झीलों की नगरी उदयपुर में चल रहे कांग्रेस के चिंतन शिविर पर देश – दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं. इस शिविर पर कांग्रेस के वोटरों की भी निगाह हैं तो कार्यकर्ताओं की भी. शिविर के चिंतन पर कांग्रेस नेताओं की भी नज़र है तो तमाम विपक्षी पार्टियों की भी. इस चिंतन शिविर को मीडिया भी भांप रहा है तो बीजेपी भी समझने की कोशिश कर रही है. याद रहे अगले सप्ताह से बीजेपी भी जयपुर में बैठक करने जा रही है, जहां अगले चुनाव की रणनीति वह तय करेगी. कह सकते हैं कि कांग्रेस का यह चिंतन शिविर सबको आकर्षित कर रहा है. इस चिंतन शिविर का एक दिन गुजर गया. आज और कल तक यह चिंतन शिविर चलेगा. पहले दिन कई तरह की बाते सामने आयी. एक परिवार एक टिकट की बातें भी हुईं. लेकिन इसमें कुछ अपवाद भी लगाए गए हैं. शायद इसे गाँधी परिवार को देखकर किया गया है. आगे और क्या होता है इसे देखना है.
कहा जा रहा है कि चिंतन शिविर में मिशन 2024 पर भी रणनीति बनाई जाएगी. लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में चुनाव होने हैं. कांग्रेस सिर्फ दो राज्यों में सत्ता में है. कांग्रेस को आने वाले विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए संगठनात्मक मजबूती के साथ-साथ कई बातों पर ध्यान देना होगा. अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस के सामने खड़ी कई समस्याओं पर काम करना होगा. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि पार्टी अपने भीतर के विरोध को कैसे ख़त्म करती है. चुनावी हार का जिम्मेदारी कौन लेता है ? कई राज्यों में नेताओं के बीच जो खींचतान है उससे पार्टी कैसे निपटेगी ? और इसके बाद संगठन का विस्तार और उसकी मजबूती के लिए क्या कुछ तैयारी होती है इस पर सबकी निगाहें है. लोग इस बात की भी अपेक्षा कर रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में पार्टी छोड़कर जो नेता दूसरी पार्टी में गए हैं उस पर भी बहस हो. सवाल है कि क्या इन बातों पर चिंतन होगा ?
लोकसभ के लिए अभी समय है. इससे पहले कई राज्यों में चुनाव होने हैं. उनमे राजस्थान भी शामिल है. क्या पार्टी चुनाव में जीत को लेकर आशान्वित है ? क्या हिमाचल में कांग्रेस सरकार बनाने के लायक है ? और फिर क्या पार्टी प्रशांत किशोर के बताये रस्ते पर चले को तैयार है ?
राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस को 108 और बीजेपी 71 सीटें मिली थीं. राज्य में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन लागू सहित लोक लुभावन योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन राज्य में दंगे, परीक्षाओं की अनियमितता जैसे कारणों से कई तबके नाराज हैं. इसके अलावा राजस्थान में पार्टी के अंदर की गुटबाजी कांग्रेस के लिए खतरा साबित हो सकती है. यूपी में कांग्रेस ने महिलाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा दिया था, लेकिन वहीं दूसरी तरफ राजस्थान सरकार के मंत्री महेश जोशी के बेटे रोहित जोशी पर रेप का आरोप लगा है. ऐसे में कांग्रेस की वापसी के लिए राज्य में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
गुजरात में विधानसभा की 182 सीटें हैं. यहां बीजेपी के पास 111 और कांग्रेस के पास केवल 63 सीटें हैं. गुजरात में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है, जिसके बाद पार्टी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. पिछले दिनों कांग्रेस के आदिवासी नेता रहे विधायक अश्विन कोतवाल भी बीजेपी में चले गए. इसके अलावा अब तक कुल 13 ऐसे विधायक या पूर्व विधायक हैं, जो कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी में जा चुके हैं. गुजरात में हार्दिक पटेल से भी कांग्रेस की दूरियां लगातार बढ़ रही हैं. हार्दिक पटेल सोशल मीडिया बायो से कांग्रेस का जिक्र भी हटा चुके हैं. ऐसे में उनके कांग्रेस छोड़ने की संभावना बढ़ती ही जा रही है.
