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दान से मालामाल होते धार्मिक संगठन और भिखारी 

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दान से मालामाल होते धार्मिक संगठन और भिखारी 

 

भारत में धार्मिक संगठनों और भिखारियों को दान देने की परंपरा सदियों से जारी है. हालिया करोना काल में भी दान देने की प्रवृति में कोई कमी नहीं देखी गई. एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 से 2021 के बीच भारतीयों द्वारा 23,700 करोड़ रुपये दान किया गया, जिसमें से 70 प्रतिशत धार्मिक संगठनों को मिला. अशोक विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सोशल इम्पैक्ट एंड फिलैंथ्रोपी (सीएसआईपी) द्वारा सोमवार को “हाउ इंडिया गिव्स 2020-21” शीर्षक से जारी की गई रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, कुल 23,700 करोड़ रुपये में से 16,600 करोड़ रुपए धार्मिक संगठनों को मिले हैं. वहीं, कुल दान का 12 प्रतिशत भिखारियों को मिला है, यानी उन्हें 2,900 हजार करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि 64 प्रतिशत परिवारों ने धार्मिक संगठनों को दान किया और 61 प्रतिशत लोनों ने भिखारियों को दान किया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कुल दान में से 12 प्रतिशत (करीब 2,900 करोड़ रुपये) भिखारियों को मिले, जबकि 9 प्रतिशत दान परिवार और दोस्तों को किए गए. वहीं, गैर धार्मिक संगठनों को कुल दान में से 5 प्रतिशत (करीब 1100 करोड़ रुपये) मिला और घरेलू कामगारों को कुल दान में से 4 प्रतिशत (करीब 1 हजार करोड़ रुपये) मिला.

रिपोर्ट कहती है, सबसे अधिक संख्या में दान मध्यम वर्ग और निम्न-आय वाले परिवारों द्वारा किया गया. 18 राज्यों के 81,000 घरों में किए गए सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट पेश की गई है. यह सर्वेक्षण उस दौरान किया गया है, जब देश में कोरोना का कहर चरम पर था और रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि में गैर-धार्मिक संगठनों को सिर्फ 1,100 करोड़ रुपये के दान किया गया.

सीएसआईपी अनुसंधान निदेशक और रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका स्वाति श्रेष्ठ ने कहा, “मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से आश्चर्य की बात यह थी कि मैंने इस विशेष अध्ययन अवधि में उम्मीद की थी कि कोरोना के कारण अधिक दान किया गया होगा और ऐसा नहीं था.”

अध्ययन के अनुसार, दान में पुरुषों और महिलाओं का बराबर का हिस्सा है, पुरुष धार्मिक संगठनों और परिवार एवं दोस्तों को दान करते हैं. वहीं, महिलाएं भिखारियों और घरेलू कर्मचारियों को दान देती हैं. सबसे ज्यादा 96 प्रतिशत डोनेशन पूर्वी भारत में किया गया है, इसके बाद उत्तरी भारत में 94 प्रतिशत दान किया गया.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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