अंज़रुल बारी
नई दिल्ली : ऐसे समय में जब देश में नौकरियां चली गई हैं, लोगों की आय घट गई है, देश का किसान त्रस्त है, महंगाई अपनी चरम सीमा पर पहुंच रही है और देश को कई मोर्चों पर कड़ी चुनौतियों का सामना है, समाज के एक छोटे से वर्ग द्वारा देश और संविधान के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ध्वस्त करने की कोशिश, मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत बढ़ाने के तरीक़ों का प्रचार, सरकारी संस्थानों का खुल कर दुरूपयोग और चुनाव न होते हुए भी देश में एक अत्यधिक सांप्रदायिक माहौल बनाने की निरंतर चेष्टा के कारण देश भर में एक अजीब-सी बेचैनी का माहौल है.
इसी उद्देश्य से देश के कोने-कोने से आए मुस्लिम बुद्धिजीवी दिल्ली के ऐवान-ए-गालिब में रविवार 29 मई को एकत्रित होने जा रहे हैं ताकि देश की मौजूदा परिस्थिति और संविधान के समक्ष चुनौतियों पर विचारों का आदान-प्रदान कर आगे की रणनीति तय कर सकें.
इस बात का एलान यह शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में पूर्व सांसद मुहम्मद अदीब, पूर्व सदस्य योजना आयोग की सदस्य सैय्यदा हमीद, डॉ. आज़म बेग और डॉ. मसूद हुसैन रिज़वी ने किया.
‘इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल मीट’ के नाम से आगामी रविवार को दिन भर चलने वाली इस संगोष्ठी में देश भर से एकत्रित हो रहे मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुस्लिम समुदाय से जुड़े प्रतिष्ठित नागरिक विचार-मंथन करेंगे ताकि मिलजुल कर एक सकारात्मक, स्वच्छ और संयुक्त प्रतिक्रिया का स्वरूप तैयार किया जा सके, जो कि समय की ज़रूरत है ताकि देश और संविधान का धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना को ध्वस्त होने से बचाया जा सके.
प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए मुहम्मद अदीब ने कहा कि भारतीय संविधान के तीसरे भाग में मूल अधिकार की बात कही जाती है, जिसमें सबको ‘समता का अधिकार’ प्राप्त है. उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि अफसोस की बात है कि आज कुछ लोग इस अधिकार को पैरों तले कुचलने में लगे हैं. संविधान के चौदहवें और पंद्रहवें अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा’ और ‘राज्य, किसी नागरिक के विरूद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा’. उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता निरंतर बढ़ रही है. हम ऐसे मक़ाम पर पहुंच गये हैं जहां लोगों को अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों, विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ की जा रही क्रूरता पर खुशी मनाते देखा जा सकता है.
यही कारण है कि उदारवादी विचार रखने वाले भारतीय और विशेष रूप से मुसलमानों में यह भावना जागृत हो रही है कि इस बहाव पर तुरंत अंकुश लगाने की आवश्यकता है. सभी संविधान-प्रेमी भारतीयों के लिए यह मुद्दा अति चिंता का विषय है. इस संदर्भ में विभिन्न मुस्लिम और गैर-मुस्लिम समूह समय-समय पर चर्चा भी करते रहे हैं. यही समय की ज़रूरत है और इसी ज़रूरत को पूरा करने की कोशिश में देश भर के मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मुस्लिम समाज के गणमान्य व्यक्तियों को रविवार को दिल्ली आमंत्रित किया गया है.
इस मौके पर डॉ. आज़म बेग ने कहा कि हालत को देखते हुए सरकार और सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े रहे मुस्लिम समुदाय के गणमान्य व्यक्ति जैसे सेवानिवृत सिविल सर्विस सर्वेंटस, सेवानिवृत न्यायधीशों, सशस्त्र बलों से जुड़े रहे अफसरों, कानूनी विशेषज्ञों, वकीलों, टैक्नोक्रैट, शिक्षकों, धार्मिक विद्वानों, पत्रकारों, राजनीति से जुड़े रहे लोगों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं आदि को आमंत्रित किया गया है ताकि एकजुट होकर विचारों के आदान-प्रदान से और राष्ट्र के हितों को सर्वोपरि रखते हुए अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में इस जटिल और ज्वलंत समस्या के समाधान की दिशा में एक उपयुक्त दृष्टिकोण और रणनीति तैयार की जा सके.
उन्होंने बताया कि दिन भर चलने वाले सम्मेलन में हमारे सामने पेश चुनौतियों को समझने, उनका विश्लेषण करने, विभिन्न सुझावों को एकत्रित करने और मिलजुल कर एक रण्नीति तैयार करने की कोशिश की जाएगी ताकि सांप्रदायिक ताक़तों के एजेंडे को कमज़ोर किया जा सके.
प्रेस कांफ्रेंस को मुहम्मद अदीब के अलावा सैयदा हमीद, डॉ. आज़म बेग और डॉ. मसूद हुसैन रिज़वी ने भी संबोधित किया.