राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी हो गई है. 18 जुलाई को चुनाव होने हैं लेकिन न तो एनडीए और न ही विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार की घोषणा हुई है. बुधवार को ममता बनर्जी ने 17 दलों के साथ एक बैठक जरूर की, लेकिन किसी उम्मीदवार पर सहमति नहीं बन पायी. बैठक के बाद ममता ने कहा कि उम्मीदवार को लेकर फिर से बैठक होगी. और एक उम्मीदवार पर सहमति होने के बाद उसके नाम की घोषणा की जाएगी. उधर राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए बहुमत के बेहद करीब है, लेकिन किसी क्षेत्रीय दल के सहयोग के बिना राष्ट्रपति उम्मीदवार की जीत संभव नहीं है. विपक्ष भी खुद को मजबूत बता रहा है, लेकिन दोनों के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है. ऐसे में, जगन मोहन रेड्डी, नवीन पटनायक और केसीआर की भूमिका अहम हो जाती है. इनके बिना यूपीए और एनडीए की राह आसान नहीं होगी. जगन मोहन रेड्डी, केसीआर और नविन पटनायक किंग मेकर की भूमिका में आ गए हैं.
एनडीए बहुमत से 13 हजार वोट दूर है. रेड्डी और पटनायक में से किसी एक का भी समर्थन मिला तो जीत हासिल हो जाएगी. 2017 में दोनों ने ही एनडीए को समर्थन दिया था.
सबसे पहले बात ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की. विपक्ष की ओर से, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नवीन पटनायक को न्योता दिया है. उधर, बीजेपी ने भी बड़े नेता अश्विनी वैष्णव को पटनायक से संपर्क साधने की जिम्मेदारी दी है. 2012, 2017 की तरह ही 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में भी नवीन पटनायक की डिमांड बढ़ गई है. उनके पास 30 हजार से ज्यादा वोट हैं.
दरअसल, केंद्रीय स्तर पर पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल अंतिम बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शामिल रहा. इसके बाद से बीजेडी केंद्र में किसी सरकार में शामिल नहीं रही. यानी करीब 20 साल से पटनायक का सेंट्रल पॉलिटिक्स में कोई बड़ा रोल नहीं है, हालांकि तालमेल सभी पार्टियों से बेहतर है. 2012 के चुनाव में नवीन पटनायक के सुझाव पर NDA ने पीए संगमा को उम्मीदवार बनाया था.
अब बात आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की करते हैं. जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पास 40 हजार से ज्यादा वोट हैं. एनडीए के शीर्ष के नेता जगन मोहन रेड्डी के संपर्क में हैं. एनडीए को रेड्डी का समर्थन मिल सकता है. हालांकि अभी तक इसकी रेड्डी की तरफ से आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है.
तेलगांना के सीएम के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. हालांकि जिस तरह गृहमंत्री तेलंगाना दौरे पर टीआरएस सरकार पर हमलावर हैं, उससे लगता है कि बीजेपी की राह छोटे दलों में टीआरएस को साथ लेकर चलने की राह से अलग है. रेड्डी और पटनायक के साथ से ही एनडीए जीत के अंतर को बढ़ाने की कोशिश में है.
2017 के मुकाबले में बदले समीकरण भी बदल गए हैं. बीजेपी के पास शिवसेना और अकाली दल जैसे साथी थे. तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक सत्ता से बाहर हो चुकी है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सत्ता में नहीं है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विधायकों की संख्या कम हुई है. फिर 2017 में 21 राज्यों में एनडीए की सरकार थी. अब 17 राज्यों में एनडीए की सरकारें हैं. बीजेपी के पास अब महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखंड भी नहीं हैं. ऐसे में इस बदले समीकरण से बीजेपी की परेशानी भी बढ़ी है.