अखिलेश अखिल
इतिहास गवाह है कि किसी भी युद्ध का सबसे ज्यादा असर महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है. हर तरह से महिलायें युद्ध की भक्तभोगी बनती है और उसकी अस्मिता भी तार – तार हो जाती है. दुनिया में हुए अधिकतर युद्धों में महिलायें और लड़कियां सबसे ज्यादा शिकार हुई हैं. अभी हालिया संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि यूक्रेन में जारी युद्ध और उसके भोजन, अस्मिता और वित्त पोषण पर हुए वैश्विक असर से महिलाओं और लड़कियों पर अपेक्षाकृत अधिक असर हुआ है.
यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध को लेकर यूएन ने नीतिपत्र जारी किया है. इस नीतिपत्र रिपोर्ट में में कहा गया है कि यूक्रेन में युद्ध के कारण भूख, शिक्षा व निर्धनता के मामले में लैंगिक खाई और अधिक चौड़ी हुई है और लिंग-आधारित हिंसा की घटनाएँ भी बढ़ी हैं. बानगी के तौर पर स्कूली उम्र की लड़कियों की पढ़ाई रोके जाने और उनकी शादी कराए जाने का जोखिम बढ़ा है, चूँकि हताशा में परिवार अपनी गुज़र-बसर के लिये कठिन निर्णय लेने के लिये मजबूर हो रहे हैं. महिलाओं की इज्जत दांव पर लग गई है. महिलाओं ने खाद्य वस्तुओं की क़ीमतों में आए उछाल और उनकी क़िल्लत के कारण अपने भोजन की मात्रा भी घटाई है, ताकि परिवार के अन्य सदस्यों को अतिरिक्त खाना मिल सके.
रिपोर्ट में दर्ज है कि बढ़ती ऊर्जा क़ीमतों के कारण परिवारों के सामने कम ही विकल्प बचे हैं, और इसलिये उन्हें निम्न-टैक्नॉलॉजी वाले जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. इससे महिलाएँ व लड़कियाँ घरों में वायु प्रदूषण का सामना कर रही हैं, जोकि हर वर्ष 32 लाख लोगों की मौत का कारण है. यूएन वीमैन ने अनुमान व्यक्त किया है कि क़रीब दो लाख 65 हज़ार यूक्रेनी महिलाएँ, युद्ध शुरू होने के समय गर्भवती थीं, और उन्हें पिछले कुछ महीनों में शारीरिक व स्वास्थ्य चुनौतियों से गुज़रना पड़ा है.
नीतिपत्र के अनुसार, करीब 37 फीसदी महिला मुखियाओं वाले घर – परिवार युद्ध से पहले ही, करीब 20 फीसदी पुरुष मुखियाओं वाले घरों की तुलना में अधिक खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे. फ़िलहाल, रूसी कब्ज़े वाले इलाक़ों में ग्रामीण महिलाएँ सुरक्षा और संसाधनों के अभाव के कारण खेतीबाड़ी करने में असमर्थ हैं. साथ ही, उन्हें घरेलू विस्थापितों का भी ख़याल रखना पड़ रहा है, जिससे उनके लिये घरेलू कामकाज का दायित्व, व बिना वेतन की देखभाल की ज़िम्मेदारी बढ़ी है.
इस रिपोर्ट ने कई समस्याओं को भी उजागर किया है. रिपोर्ट के अनुसार, लिंग-आधारित हिंसा में चिन्ताजनक वृद्धि हुई है. .भोजन व गुज़र-बसर के बदले यौन सम्बन्ध बनाने, यौन शोषण व तस्करी के मामले ना केवल यूक्रेन बल्कि दुनिया भर में बढ़े हैं, जबकि रहन-सहन के लिये परिस्थितियाँ बद से बदतर होती जा रही हैं. हालत इतनी ख़राब हो गई कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर इस माहौल पर जल्द रोक नहीं लगाया गया तो हालत और भी बदतर हो जायेंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि लैंगिक संकटों के लिये व्यवस्थागत, लैंगिक समाधान चाहियें. इसका अर्थ है, हाशिये पर धकेल दिये गए समूहों समेत महिलाओं व लड़कियों को सभी निर्णय-निर्धारण प्रक्रियाओं का हिस्सा बनाया जाए. यूएन महिला संस्था की कार्यकारी निदेशिका ने कहा, यही एकमात्र रास्ता है, जिससे ये सुनिश्चित किया जा सकेगा कि हमारे सामने मौजूद स्पष्ट तथ्यों के आधार पर जवाबी कार्रवाई में उनके अधिकारों व आवश्यकताओं का पूर्ण रूप से ख़याल रखा जाए.
इस रिपोर्ट में कुछ और बातें कही गई ताकि उस पर अमल करके महिलाओं की स्थिति को सुधारा जा सके. विश्लेषण के अनुसार महिलाओं को युद्ध के विविध व अतिरिक्त बोझ का सामना करना पड़ रहा है. इसलिये उन्हें यूक्रेन और उससे इतर तनाव में कमी लाने, हिंसक संघर्ष की रोकथाम, प्रवासन और शान्ति व सुरक्षा की अन्य प्रक्रियाओं के लिये गठित सभी मंचों में शामिल किया जाना होगा. रिपोर्ट में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से महिलाओं व लड़कियों की विशिष्ट पोषण आवश्यकताओं पर लक्षित भोजन के अधिकार को बढ़ावा देने का आग्रह किया गया है. साथ ही, अधिक न्यायसंगत व लैंगिक ज़रूरतों के नज़रिये से संवेदनशील, टिकाऊ खाद्य प्रणालियों की दिशा में रूपान्तरकारी बदलावों पर ज़ोर दिया गया है.