Home ताज़ातरीन हिजाब बैन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, प्रशांत भूषण ने उठाए कई सवाल 

हिजाब बैन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, प्रशांत भूषण ने उठाए कई सवाल 

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हिजाब बैन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी, प्रशांत भूषण ने उठाए कई सवाल 

 

हिजाब बैन मामले पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार की सुनवाई पूरी हो गई. कोर्ट में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि जब स्कूलों में पगड़ी, तिलक और क्रॉस को बैन नहीं किया गया तो फिर हिजाब पर बैन क्यों. यह एक धर्म को निशाना बनाने का मामला है. किसी निजी क्लब में एक ड्रेस कोड हो सकता है, लेकिन सार्वजनिक शिक्षण संस्थान ऐसा नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को ड्रेस निर्धारित करने का अधिकार है. प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा कि यह हर तरह से भेदभावपूर्ण है. सिर्फ हिजाब पर प्रतिबंध लगाना मनमाना है, इसके लिए आपको धार्मिक पहचान के सभी प्रतीकों पर समान रूप से प्रतिबंध लगाना होगा.

अगर कोई हिजाब पहनकर अपनी धार्मिक पहचान जाहिर करना चाहता है तो सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और शालीनता का तर्क देकर इसे बैन नहीं किया जा सकता. मामले में अगली सुनवाई 19 सितंबर को होगी. कोर्ट का मानना है कि मंगलवार यानी 20 सितंबर को मामले की सुनवाई पूरी हो जाएगी. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले की सुनवाई कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ इसे जानने की जरूरत है :

प्रशांत भूषण- यह एक धर्म को निशाना बनाने का मामला है. जब स्कूलों में पगड़ी, तिलक और क्रॉस को बैन नहीं किया गया तो फिर हिजाब पर बैन क्यों?

जस्टिस गुप्ता : तो आपका कहना है कि सरकारी स्कूलों में यूनिफॉर्म नहीं हो सकती है?

प्रशांत भूषण : हां, लेकिन अगर कर भी सकते हैं तो हिजाब पर रोक नहीं लगा सकते.

कॉलिन गोंजाल्विस : जब सिखों को कृपाण रखने की आजादी दी है, पगड़ी पहनने को मंजूरी दी गई है और जब कृपाण और पगड़ी को संवैधानिक संरक्षण दिया जा सकता है तो फिर हिजाब में क्या दिक्कत है?

न्यायमूर्ति गुप्ता : न्यायालय पुराने मामलों के आधार पर फैसला लेता है. हिजाब का केस यह था कि यह एक आवश्यक धार्मिक प्रथा थी. हम उसी तर्क के आधार पर सुनवाई कर रहे हैं.

संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए मामला : सिब्बल

वहीं, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मामला संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए. मामले की सुनवाई शुरू होने से पहले सिब्बल ने कहा था कि यह मांग इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मैं क्या पहनूं या ना पहनूं, यह तय करने का अधिकार हर किसी को होना चाहिए.

कानून, अभिव्यक्ति को तब तक प्रतिबंधित नहीं कर सकता, जब तक कि वह सार्वजनिक व्यवस्था या नैतिकता और शालीनता के खिलाफ न हो. अभी तक कर्नाटक में ऐसी कोई अप्रिय घटना सामने नहीं आई है, जिससे राज्य के लिए संविधान के विपरीत हस्तक्षेप करने की स्थिति उत्पन्न हो.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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