Tuesday, April 16, 2024
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हे अंधभक्त ! चुनाव में राममंदिर के नारे आज भी बीजेपी लगाती है लेकिन नोटबंदी पर कुछ क्यों नही बोलती !

अखिलेश अखिल

अंधभक्तों की नजर में पीएम मोदी किसी भगवान से कम नहीं हैं. भक्तों का बस चले तो हर गांव और चौराहे पर मोदी की मूर्ति लग जाए. हिंदू देवताओं की जगह मोदी की पूजा होने लगे. कई जगहों से इस तरह की कहानी सुनने को भी मिल रही है. इस देश का पाखंड भी अजीब है. अपने लोग अपने माता पिता को घर से बाहर निकालने में तनिक भी नही संकुचाते. प्रमाण के तौर पर देश धार्मिक स्थलों पर बने वृद्धाश्रम इसके ग्रह हैं. देश के हर धार्मिक स्थल पर वृद्धा आश्रमों की लंबी कतार है. इसके अलावा सरकार भी वृद्धाश्रम चलाती है. इन वृद्धाश्रमों की क्या दशा है और वहां परित्यक्त माता पिता किस हाल में होते हैं यह कौन नही जानता ! हिंदुओं की यह कहानी भरमाती भी है और लुभाती भी है. जो संतान अपने माता पिता को साथ नही रख सकती, उसके बारे में हिंदू धर्म ग्रंथों में ही कहा गया है कि वह संतान नरक में जाती है. लेकिन धर्म की माला जपने वाले पाखंडी अधभक्त शायद यह नही समझ पाते.

पिछले एक दशक में अंधभक्तो की श्रृंखला बड़ी हुई है. मुसलमानों में अशिक्षित लोग अंधभक्ति के शिकार ज्यादा हुए है, लेकिन हिंदुओं में ऐसे अंधभक्त भी है जिनके पास अच्छी डिग्री है और समझ भी. हिंदुओं की यह अंधभक्ति बहुत कुछ कहती है. इस अंधभक्ति में कोई वैज्ञानिक समझ नही है. न ही कोई तर्क. यह सपाट अंधभक्ति हैं, जो मोदी प्रेम से जुड़ी है और मुस्लिम विरोध पर टिकी है. दूसरे श्रेणी में ऐसे अंधभक्त खड़े हैं, जो लालच और लोभ से ग्रसित हैं. ये अपराध भी करते हैं, कुकर्म भी करते हैं और बेईमानी भी लेकिन कही से मुफ्त में कुछ और पाने की जुगत में अपने मानव रूपी अराध्य का जयकारा भी लगाते है.

वैसे बेइमानो का कोई धर्म नही होता. वो सुविधा भोगी होते हैं और एक नंबर के ठग भी. देश की हालत से इनका कोई मतलब नहीं होता. इनका मकसद सिर्फ यही होता है कि इनके आला पर कोई अंगुली नही उठे. जो राशन, पैसा और धर्म का जहर बांटता है. उसकी कोई हानि न हो. कह सकते है कि मूर्ख भक्तों में फ्री राशन और पैसे की लालच को मौजूदा मोदी सरकार भी समझ गई है. और उसे पता है कि जबतक फ्री वाली चीजें जारी रहेंगी. भक्ति भी चलती रहेगी और चुनावी जीत भी.

अब मुद्दे की बात, मोदी और उनके लोग चुनाव में अक्सर उस मुद्दे को जरूर उठाते है जो लोगों को भाते है. मसलन मंदिर का मुद्दा, धारा 370 हटाने की बात और हिंदुत्व के नारे. लेकिन बीजेपी कभी देश की हालत, चीन के साथ भारत के खराब होते रिश्ते, नोटबंदी का असर, भ्रष्टाचार, बैंक लुटेरों को कहानी, बेरोजगारी की बात, आयत निर्यात की सच्चाई, बंद होते उद्योग धंधे और लगातार एफडीआई में हो रही कमी की बात मोदी के लोग नही कहते.

कहेगा भी कौन ? मोदी सरकार चार लोगों की सरकार है. कहने के लिए बहुत से मंत्री है. मगर न इनकी कोई पहचान है और न ही कोई काम. सांसद और विधायकों की कोई औकात नही कि वो कोई सवाल कर सके. ऐसे में अब जब नोटबंदी के 6 साल हो गए तो इस पर बहुत से सवाल उठने लगे हैं. लेकिन खेल देखिए जिस नोटबंदी को मोदी रामबाण कहके प्रचारित कर रहे थे अब उस पर कुछ नही बोलते. चुनाव में तो नोटबंदी का नाम तक नहीं लेते. भक्तों को भी इस पर आश्चर्य हो रहा है.

