Friday, March 29, 2024
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हे भारतवासी ! मैं हार्दिक पटेल बोल रहा हूं …..

अखिलेश अखिल

मैं हार्दिक पटेल. वही हार्दिक जो बहुत ही कम उम्र में गुजरात की राजनीति में एक हीरो बनकर उभरा था. पाटीदारो के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ी और बीजेपी

को निशाने पर लिया था. पहले बीजेपी का खूब विरोध किया. पिछले 2017 के चुनाव में बीजेपी को हलकान भी किया और उसकी बढ़ती रफ़्तार को रोका भी. फिर कांग्रेस की राजनीति भी की. और फिर बीजेपी में वापस लौटकर बीजेपी की टिकट पर चुनाव भी लड़ रहा हूं. मैं कलंकित हूं या फिर भारतीय राजनीति, इसका फैसला तो आप ही करेंगे.

मेरा जन्म 20 जुलाई 1993 में कड़वा-पाटीदार-कुर्मी, चन्दन नगरी, गुजरात में भरत और उषा पटेल के घर हुआ. वर्ष 2004 में मेरे पिता जी बच्चों की शिक्षा हेतु वीरमगाम शहर से 10 किलोमीटर दूर चले गए. मैंने 6वीं से 8वीं की कक्षा दिव्य ज्योति विद्यालय, वीरमगाम में पूरी की. मैंने अपनी 7वीं कक्षा उत्तीर्ण होने के पश्चात अपने पिता के छोटे से व्यापार को चलाने में सहायता करने लगा. वो भूमिगत पानी के कुओं में नल लगाने का कार्य करते थे. वर्ष 2010 में मैंने सहजानन्द महाविद्यालय, अहमदाबाद में बीकॉम की पढ़ाई की. मैंने महाविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव के पद के चुनाव में भाग लिया और निर्विरोध निर्वाचित भी हो गया था. जुलाई 2015 में मेरी बहन मोनिका राज्य सरकार की छात्रवृत्ति प्राप्त करने में विफल रही. इस कारण मैंने एक पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का निर्माण किया. जिसका लक्ष्य पाटीदारों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल होना था. मैंने किसानों की कर्ज माफी, पाटीदार आरक्षण और राजद्रोह के मामले में जेल में बंद अपने एक साथी अल्पेश कथिरिया की रिहाई की मांग को लेकर भारी आंदोलन चलाया. सूबे के लोगों ने मेरा साथ दिया. तब तक मैं गुजरात में एक युवा नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुका था. हमारी राजनीतिक पहचान बन गई थी. 2017 के चुनाव में हमने बीजेपी और उसकी नीतियों का खूब विरोध किया. अंजाम यह हुआ कि उस चुनाव में बीजेपी 99 सीटों पर सिमट गई और कांग्रेस 77 सीटें पाने में सफल रही.

मैंने 12 मार्च 2019 को कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. इसके बाद बाद महज 16 महीनों में ही उन्होंने पार्टी के प्राथमिक सदस्य से लेकर कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष का सफर तय कर लिया. लेकिन अब मैं बीजेपी के साथ हूँ. 2 जून 2022 को मैंने बीजेपी की सदस्यता ले ली. जिस बीजेपी को मैंने खूब गलियाया था अब उसकी राजनीति मुझे रास आ गई है. लोग मेरे ऊपर कई तरह के इल्जाम लगा रहे हैं, लेकिन मैंने वही किया जो देश के अन्य नेता करते आ रहे हैं. जब दूसरे नेता दलबदलू हैं तो मेरे ऊपर

यह इल्जाम क्यों ?

बीजेपी ने वीरमगाम विधानसभा सीट से मुझे अपना उम्मीदवार घोषित किया है. मेरा राजनीतिक सफर क्या होगा मैं नहीं जानता. चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में मैंने सब कुछ खोलकर रख दिया है. मेरे खिलाफ देशद्रोह के दो मामलों समेत 20 मुकदमे दर्ज हैं. मेरी कुल संपत्ति 61.48 लाख रुपए की है.

