Thursday, April 18, 2024
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ईरान सरकार ने नैतिक पुलिस बल को किया खत्म, क्या है नैतिक पुलिस, यह कैसे करती है अपना काम ?

1983 में ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद, सभी वयस्क (एडल्ट) महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया था. लेकिन इसे लागू करने के लिए एक नियमित पुलिस बल की आवश्यकता 2006 में महसूस की गई.

 

ईरान की नैतिक पुलिस, जिसे ‘गश्त-ए-इरशाद’ के नाम से भी जाना जाता है, गठन 2006 में किया गया था. जिसका उद्देश्य ईरान में इस्लामी ड्रेस कोड का उल्लंघन करने से रोकना और उल्लंघन की सूरत में गिरफ्तार करना था. बता दें कि ईरानी कानून के मुताबिक महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर अपना सिर ढंकना चाहिए.

 

पुलिस हिरासत में 22 वर्षीय कुर्द महिला मेहसा अमिनी की सितंबर में मौत के बाद से ईरान की नैतिक पुलिस फोर्स दुनिया भर में बहस का मुद्दा बनी हुई है.

 

ईरानी समाचार एजेंसी माहेर पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में, ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के ब्रिगेडियर जनरल अमीर अली हाजीज़ादेह ने कहा कि मेहसा अमिनी की मौत के बाद हुए दंगों में अब तक तीन सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. मरने वालों में प्रदर्शनकारियों के अलावा बड़ी तादाद में पुलिस कर्मी भी शामिल हैं.

समाचार एजेंसी एएफ़पी और कटरी न्यूज़ एजेंसी अल जज़ीर के अनुसार, ईरानी अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि सरकार ने नैतिक फोर्स को खत्म किए जाने की घोषणा कर दी है.

ईरान में 1983 की इस्लामिक क्रांति के बाद, सभी वयस्क (एडल्ट) महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया था. हालाँकि, इसे लागू करने के लिए एक नियमित विशेष पुलिस फोर्स क़ायम करने की ज़रूरत वर्ष 2006 में महसूस की गई थी. जिसके बाद इस तरह से ‘गुश्त-ए-इरशाद’ ‘ या नैतिक पुलिस फोर्स की ईरान में स्थापना की गई.

यह विशेष पुलिस फोर्स इन कानूनों को कितनी सख्ती से लागू करती है, इसका अंदाजा 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. जिसके अनुसार विषेश नैतिक पुलिस फोर्स ने वर्ष 2014 में 2 लाख 70 हज़ार महिलाओं से हस्ताक्षर किए हुए हलफनामे, जिसमें उन्होंने हिजाब पहनने की बात कही थी, इकट्ठा किए. इसी तरह हिजाब से जुड़े 18 हजार मामले अदालतों में भेजे, जबकि कुल 2.9 लाखों लोगों को, उनके जरिए हिजाब से जुड़े कानून के उल्लंघन के बारे में उन्हें सूचित किया गया था.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि नैतिक पुलिस ‘अश्लील’ कपड़ों के लिए पहले चेतावनी जारी करती है, और उल्लंघन करने वाले ऐसे अपराधियों से भविष्य में कानून का पालन करने का लिखित वचन लिया जाता है, और यदि कोई चेतावनी के बावजूद नहीं मानता है, और हिजाब कानून का उल्लंघन करता है तो उस पर मुकदमा दर्ज कर केस चलाया जाता है.

ईरान कानून की दंड संहिता के अनुच्छेद 638 में लिखा है कि, ‘जो कोई सार्वजनिक स्थान पर किसी भी धार्मिक कानून का खुले तौर पर उल्लंघन करता है, उसे या तो दस दिन से लेकर दो महीने तक की कैद या 74 कोड़ों की सजा दी जाएगी.’

“कोई भी महिला जो बिना उचित हिजाब के बिना किसी सार्वजनिक स्थान पर आती है, उसे दस दिन से लेकर दो महीने तक कारावास या 50 हज़ार से 5 लाख तोमन के जुर्माने से दंडित किया जाएगा.”

हालांकि, ‘उचित हिजाब’ की कोई परिभाषा कानून में निर्धारित नहीं है, हालांकि आमतौर पर इसका अर्थ यह लिया जाता है कि महिलाओं के सिर ढके, हाथ और पैर ढंके होने चाहिए.