8 नवंबर को भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में खास तौर पर याद किया जाता है. क्योंकि 6 साल पहले इसी दिन रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक देश में नोटबंदी का एलान किया था. नोटबंदी के तहत भारतीय बाजार में चलने वाले 500 और 1000 के नोटों को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया था.

अचानक से लगाई गई नोटबंदी की वजह से देश में अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया था. नोटबंदी ऐसे समय में लगाई गई थी, जब शादी ब्याह का सीजन चल रहा था. ऐसे में लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. भारी ठंड के बीच में लोग दिन-रात बैंकों के बाहर लाइन में खड़े रहने को मजबूर थे. कुछ रिपोर्ट की मानें तो नोटबंदी के दौरान बैंकों के चक्कर काट रहे करीब 33 लोगों की मौत हो गई थी.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने नोटबंदी को लेकर जारी अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि नोटबंदी लागू होने के करीब 4 महीनों के अंदर ही 15 लाख लोग बेरोजगार हो गए थे. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 की सितंबर से दिसंबर तिमाही में जॉब का आंकड़ा करीब 40 करोड़ 65 लाख था, जबकि जनवरी से अप्रैल 2017 के बीच में यह आंकड़ा घटकर 40 करोड़ 50 लाख हो गया था.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में 30.88 लाख करोड़ रुपए कैश सर्कुलेशन में है. 21 अक्टूबर 2022 को खत्म हुए पखवाड़े में जनता के पास 30.88 लाख करोड़ रुपये कैश होने की बात सामने आई है, जो 4 नवंबर 2016 को मौजूद 17.97 लाख करोड़ रुपये से 71.84% ज्यादा है. नोटबंदी के बाद 25 नवंबर 2016 को लोगों के पास 9.11 लाख करोड़ रुपये का कैश मौजूद था. जिसमें अब 239 फीसदी का इजाफा हुआ है. क्या इस रिपोर्ट पर सरकार कुछ क्यों नहीं बोलती. भक्त भी मैं है. भक्तों को इस मसले से ध्यान हटाने के लिए बीजेपी की आईटी सेल हर रोज झूठी खबर परोस देती है. मसलन दुनिया में भारत का डंका बज रहा है. मोदी के कहने से रूस यूक्रेन युद्ध रूक गया. दुनिया में भले ही आर्थिक संकट है, लेकिन भारत में सब ठीक है. नेहरू जी मुसलमान थे. महात्मा गांधी ने देश के लिए ठीक नहीं किया था. इंदिरा गांधी का पति मुस्लिम था. पूरा गांधी परिवार मुस्लिम है. सोनिया गांधी के पास अकूत संपत्ति है और उसके कई एयरलाइंस चलते हैं. अंधभक्त इन्ही झूठी और पाखंड भरी प्रपंचों में मस्त है.

याद रहे नोटबंदी के दौरान भारतीय बाजारों में चल रहे पुराने 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद करके केन्द्र सरकार ने इनकी जगह पर 200 रुपये, 500 रुपये और 2000 रुपये के नए नोट जारी किये. सरकार ने कहा था कि नोटबंदी से देश का कलाधन सामने आएगा. आतंकवाद नक्सलवाद खत्म होगा. अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ेगी. लेकिन ये सारी जीचे तो नही हूं, उल्टे नकली नोटों से देश की अर्थव्यवस्था भारती जा रही है. पिछले 6 सालों में जितने नकली नोट पकड़े गए है. आजाद भारत में इससे पहले कभी नहीं पकड़े गए. फिर कलाधान की कहानी तो और भी बहुत कुछ कहती है. पिछले पांच साल में ही 2 हजार के सभी नोट कालाधन की भेंट चढ़ गए. अब इसकी छपाई भी नही होती. इसी कालाधान से सांसद, विधायकों की खरीद बिक्री की जा रही है. भक्त समाज सब देख रहा है लेकिन फ्री मिलने वाली चीजें उनके मनोबल को तोड़ती नही बल्कि और बढ़ती है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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