अंज़रुल बारी
उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद मामले में मंलगवार का दिन बेहद अहम है. दरअसल वाराणसी की जिला अदालत आज अपना फैसला सुनाने वाली है जिसमें ये तय होगा कि केस की सुनवाई किस दिशा में आगे बढ़ाई जाए और सबसे पहले कौन सी याचिका पर सुनवाई की जाए. इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. जिला जज ए. के.विश्वेश की अदालत इस पर फैसला सुनायेगी कि किस याचिका पर पहले सुनवाई होगी. सोमवार को करीब 45 मिनट तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता मोहम्मद तौहीद खान ने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने अदालत में याचिका दायर करके कहा है कि यह मुकदमा चलाने के लायक नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाए. सोमवार को मस्जिद पक्ष के वकील अभय नाथ यादव ने कहा था कि श्रृंगार गौरी प्रकरण में सुनने का मतलब है, पूजा अधिनियम 1991 का उल्लंघन है.
ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग के नियमित पूजन-अर्चन के लिये अदालत में काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉक्टर कुलपति तिवारी ने सोमवार को याचिका दायर की है. कोर्ट की कार्यवाही के दौरान शासकीय अधिवक्ता महेंद्र नाथ पांडे ने भी अपनी बातें रखीं. इसमें उन्होंने कहा कि सर्वे के बाद से ही वादी और जिला प्रशासन की अर्जी लंबित है. उसे प्राथमिकता से निस्तारित किया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम पक्ष की ओर से मेंटेनेबिलिटी से संबंधित जो आवेदन लंबित है, उसकी प्रति भी अभी नहीं मिली है. ऐसे में अदालत ने सभी पक्षों की बात सुनने के बाद आज इस पर अपना आदेश सुनाने की बात कही है. इस पूरे मामले में आज तय होगा कि मुकदमा की कार्यवाही कैसे और किस दिशा में शुरू होगी.
इस बीच काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित काशी करवत मंदिर के महंत पंडित गणेश शंकर उपाध्याय ने इस विषय पर कुछ और ही दावा किया है. महंत गणेश शंकर उपाध्याय का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे में जो शिवलिंग जैसी आकृति मिली है वो शिवलिंग नहीं, बल्कि फव्वारा ही है.
बता दें कि वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने ज्ञानवापी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था. सर्वेक्षण का यह काम पिछली 16 मई को पूरा हुआ था, जिसके बाद इसकी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी गई थी. इसी बीच उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम पक्ष द्वारा दायर याचिका की सुनवाई की गई. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सुनवाई के लिए जिला जज को ट्रांसफर कर दिया, साथ ही ये कहा कि शिवलिंग मिलने वाली जगह को सुरक्षित रखा जाए और मुसलमानों को नमाज पढ़ने से नहीं रोका जा सकता है.