चुनावी राज्य गोवा में हड़कंप है। 14 लाख की आबादी वाले इस छोटे से प्रदेश की 40 विधानसभा सीटों पर कोई आधा दर्जन पार्टियां हरहोड़ मचाये हुए है। सुन्दर ,साफ़ यह राज्य पार्टियों के दलदल में इस दफा किसके हवाले राज्य की बागडोर सौपेगा यह भला किसे पता। राज्य में बेरोजगारी चरम पर है और कोरोना की वजह से पर्यटन उद्योग लगभग ठप। गोवा के युवा अपनी बेवसी के लिए राजनीति को दोषी मानते हैं लेकिन खेल देखिये चुनावी राजनीति के इस तमाशा में वही युवा विभिन्न दलों प्रचारक भी बने हुए हैं। जानकारी मिलती है कि युवाओं को पहले राजनीतिक प्रचार से घृणा थी ,आज पैसे के लिए वह जायज लग रहा है। गोवा में जिस तरह से आधा दर्जन पार्टियां 40 सीटों के लिए मारा मारी कर रही है उससे गोवा का भला तो कुछ नहीं होगा लेकिन खिचड़ी जनदेश की सम्भावना बढ़ गई है। खेल वही है। न खाएंगे न खाने देंगे। इस खेल में अहम् भूमिका निभा रही है टीएमसी और आप पार्टी।
इधर ,दो बाते और गोवा में देखने को मिल रही है। चुनावी झूठ और आडम्बर का प्रभाव गोवा के लोगों पर डालने के लिए उत्तर भारत के बहुत से लोग वहाँ डेरा जमाये हुए हैं। महीने भर पहले से इन उत्तरा भारतियों का डेरा चुनाव तक बना रहेगा। कई लोग दबी जुबान से यह भी कह रहे हैं है कि गोवा अब पहले जैसा नहीं रहा। अब तो यहाँ की संस्कृति भी बदल रही है। और यह सब चुनावी खेल का का नतीजा है। समझ सकते हैं कि गोवा के लोग कहना क्या चाहते हैं।
बीजेपी के लिए झंडा उठाये गोवा की राजधानी पंजी में एक युवा ने कहा कि ” भाई साहब हम राजनीति को पसंद नहीं करते लेकिन अब यही राजनीति की वजह से घर चल रहा है। हम जानते हैं कि सत्ता मिलने के बाद नेता जनता के लिए कुछ भी नहीं करते लेकिन मज़बूरी ये है कि चुनाव होंगे तो डाले जायेंगे। यहां के युवा बेरोजगारी से परेशान है लेकिन कोई कहाँ इसके बारे में सोंचता है। ”
गोवा का समुद्र किनारा वीरान सा है। कोरोना ने लोगों को इतना हड़का दिया है कि विदेशी पर्यटकों ने दो साल पहले से ही यहाँ आना बंद कर दिया था। कुछ देसी लोग यहां सैर सपाटा करने आते थे वह भी बंद है। गोआ का सी बीच राजनीतिक बैठकों का आखड़ा बना है और यहां झंडे -पोस्टर वालो की आवाजाही है। कांग्रेस राजनीति करने वाले एक सज्जन बताते कि ”इस में छोटे से प्रदेश में जितनी सरकार बनी ,किसी ने कोई बड़ा किया। सरकार चाहे तो यहां से बेरोजगारी दूर हो सकती है। कई कारखाने भी लगाए जा सकते हैं। यहाँ के खनन उद्योग को सही किया जा सकता है। लेकिन यहां पक्ष और विपक्ष मिलकर खनन की जो हालत की है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लुटेरों ने सब कुछ लूट लिया और अब सारे खनन बंद पड़े हैं। जब तक यह खनन नहीं खुलता तब तक गोवा का उद्धार मुश्किल है। ”
खानें दोबारा कब खुलेंगी ये सवाल राज्य की 14 लाख आबादी के भविष्य से जुड़ा है और शायद इसीलिए ये आगामी विधानसभा चुनाव का एक अहम मुद्दा है। अगर किसी पार्टी के पास खनन दोबारा खोलने का रोडमैप नहीं है तो उसे वोट मिलने में दिक़्क़त हो सकती है। चुनावी अभियान में सभी राजनीतिक दल सत्ता में आने पर राज्य में खनन फिर से खोलने का बढ़-चढ़ कर दावा कर रहे हैं। लेकिन इसकी सच्चाई भी लोग समझ रहे हैं। यहाँ के लोग यह भी मान रहे हैं कि जब दो दलों बीजेपी और कांग्रेस के बीच लड़ाई थी तब तो इस राज्य का यह हाल है और अब जब आधा दर्जन पार्टियां यह परिक्रमा कर रही है तब इस राज्य का क्या हाल होगा।