छत्तीसगढ़ में कुल 90 सीटें हैं, जिसमें से कांग्रेस के पास 71 और भाजपा के पास 14 सीटें हैं. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए नहीं बल्कि बीजेपी के लिए चुनौती है. राज्य में कांग्रेस सरकार ने अपनी योजनाओं के माध्यम से घर-घर तक पहुंच बना ली है. किसान कर्ज माफी, बिजली बिल हॉफ, धान बोनस, गोबरधन न्याय योजना, किसान न्याय योजना आदि के जरिए कांग्रेस लोगों को अपना विकास मॉडल समझाना चाहती है और काफी हद तक कामयाब भी हुई है. छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास रमन सिंह के अलावा कोई बड़ा चेहरा नहीं है.
मध्यप्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं. यहां बीजेपी की 127 और कांग्रेस की 96 सीटें हैं. मध्यप्रदेश में कांग्रेस की बदहाली के 4 प्रमुख कारण हैं जमीनी निष्क्रियता, गुटबाजी, चेहरे का अभाव और मौके चूकना. कई सालों के बाद कांग्रेस को एमपी में बहुमत मिला लेकिन सरकार नहीं चला पाई. इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नेता को बीजेपी में जाने से रोक नहीं पाई. पार्टी में गुटबाजी इतनी ज्यादा है कि कार्यकर्ता भी अपने नेता का नाम देखकर पार्टी कार्यक्रम में भाग लेते हैं. अगर 2023 में एमपी में कांग्रेस को चुनाव जीतना है तो सभी नेताओं को एक साथ मिलकर जन मुद्दों पर काम करना होगा.
हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें बीजेपी के पास 44 और कांग्रेस के पास केवल 21 सीटें हैं. कांग्रेस ने प्रदेश में छह बार के सीएम रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी सांसद प्रतिभा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर नया कार्ड खेला है. हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह ऐसा चेहरा रहे, जिन्होंने अपने बूते कांग्रेस को कई बार सत्ता दिलाई. ऐसे में उनकी पत्नी सांसद प्रतिभा को प्रदेश अध्यक्ष बनाना पार्टी के लिए अच्छा कदम हो सकता है, लेकिन पंजाब-हरियाणा की तरह यहां भी गुटबाजी कम नहीं है. कांग्रेस को इस बात पर ध्यान देना होगा कि पंजाब की परछाई हिमाचल पर न पड़े.
कर्नाटक में कुल 222 विधानसभा सीटें हैं, जिसमे से बीजेपी के पास 104 और कांग्रेस के पास 78 सीटें हैं. एमपी और राजस्थान की तरह यहां पर भी कांग्रेस के अंदर गुटबाजी देखने को मिलती है. यहां पर चुनाव से पहले ही सीएम पद के लिए सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के खेमे में जग छिड़ी हुई है. यही हाल तेलंगाना का भी है. तेलंगाना की 119 सीटों वाली विधानसभा में टीआरएस को 88, कांग्रेस को 19 और बीजेपी को 1 सीट मिली थी. चुनाव के कुछ महीने बाद कांग्रेस के कम से कम एक दर्जन विधायक पार्टी छोड़कर चले गए और टीआरएस में शामिल हो गए. पार्टी के सिर्फ छह विधायक रह जाने के कारण कांग्रेस ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी खो दिया है.
कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या मजबूत नेतृत्व का न होना है. पार्टी को एक ऐसे नेता की जरुरत है जो सबको सामान नजर से देखे और ईमानदारी से सबको सब पर पार्टी का रूल लागू कर सके. दूसरी समस्या पार्टी की गुटबाजी है. हालांकि किसी भी पार्टी के भीतर गुटबाजी चलती रहती है लेकिन पिछले एक दशक से कांग्रेस गुटबाजी का सबसे ज्यादा शिकार है. फिर पार्टी संगठन को मजबूत करना और जनता में विश्वास जगाना जरुरी है. आज की हालत ये है कि पार्टी आज भी चुनाव में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा वोट तो पाती है लेकिन सीटें नहीं जीत पाती. आज भी बीजेपी का विकल्प सिर्फ कांग्रेस ही है लेकिन वह नेता विहीन और कमजोर संगठन की शिकार है.