अखिलेश अखिल
अगला चुनाव यादगार हो सकता है. पिछले दो लोक सभा चुनाव में मोदी के इकबाल के सामने जमींदोज होता विपक्ष 2024 के चुनाव में जान की बाजी लगाने को तैयार है. अभी नहीं तो कभी नहीं के नारे विपक्षी दलों के सामूहिक नारे बनते दिख रहे हैं. जमींदोज हो चुकी कांग्रेस को भारत जोड़ो यात्रा से काफी उम्मीद है, तो दक्षिण को फतह करने के लिए कांग्रेस के नए सेनापति के रूप में अवतरित मलिकार्जुन खड़गे से कर्नाटक राजनीति में हलचल है. लोग कह रहे हैं कि कर्नाटक में अगर खड़गे ने बीजेपी को आधा दर्जन सीट पर भी हरा दिया तो बीजेपी की दौड़ती राजनीति पर लगाम लग सकता है. खड़गे का असर उत्तर भारत में क्या होगा? अभी इस पर निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि खड़गे हिंदी भाषी भी हैं और हिंदी भाषी राज्यों के सभी नेताओं से उनके मधुर सम्बन्ध हैं. वो लालू, नीतीश, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव, मायावती और यहां तक कि ममता बनर्जी से भी घुले मिले हैं. विपक्ष की कोई एकता बनती है तो वो कमाल की भूमिका अदा कर सकते हैं. खड़गे की पहुँच शरद पवार तक भी है और उद्धव ठाकरे तक भी. वो के.सी. आर और जगन मोहन रेड्डी को भी जानते हैं और नविन पटनायक को भी. और सबसे बड़ी बात वो दलित समाज से आते हैं और दलितों के बीच खड़गे अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए तो अगला चुनाव बीजेपी के लिए एकतरफा नहीं होगा.
लेकिन इस सबके इतर अभी देश की निगाहें दो घटनाओ पर टिकी है. एक घटना है दशहरा के दिन मुंबई के दशहरा मैदान में उद्धव ठाकरे के तकरीर की और दूसरी घटना है कर्नाटक पहुँच चुकी भारत जोड़ो यात्रा में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी की सहभागिता की.
सोनिया गांधी छह अक्टूबर को कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो रही है. वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा सात अक्टूबर को इस यात्रा में शिरकत करेंगी. बताया गया है कि सोनिया गांधी कर्नाटक के मांड्या जिले में छह अक्टूबर को भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा बनेंगी.
हालांकि भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के लिए सोनिया गांधी सोमवार को कर्नाटक पहुंचेंगी. और छह अक्टूबर को यात्रा में शामिल होने से पहले दो दिन कुर्ग में रहेंगी. बताया गया है कि अगर उनकी सेहत ठीक रहती है तो वो दोनों सत्रों यानी सुबह और शाम में पदयात्रा करेंगी. याद रहे सोनिया और प्रियंका इस यात्रा में शामिल हो गई तो इसका बड़ा राजनीतिक सन्देश जाएगा. केरल से लेकर तेलंगाना और तमिल नाडु से लेकर कर्नाटक की राजनीति करवट ले लेगी.
भारत जोड़ो यात्रा से बीजेपी की परेशानी पहले से ही थी और अब जब तमाम बाधाओं को पार करते हुए यह यात्रा जब आगे बढ़ रही है और लगातार लोगों की लम्बी कतारें बढ़ रही है, ऐसे में जब सोनिया गाँधी वहाँ पहुंचेगी बीजेपी की परेशानी और भी बढ़ेगी.