याद रहे गोवा में विधान सभा की 40 सीटें हैं। पहले दो राष्ट्रीय और तीन क्षेत्रीय दलों के बीच यहाँ चुनावी लड़ाई होती थी और पार्टी मिलकर सरकार बना लेती थी। लेकिन इस बार तो अलग ही खेल है। आप पार्टी भी यहाँ जमीन तलाश रही है और ममता की टीएमसी भी। इसके अलावे पवार की पार्टी एनसीपी भी है और शिवसेना भी। निर्दलीय भी यहां खूब लड़ते हैं और जीतते भी हैं और बाद में मलाई खूब खाते हैं।
पिछले चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 17 सीटें मिली थी और बीजेपी को 13 सीटें। 3 सीटें निर्दलीय के पास गई थी और सात सीटों पर अन्य दलों का कब्ज़ा हुआ था। लेकिन सरकार बीजेपी की बनी। कांग्रेस ताकते रह गई थी। लेकिन पिछले कुछ महीनो में जो सबसे बड़ा हुआ है वह है टीएमसी का। टीएमसी ने यहाँ लगभग कांग्रेस को ख़त्म ही कर दिया। आज कांग्रेस के पास मात्र दो विधायक बचे हुए हैं। लेकिन अपने तमाम नेताओं को खो कर भी कांग्रेस की हालत अभी भी बेहतर बनी हुई है लेकिन अब कांग्रेस को सबसे ज्यादा कमजोर टीएमसी कर रही है। अगर यहां टीएमसी नहीं पहुँचती तो कांग्रेस की जीत निश्चित थी लेकिन अब ऐसा नहीं कहा जा सकता।
टीएमसी के खेल पर भी शिवसेना सांसद संजय राउत ने बहुत कुछ कहा है। शिवसेना सांसद संजय राउत ने गोवा विधानसभा चुनाव से पहले ‘कांग्रेस विरोधी’ रुख अख्तियार करने के लिए तृणमूल कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए दावा किया कि तटीय राज्य में ममता बनर्जी नीत पार्टी की मौजूदगी से सबसे ज्यादा लाभ भाजपा को होगा।राउत ने कहा कि टीएमसी कांग्रेस समेत अन्य दलों से ‘अविश्वनसीय नेताओं’ को शामिल कर रही है और ऐसा रवैया भाजपा से लड़ने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी को शोभा नहीं देता। उन्होंने दावा किया कि टीएमसी गोवा विधानसभा चुनावों के लिए अत्यधिक खर्च कर रही है और कई लोग कहते हैं कि पार्टी की ओर से खर्च किए गए धन का स्रोत ‘कहीं और’ है। गोवा की मौजूदा स्थिति का जिक्र करते हुए राउत ने कहा कि सभी दलों ने राज्य को ‘राजनीतिक प्रयोगशाला’ बना दिया है।
राउत ने कहा कि गोवा में कांग्रेस के पास मजबूत नेतृत्व नहीं है लेकिन उन्होंने दावा किया कि गोवा का चुनाव जीतना भाजपा के लिए भी आसान नहीं है। सच यही है कि आप और टीएमसी जैसे दल भाजपा की मदद करने के लिए कांग्रेस की राह में रोड़े अटका रहे हैं।
राउत एक नेता के साथ ही एक पत्रकार भी है और देश की हालत को जान भी रहे हैं। ऐसी हालत में एक बात साफ़ है कि बीजेपी से लड़ने की बातें तो कई पार्टियां कर रही है लेकिन सच यही है कि बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ टीएमसी और आप पार्टी एक्टिव है। जिस तरह से 40 सीटों पर मारा मारी है उससे यही कि वहाँ किसी के पक्ष में परिणाम नहीं होंगे। खिचड़ी जनादेश होगा और फिर मिलजुल कर गोवा की लूट की जाएगी। जाहिर है आने वाले समय में इस खेल का लोकसभा चुनाव पर असर पडेगा और बीजेपी की राह आसान हो जाएगी।