ऑस्ट्रेलिया के विदेश मामलों और व्यापार विभाग (डीएफएटी) ने लिखा है कि अनुच्छेद 638 के तहत इस केस में सजा शायद ही कभी पूरी की जाती है. ‘व्यावहारिक रूप से हिजाब के बिना महिलाओं को पुलिस स्टेशनों और उनके परिवारों के बीच ले जाया जाता है. फिर एक व्यक्ति को उनके लिए हिजाब लाने के लिए कहा जाता है, ‘जिसके बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है.’

एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार, हिजाब के बिना महिलाओं को कभी-कभी पुलिस द्वारा हिजाब और पर्दे से जुड़ी लेक्चर्स में ले जाया जाता है जहां उन्हें कानून और उचित हिजाब के बारे में समझाया और बताया जाता है. इस तरह, कानून में नरमी और सख्ती समय और क्षेत्र के साथ साथ बदलती रहती है.

डीएफएटी के अनुसार, दिसंबर 2017 में, अधिकारियों ने कहा कि पुलिस ड्रेस कोड उल्लंघनकर्ताओं को गिरफ्तार नहीं करेगी. उस समय ईरान में हसन रूहानी राष्ट्रपति थे. जिनकी नीतियां सुधारवादी और उदारवादी समझी जाती थीं. हालांकि, 2021 में राष्ट्रपति डॉ. इब्राहिम रईसी के सत्ता में आने के बाद इस कानून पर सख्ती से अमल किया जाने लगा.

कनाडा सरकार की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक स्पेशल एथिक्स पुलिसिंग अपना काम दो तरह से अंजाम देती है. इस फोर्स के अधिकारी वाहनों में या पैदल भी गश्त करते रहते हैं (इसका मूल नाम गेश्त-ए-इरशाद है), साथ ही जगह जगह चेक पोस्ट भी कायम किए गए हैं ताकि हर गुजरने वाले राहगीर का निरीक्षण किया जा सके. हालांकि, हाल के वर्षों में इस कानून पर सख्ती से अमल नहीं किया गया है बल्कि अधिकारियों के गश्त का सिलसिला भी काफी कम रहा है.

2016 में, ‘गिरशाद’ नाम से एक मोबाइल ऐप बनाया गया था जिसमें लोग स्पेशल नैतिक पुलिस फोर्स की मूवमेंट को चेक कर सकते थे, इसके अलावा राहगीरों को पता चल सके कि आगे कोई पुलिस स्टेशन है या वो किसी विशेष बाजार में गश्त कर रहे हैं. और लोगों को चेतावनी दिया जाना चाहिए. हालांकि, ईरानी सरकार ने इस ऐप को बाद में ब्लॉक कर दिया था.

वर्ष 2019 में, ईरानी सरकार ने शायद उसी ऐप से प्रेरित होकर, खुद तकनीक को अपनाने का फैसला किया. ताकि लोगों को ड्रेस कोड के उल्लंघन की सूचना मिल सके.

इसके अलावा, ब्रिटिश अखबार टेलीग्राफ के अनुसार, पुलिस बिना हिजाब या अनुचित हिजाब पहनने वाली महिलाओं की पहचान करने के लिए ट्रैफिक कैमरों का भी इस्तेमाल करती है.

16 सितंबर, 2022 को तेहरान विश्वविद्यालय की छात्रा मेहसा अमिनी को स्पेशल नैतिक पुलिस ने अनुचित हिजाब पहनने के आरोप में गिरफ्तार किया था क्योंकि उसके बाल हिजाब के बाहर दिखाई दे रहे थे.

दो दिन बाद मेहसा अमिनी का निधन हो गया. पुलिस ने कहा कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना था कि उन्हें एक वैन में पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया था और उनके हाथ और पैरों पर पुलिस द्वारा मारपीट के निशान थे.

इस घटना के बाद पूरे ईरान में विरोध शुरू हो गया और ईरानी महिलाओं के अधिकारों को लेकर दुनिया के कई शहरों में विरोध की लहर दौड़ पड़ी, जो अब भी जारी है. इस दौरान ईरान में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिनमें प्रदर्शनकारियों के अलावा बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारी भी मारे गए.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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