैट्रोलिंग पॉइंट 15 भी कहा जाता है, से हटाना शुरू कर दिया.

दरअसल इस साल जून में ब्रिक्स सम्मेलन के लिए पीएम मोदी चीन नहीं गए थे, जबकि कुछ दिनों बाद वह अमेरिकी अगुआई वाले क़्वाड देशों की बैठक में हिस्सा लेने टोक्यो चले गए थे. लिहाजा चीन नहीं चाहता था कि एससीओ सम्मेलन में मोदी की गैरमौजूदगी से इस संगठन के आपसी मनमुटाव का संदेश दुनिया में जाए. ब्रिक्स ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका समेत 5 देशों का संगठन है.

ये पहली बार नहीं है जब भारत ने एससीओ बैठक के लिए चीन को अपनी बात मानने पर मजबूर किया है. इससे पहले 2017 में भी भारत ने चीन को कह दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स समझौते के लिए चीन के शियामेन नहीं जाएंगे, अगर डोकलाम में चीनी सेनाएं अपनी पहले की स्थिति में नहीं लौटेंगी. चीन ने भारत की बात मानी और मोदी ने ब्रिक्स समझौते के लिए शियामेन की फ्लाइट पकड़ ली.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, एससीओ सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात हो सकती है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ये मुलाकात भारतीय फॉरेन पॉलिसी के लिए बहुत अहम होगी. भारत-चीन के बीच सीमा विवाद गहराने के बाद मोदी-जिनपिंग की ये पहली मुलाकात होगी. इन दोनों नेताओं के बीच आखिरी मुलाकात 2019 में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान ब्रासीलिया में हुई थी. वहीं पुतिन से मुलाकात ऐसे समय में हो रही है, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर दुनिया दो धड़े में बंटी नजर आ रही है. भारत यूएन में रूस के समर्थन के लिए अमेरिका के निशाने पर रहा है. ऐसे में इस मुलाकात पर अमेरिका समेत दुनिया की खास नजर होगी.

पाकिस्तान में इमरान खान के पद से हटने और शहबाज शरीफ के PM बनने के बाद मोदी से ये उनकी पहली मुलाकात होगी. भारत कश्मीर में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की आलोचना करता रहा है. ऐसे में इस बैठक के दौरान मोदी, शहबाज शरीफ के सामने आतंकवाद के मुद्दे को उठा सकते हैं.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एससीओ को लेकर भारत की तीन प्रमुख पॉलिसी हैं : रूस से संबंध मजबूत करना, पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान के दबदबे पर लगाम और जवाब देना और सेंट्रल एशियाई देशों के साथ सहयोग बढ़ाना. एससीओ से जुड़ने में भारत का एक प्रमुख लक्ष्य इसके सेंट्रल एशियाई रिपब्लिक के 4 सदस्यों किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ताजेकिस्तान और उज्बेकिस्तान से आर्थिक संबंध मजबूत करना है. इन देशों के साथ कनेक्टिविटी की कमी और चीन के इस इलाके में दबदबे की वजह से भारत के लिए ऐसा करने में मुश्किलें आती रही हैं.

2017 में एससीओ से जुड़ने के बाद इन सेंट्रल एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापार में तेजी आई है. 2017-18 में भारत का इन चार देशों से व्यापार 11 हजार करोड़ रुपए का था, जो 2019-20 में बढ़कर 21 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया.

इस दौरान भारतीय सरकारी और प्राइवेट कंपनियों ने इन देशों में गोल्ड माइनिंग, यूरेनियम, बिजली और एग्रो-प्रोसेसिंग यूनिट्स में निवेश भी किया. सेंट्रल एशिया में दुनिया के कच्चे तेल और गैस का करीब 45% भंडार मौजूद है, जिसका उपयोग ही नहीं हुआ है. इसलिए भी ये देश भारत की एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिए आने वालों सालों में अहम हैं.

भारत की नजरें एससीओ के ताजा सम्मेलन के दौरान इन सेंट्रल एशियाई देशों के साथ अपने संबंध और मजबूत करने पर रहेंगी.

एससीओ का एक प्रमुख उद्देश्य सेंट्रल एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव का जवाब देना है. कई एक्सपर्ट एससीओ को अमेरिकी दबदबे वाले नाटो के काउंटर के रूप में देखते हैं. 1949 में अमेरिकी अगुआई में बने नाटो के अब 30 सदस्य हैं।एससीओ में शामिल चार परमाणु शक्ति संपन्न देश भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान नाटो के सदस्य देश नहीं हैं. इनमें से तीन देश- भारत, रूस और चीन इस समय अर्थव्यवस्था और सैन्य ताकत के लिहाज से दुनिया की प्रमुख महाशक्तियों में शामिल हैं. यही वजह है कि एससीओ को पश्चिमी ताकतवर देशों के सैन्य संगठन नाटो के बढ़ते दबदबे का जवाब माना जाता है. एससीओ के चार परमाणु शक्ति संपन्न देशों- भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान के पास 6928 परमाणु बम हैं, जबकि अमेरिकी दबदबे वाले नाटो देशों के पास 6065 परमाणु बम हैं.

एससीओ में शामिल भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से कश्मीर मुद्दे को लेकर तनाव रहा है, जबकि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर टकराव रहा है. यही नहीं एससीओ में शामिल चार सेंट्रल एशियाई देशों के बीच भी विवाद रहे हैं. इसलिए ये संगठन दुनिया का सबसे बड़ा रीजनल संगठन होने के बावजूद यूरोपियन यूनियन (जिन देशों की कॉमन करेंसी है) और नाटो जैसा ताकतवर संगठन नहीं बन पाया है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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