मैं अभी 29 साल का हूँ. मेरे खिलाफ 20 आपराधिक मामले लंबित हैं. ये सभी मामले 2015 में दर्ज किए गए थे. जब मैंने पाटीदार आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व किया था. इन 20 मामलों में से नौ मामलों में दो साल या उससे अधिक की सजा हुई है. 20 मामलों में से दो मामले उनके खिलाफ सूरत और अहमदाबाद में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज देशद्रोह के मामले हैं. इसके अलावा मेरे खिलाफ 11 आपराधिक मामले लंबित हैं जिनमें सजा दो साल से कम है. इन मामलों में सूरत में सरथाना, अहमदाबाद शहर, सिद्धपुर, पाटन में चंसमा, महीसागर में संतरामपुर, सुरेंद्रनगर, ध्रांगधरा और जामनगर जैसे विभिन्न स्थान शामिल हैं. मैंने मेहसाणा जिले के विसनगर में दर्ज आपराधिक मामले का भी जिक्र किया. जिसमें ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी पाया है. इस मामले में कोर्ट ने दो साल की कैद और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी.

अब मैं क्षेत्र की चर्चा कर रहा हूँ. जहां से मैं चुनाव लड़ रहा हूँ. वीरमगाम है इस विधान सभा क्षेत्र का नाम है. प्रदेश में लगातार बीजेपी की सरकार है लेकिन वीरमगाम पिछले दो चुनाव से कांग्रेस के पास है. बीजेपी ने मुझे यहां से मौका दिया है ताकि कांग्रेस से यह सीट झटक सकूँ. इस सीट को जाति की राजनीति से मुक्त माना जाता है और हर समुदाय और जाति के नेता यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इस बार मै भी अपनी ताकत लगा रहा हूँ. यहाँ मेरा चुनावी मुकाबला कांग्रेस के मौजूदा विधायक लाखभाई भारवाड़ से है. जिन्होंने 2017 में बीजेपी की तेजश्री पटेल को 6,500 से अधिक मतों के अंतर से हराया था. आपको बता दें कि वीरमगाम विधानसभा क्षेत्र जिसमें अहमदाबाद के वीरमगाम मंडल और डेट्रोज तालुका भी शामिल हैं, पिछले 10 वर्षों से कांग्रेस के कब्जे में है. दिलचस्प बात यह है कि 2012 के विधानसभा चुनावों में तेजश्री पटेल ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और बीजेपी के प्रागजी पटेल को 16,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था. बाद में तेजश्री भी बीजेपी के साथ चले गए लेकिन उन्हें भी हार का मुँह देखना पड़ा.

हलाकि तेजश्री पटेल ने कांग्रेस विधायक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान विधानसभा के अंदर और बाहर दोनों जगह सत्तारूढ़ बीजेपी के घोर आलोचक के रूप में अपनी छाप छोड़ी है. हालांकि सभी को आश्चर्य हुआ जब उन्होंने 2017 में बीजेपी के टिकट पर पाला बदला और चुनाव लड़ा तो मतदाताओं ने उन्हें खारिज कर दिया और कांग्रेस के लाखाभाई भारवाड़ को चुना जो अन्य पिछड़ा वर्ग से थे. मतदाताओं को लगता है कि भारवाड़ अब सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं. वहीं कुछ अन्य का कहना है कि वह एक विधायक के रूप में सक्रिय रहे हैं. उन्होंने स्थानीय मुद्दों को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत की है, इसलिए उन्हें हराना मेरे लिए कठिन भले ही हो नामुमकिन नहीं है. यहाँ की जनता हमें भी जानती है और जनता का मिजाज हम भी जानते हैं. हकीकत ये है कि लड़ाई दिलचस्प होने वाली है.

मैं भी जातीय गणित का सहारा ले रहा हूँ. बता दें कि वीरमगाम में लगभग 3 लाख मतदाता हैं. जिनमें 65,000 ठाकोर 50,000 पाटीदार या पटेल मतदाता हैं जबकि लगभग 35,000 दलित 20,000 भरवाड़ और रबारी समुदाय के मतदाता हैं. वहीं 20,000 मुस्लिम 18,000 कोली और 10,000 कराडिया राजपूत शामिल हैं. मैं जानता हूँ कि इस सीट पर अब तक विभिन्न जातियों के विधायक रहे हैं जिनमें 1980 में तेजश्री पटेल (पाटीदार) दाउदभाई पटेल (मुस्लिम) 2007 में कामभाई राठौड़ (करदिया राजपूत) और लाखभाई भरवाड़ (ओबीसी) शामिल हैं. इस बार मेरी जीत पक्की हो सकती है. मुसलमानो को छोड़ भी दें तो बाकी समाज के लोग हमें वोट देंगे. इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के इकबाल का लाभ भी हमें मिलेगा.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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