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सीजेआई ने कहा कानून दमन का जरिया न बने, बल्कि न्याय का साधन बने 

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सीजेआई ने कहा कानून दमन का जरिया न बने, बल्कि न्याय का साधन बने 
  1. सीजेआई ने कहा कानून दमन का जरिया न बने, बल्कि न्याय का साधन बने

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि यह आश्वस्त करना हम सभी की जिम्मेदारी है कि कानून दमन का जरिया न बने, बल्कि न्याय का साधन बना रहे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकों को अपेक्षा रखना अच्छी बात है, लेकिन इन सबके बीच हमें सीमाओं के साथ संस्थानों के रूप में अदालतों की क्षमता को भी समझने की जरूरत है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह बात हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में कही. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि औपनिवेशिक काल में वही कानून जैसा कि आज कानून की किताबों में मौजूद है, दमन के एक साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. हम नागरिकों के रूप में यह कैसे आश्वस्त करें कि कानून न्याय का साधन बने और कानून उत्पीड़न का साधन न बने ?

जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक बेहतर न्यायाधीश को परिभाषित करते हुए कहा कि जब आपके पास अपने सिस्टम में अनसुनी आवाजों को सुनने की क्षमता है, सिस्टम में अनदेखे चेहरे को देखने की कुवत है और फिर देखें कि कानून और इंसाफ के बीच संतुलन कहां है, तो आप वास्तव में एक न्यायाधीश के रूप में अपना मिशन पूरा कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया ने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक को पेश किया है. ऐसा इसलिए है क्योंकि एक न्यायाधीश द्वारा अदालत में कहे जाने वाले हर छोटे शब्द की रीयल-टाइम रिपोर्टिंग होती है और एक न्यायाधीश के रूप में आपका लगातार मूल्यांकन किया जाता है.

उन्होंने कहा कि हम इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में हैं. मेरा मानना है कि हमें फैशन, री-इंजीनियरिंग, नए समाधान खोजने, फिर से प्रशिक्षित करने, फिर से तैयार करने, यह समझने की कोशिश में अपनी भूमिका पर दोबारा विचार करने की जरूरत है कि हम जिस उम्र में रह रहे हैं, उसकी चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मुझे लगता है कि कानून को संभालने में फैसला लोग लेने वाले सभी लोगों को शामिल होना चाहिए, न कि सिर्फ न्यायाधीश को. सीजेआई ने कहा कि लंबे समय तक जो चीज न्यायिक संस्थानों को बनाए रखती है, वह करुणा की भावना, सहानुभूति की भावना और नागरिकों के रोने का जवाब देने की क्षमता है.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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