Home देश सियासी विरोध दुश्मनी में नहीं बदलना चाहिए, जैसा कि आजकल हो रहा है: चीफ जस्टिस एन.वी रमना 

सियासी विरोध दुश्मनी में नहीं बदलना चाहिए, जैसा कि आजकल हो रहा है: चीफ जस्टिस एन.वी रमना 

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सियासी विरोध दुश्मनी में नहीं बदलना चाहिए, जैसा कि आजकल हो रहा है: चीफ जस्टिस एन.वी रमना 

 

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने जल्दबाजी और अंधाधुंद गिरफ्तारियो और अपराधियों को जमानत मिलने में हो रही देरी पर सख्त एतराज जताया है. उन्होंने कहा कि आज जैसे हालात हैं, उसमें हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रक्रिया ही सजा है. चीफ जस्टिस ने कहा कि विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रखने के मुद्दे पर फौरन ध्यान दिये जाने की जरूरत है. चीफ जस्टिस एनवी रमना ने ये बातें जयपुर में आयोजित 18वीं भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण की एक बैठक मीटिंग में कही.

 

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि “हमे आपराधिक न्याय प्रशासन की दक्षता को भी बढ़ाने के लिए एक समग्र योजना बनाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि पुलिस का प्रशिक्षण, संवेदीकरण और जेल प्रणाली का आधुनिकीकरण आपराधिक न्याय के प्रशासन में सुधार का एक पहलू है.” इसके बाद मुख्य न्यायधीश ने कहा कि “संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए विपक्ष को भी मजबूत करने की मांग होती है. हमारे पास सरकार का एक रूप है जहां कार्यपालिका, राजनीतिक और संसदीय दोनों, विधायिका के प्रति जवाबदेह हैं. जवाबदेही लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है.” उन्होंने आगे कहा कि मैनें कई मौकों पर संसदीय बहसों और संसदीय समितियों के महत्व पर प्रकाश डाला है. सही में मैं विधायी बहसों की प्रतीक्षा करता था. उस समय खास यह था कि विपक्ष के नेता प्रमुख भूमिका निभाते थे. सरकार और विपक्ष के बीच काफी आपसी सम्मान हुआ करता था. दुर्भाग्य से विपक्ष की गुंजाइश कम होती जा रही है.

 

चीफ जस्टिस का यह बयान एक ऐसे समय में सामने आया है जब देश में मोहम्मद जुबैर और गुजरात के नेता जिग्नेश मेवानी की गिरफ्तारी को लेकर जबरदस्त विवाद हुआ. इस समारोह में केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू, सुप्रीम कोर्ट के अन्य वरिष्ठ जज और राजस्थान हाइकोर्ट के जज भी मौजूद थे.

 

बता दें कि चीफ जस्टिस की यह टिप्पणी उस वक्त आई है जब कुछ दिन पहले खुद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कैदियों की जल्द रिहाई को कारगर बनाने के लिए ‘जमानत अधिनियम’ बनाने पर विचार करने को कहा था. चीफ जस्टिस एनवी रमना बीते कुछ समय में न्यायपालिका की कार्यशैली और संविधान को सुचारू रूप से लागू कराने में इसकी भूमिका को लेकर भी टिप्पणी कर चुके है. उन्होंने कुछ दिन पहले ही कहा था कि भारत में सत्ता में मौजूद कोई भी दल यह मानता है कि सरकार का हर कार्य न्यायिक मंजूरी पाने का हकदार है, जबकि विपक्षी दलों को यह उम्मीद होती है कि न्यायपालिका उनके राजनीतिक रुख और उद्देश्यों को आगे बढ़ाएगी लेकिन ‘न्यायपालिका संविधान और सिर्फ संविधान के प्रति उत्तरदायी’ है.

 

उन्होंने इस बात को लेकर निराशा जताई कि आजादी के 75 साल बाद भी लोगों ने संविधान द्वारा प्रत्येक संस्था को दी गई भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को नहीं समझा है.

सीजेआई ने कहा कि चूंकि हम इस साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं और देश के गणतंत्र हुए 72 साल हो गये हैं, ऐसे में कुछ अफसोस के साथ मैं यहां कहना चाहूंगा कि हमने संविधान द्वारा प्रत्येक संस्था को प्रदत्त भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को अब तक नहीं समझा है.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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