एलेक्ट्रोल बांड्स की कहानी भी अजीब है. चुनाव के दौरान चुनावी चंदे में भ्रष्टाचार नहीं हो, इसके लिए एलेक्ट्रोल बांड्स की शुरुआत की गई. लेकिन यह बांड्स भी अपने आप में एक धोखा ही साबित हो रहा है. अधिकतर बांड्स कंपनियां गुमनाम तरीके से एकतरफा दान करती नजर आ रही है. बीजेपी के खाते में सबसे ज्यादा दान आ रहा है. जबकि बाकी पार्टियां रुदाली ही करती है.
चुनाव आयोग ने अभी जो जानकारी दी है. उसके मुताबिक बीजेपी को साल 2018 और 2022 में ख़रीदे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड्स में से आधे से ज्यादा प्राप्त हुए. आयोग के मुताबिक बीजेपी को कुल 9208 करोड़ रुपये में से 5270 करोड़ रुपये मिले हैं. 2022 तक बेचे गए कुल एलेक्ट्रोल बांड्स में से करीब 57 फीसदी हिस्सा बीजेपी को मिला है.
उधर कांग्रेस को 964 करोड़ रुपये बांड्स से मिले. कह सकते हैं कि कुल बांड्स का दस फीसदी कांग्रेस को मिला है. टीएमसी को 767 करोड़ मिले हैं. यानी कुल बांड्स का 8 फीसदी. साफ़ है कि इस तरह के बांड्स का सबसे ज्यादा लाभ बीजेपी को मिल रहा है. जबकि अन्य पार्टियां इससे विलग हो होती जा रही है. आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी को साल 2022 के अंत तक 1033 करोड़ रुपये, 2238 करोड़ रुपये, 2020 में 2555 करोड़ रुपये और 2019 में 1450 करोड़ रुपये मिले हैं.
वहीं कांग्रेस की बात की जाए तो आंकड़े बताते हैं कि 2022 जहां कांग्रेस पार्टी को 253 करोड़ रुपये मिले, वही 2021 – 20 में क्रमशः दस करोड़ और 317 करोड़ मिले हैं. और 2019 में कांग्रेस को एलेक्ट्रोल बांड्स से 383 करोड़ की प्राप्ति हुई है.
वहीं ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को वित्तीय वर्ष मार्च 2022 में 528 करोड़ रुपये, 2021 में 42 करोड़ रुपये, 2020 में 100 करोड़ रुपये और 2019 में 97 करोड़ रुपये मिले.
बता दे कि इलेक्ट्रो बांड्स के जरिये राजनीतिक दल को गुमनाम चंदे की सहूलियत दी गई है. हालांकि इस तरह के बांड्स की आलोचना भी की जा रही है. आलोचक मानते हैं कि इस तरह का खेल सत्ता और भ्रष्टाचार के संभावित दुरूपयोग को जन्म देते हैं. इसके अलावा इस तरह के बांड्स का उपयोग मनी लॉन्डरिंग में भी किया जा रहा है. इस पर भी कई सवाल उठते रहे हैं. आलोचक यह भी मानते हैं कि इस तरह के बांड्स से पारदर्शिता कम होती है और जो धनि दानदाता है, उसे लाभ पहुंचाने का खेल चलता है.