Sunday, December 22, 2024
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क्या दागी नेताओं की फाइल फिर से खोलेगी सुप्रीम अदालत ?

एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दागी विधायक और सांसदों की आपराधिक पन्नो को फिर से खोला जाएगा. उनके खिलाफ दर्ज मामलों की फिर से जांच होगी. अदालत का बस इतना भर कहाँ था कि देश के दागी नेताओं की नींद उड़ गई है. कालांतर में देश के कई दागी विधायक, सांसद राज्य सरकार द्वार राहत पा गए थे. अब उनकी परेशानी भी बढ़ सकती है. अदालत ने साफ़ किया है कि कोई भी राज्य सरकार दागी नेताओं के खिलाफ दर्ज मामलो को अब वापस नहीं ले सकती है. अदालत का यह फरमान राज्य सरकार के अधिकारों पर भी लगाम लगाने जैसा है. लेकिन पूरी कहानी में एक बात साफ़ हो गई है कि दागी नेताओं की फाइल अगर खुलती है तो देश की राजनीति का मिज़ाज भी बदल सकता है. याद रहे देश के कई मुख्यमंत्रियों पर भी आपराधिक मामले दर्ज थे और कइयों ने केस खुद की सरकार में ही वापस ले लिए हैं. ऐसे में अब कोर्ट आगे की कोई कार्रवाई करती है. तो एक नयी राजनीति शुरू हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सांसद व विधायक के पुराने केस खोलने पड़ेंगे. कोर्ट ने सितंबर 2020 से सांसदों-विधायकों के वापस लिए केस दोबारा खोलने को भी कहा है. अब राज्य सरकारें सांसदों और विधायकों क्रिमिनल केस वापस नहीं ले सकेंगी. इसके लिए राज्य सरकारों को संबंधित राज्य के हाईकोर्ट से आवश्यक रुप से मंजूरी होगी.

सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले सांसद और विधायकों को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से वैन लगाने संबंधी दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह बात कही. कोर्ट को बताया गया कि यूपी के मुजफ्फर नगर दंगा केस में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक केस योगी सरकार ने वापस लिए थे. इस पर कोर्ट ने यह कड़ी टिप्पणी की.

बता दें कि पिछले साल 2022 के फरवरी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने बताया था कि देश के सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ अब तक कुल 4984 केसेज पेंडिंग हैं. वहीं ऐसे मामले में पिछले तीन सालों में 862 वृद्धि हुई है. जबकि 1,899 मामले ऐसे हैं, जो करीब पांच साल से ज्यादा पुराने हैं. सीनियर वकील विजय हंसारिया ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में बताया कि दिसंबर 2018 तक सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ कुल लंबित मामले 4,110 थे, और अक्टूबर 2020 तक ये 4,859 थे.

बता दें कि साल 2016 के एक मामले में वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका में रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसमें कानून निर्माताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना और दोषी व्यक्तियों को विधायिका और कार्यपालिका से हटाने की मांग की गई थी.

Anzarul Bari
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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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