उधर दशहरा मैदान में उद्धव ठाकरे की तकरीर की भी महारष्ट्र के लोग इंतेज़ार कर रहे हैं. ठाकरे क्या कुछ कहेंगे और मराठा मानुष उद्धव के भाषण पर क्या प्रतिक्रिया करेंगे इसको भी देखा जाना है. खासकर बीजेपी और शिंदे गुट की इस पर नजर है. जानकार मान रहे हैं कि आज भले ही बीजेपी और शिंदे की जीत होती दिख रही है लेकिन ठाकरे के सामने शिंदे कही टिकने वाले नहीं है. महाराष्ट्र में अब नया शिवसेना अवतरित हो रहा है जो शिंदे को तो सबक सिखाएगा ही बीजेपी की राजनीति को भी कुंद करेगा. लोग यह भी कह रहे हैं कि शरद पवार निश्चित ही कांग्रेस के साथ मिल कर शिवसेना संग महाराष्ट्र में ग्रैंड चुनावी एलायंस बनाएंगे. देवेंद्र फडनवीज-एकनाथ शिंदे कितना ही दम लगा ले इनकी जोड़ी लोकसभा चुनाव आते-आते दम तोड़ चुकी होगी. लोकसभा की 48 सीटों के महाराष्ट्र में बीजेपी को पिछले चुनाव जितनी सीटे जीतना कतई आसान नहीं होगा.
देश की मौजूदा हालत और बदलते राजनीतिक परिदृश्य से साफ़ लगता है कि अगला चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुत पसीना बहाना पड़ेगा. अपने आप वो हालात बन रहे हैं, विरोधी पार्टियों में वह सब होता दिख रहा है, जिससे सन् 2024 का लोकसभा चुनाव एकतरफा होना संभव नहीं है. लालू यादव वापस राजद के अध्यक्ष हो गए हैं. अखिलेश यादव भी बिना पारिवारिक झंझटों की चर्चा के फिर से पार्टी अध्यक्ष बन गए हैं. इसके कई मायने हैं. और सबसे बड़ी बात जिस तरह से बिहार में नीतीश और बीजेपी के बीच अदावत शुरू हुई है और नीतीश बीजेपी को बाँधने के लिए विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं उससे बीजेपी की परेशानी ज्यादा ही बढ़ गई है. यही वजह है कि अभी गुजरात और हिमाचल में चुनाव होने हैं और अमित शाह लगातार बिहार के दौरे पर जाने लगे हैं. अमित शाह फिर बिहार के छपरा जा रहे हैं. बिहार-झारखंड के नीतिश-लालू यादव, हेमंत सोरेन जैसे चेहरे और उनके साथ छोटी पार्टियों, वामपंथी वोटों, ओबीसी- मुस्लिम- दलित-आदिवासी वोटों का घालमेल दोनों राज्यों की 54 सीटों पर बीजेपी का एक-एक सीट पर मुकाबला बनवा देगा. दस साल के राज के बाद नरेंद्र मोदी अपने जादू, अपने जुमलों, अपने ढोल से चाहे जो शौर और भीड़ बनवाएं उस सबसे आगे लोगों के अनुभव और जमीनी जातीय समीकरण से 2014 और 2019 जैसे नतीजे नहीं आ सकते है. और सबसे बड़ी बात यह परिवर्तन है कि राहुल गांधी के कारण लोगों में जो मनोदशा बनी हुई थी. वह 19 अक्टूबर के बाद तब बदलेगी जब मल्लिकार्जुन खड़गे फ्रंट में आ जाएंगे. खड़गे संगठन को मजबूती प्रदान करेंगे. और विपक्षी एकता को लेकर तैयारी करेंगे और राहुल गांधी देश भर में घूम घूम कर बीजेपी पर हमला करेंगे और सरकार की आर्थिक, सामजिक और विदेशी नीतियों से जनता को रूबरू कराएँगे.
लेकिन राहुल गाँधी केवल बीजेपी पर ही हमलावर नहीं है. उनके जद में तमाम गोदी मीडिया और पत्रकार भी हैं जो देश की सच्चाई से जनता को विमुख किये हुए है. अगर जनता राहुल की बातों को समझ गए तो यह भी तय है कि सत्ता परिवर्तन के साथ ही मीडिया में परिवर्तन भी हो जाए. और ऐसा होता है तो यह भारतीय मीडिया की गिरती साख को बचाने का स्वर्ण काल होगा.