इस बार नोबेल का शांति पुरस्कार यूक्रेन और रूस के दो मानवाधिकार संगठनों की मिला है. ये दोनों संगठन लम्बे समय से वॉर क्राइम के खिलाफ काम कर रहे थे. वॉर क्राइम के खिलाफ काम कर रहे यूक्रेन के ऑर्गेनाइजेशन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज का नाम विजेताओं में है. ओलेक्सांद्रा मात्वीचुक इस संगठन की हेड हैं. इस संगठन की स्थापना 2007 में की गई थी. यूक्रेन पर रूसी हमले के पहले से ही वे मानवाधिकार से जुड़े मुद्दे उठाती रही हैं. युद्ध की शुरुआत के वक्त वे यूक्रेन की राजधानी कीव में थीं. बरसती मिसाइलों के बीच उन्हें बंकर में छिपना पड़ा था. नोबेल पुरस्कार का ऐलान होते वक्त भी वो ट्रेन में थीं और पोलैंड से कीव जा रही थीं. इसके साथ ही रूस के ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन मेमोरियल को भी शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है. यह संगठन 1987 में बना था. सोवियत संघ के 15 हिस्सों में बिखरने के बाद रूस का यह सबसे बड़ा मानवाधिकार संगठन बना.
हालांकि इस बार भारत से भी तीन लोग अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुए थे. टाइम मैगजीन ने भारत से तीन लोगों के नाम नोबेल पीस प्राइज की दौड़ में होने की जानकारी दी थी. इनमें फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा के अलावा सांप्रदायिकता के खिलाफ काम करने वाले कारवां-ए मोहब्बत संस्था के हर्ष मंदर थे. हालांकि, तीनों भारतीयों को नोबेल नहीं मिला. हालांकि बड़ी बात यह है कि भारतीयों को भले ही पुरस्कार नहीं मिले हों लेकिन लम्बे समय के बाद तीन भारतीयों का नाम नॉमिनेट होना भी कम बात नहीं है.
नोबेल का शनिति पुरस्कार पाने वाली 39 साल की ओलेक्सांद्रा यूक्रेन के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन में भी एक्टिव थीं. उन्हें 2014 में नॉर्वे का जूर लिंडरब्रेके सम्मान मिला था. रूस ने फरवरी में यूक्रेन पर हमला कर राजधानी कीव को घेर लिया था. तब ओलेक्सांद्रा देशभर से भागकर कीव पहुंच रहे लोगों की मदद करने लगीं. ओलेक्सांद्रा पुतिन और रूस के विरोध का चेहरा बन गईं. वो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लगातार यूक्रेन का पक्ष भी रखती रहीं.
ओलेक्सांद्रा यूक्रेन के ह्यूमन राइट्स कमिश्नर ऑफिस में सलाहकार रह चुकी हैं. वो यूक्रेन में मानवाधिकार के मुद्दों पर सालाना रिपोर्ट पब्लिश करती हैं. यूक्रेन में नवंबर 2013 में रूस समर्थक राष्ट्रपति के खिलाफ यूरोमैडन आंदोलन शुरू हुआ था. तब ओलेक्सांद्रा ने लोगों की मदद के लिए इमरजेंसी सेंटर चलाया. 30 नवंबर को सरकार ने कीव में प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया. इसी के बाद ओलेक्सांद्रा चर्चा में आईं थीं.
नोबेल पीस प्राइज के लिए चुने जाने के बाद ओलेक्सांद्रा ने कहा- ह्यूमन चार्टर के उल्लंघन के लिए रूस को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से बाहर किया जाना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र को युद्ध पीड़ितों के साथ न्याय करना चाहिए. एक इंटरनेशल ट्रिब्यूनल बनाकर रूस के राष्ट्रपति पुतिन, बेलारूस के राष्ट्रपति लूकाशेन्को और दूसरे युद्ध अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए. यूक्रेन के पीड़ितों को न्याय दिए बिना स्थायी शांति नहीं आ सकती है.
ओलेक्सांद्रा बेलारूस और रूस में भी मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे उठाती रही हैं और दोनों देशों की सरकार की आलोचक हैं. ओलेक्सांद्रा का संगठन यूक्रेन में सिर्फ लोगों की नहीं बल्कि जानवरों के बचाव में भी मदद कर रहा है. वो मानती हैं कि अगर पुतिन के युद्ध को यूक्रेन में ही नहीं रोका गया तो वो बाकी यूरोप की तरफ भी बढ़ सकते हैं.
उधर जेल में बंद बेलारूस के ह्यूमन राइट्स एडवोकेट आलिस को शांति का नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है. आलिस 2011 से 2014 तक आलिस जेल में रहे. 2020 में उन्हें फिर अरेस्ट कर लिया गया. तभी से वो जेल में हैं. आलिस ने 1980 में बेलारूस की तानाशाही के खिलाफ डेमोक्रेसी मूवमेंट का आगाज किया था. वो आज तक अपने देश में सच्चा लोकतंत्र बहाल करने की जंग लड़ रहे हैं. रूस-यूक्रेन जंग में बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको व्लादिमिर पुतिन के साथ खड़े हैं. आलिस का संगठन जेल में बंद लोकतंत्र समर्थकों को कानूनी मदद देता है. आलिस खुद भी अभी जेल में हैं.
रूस के ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन मेमोरियल को भी शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है. यह संगठन 1987 में बना था. सोवियत संघ के 15 हिस्सों में बिखरने के बाद रूस का यह सबसे बड़ा मानवाधिकार संगठन बना. इसने स्टालिन के दौर से अब तक राजनैतिक कैदियों के लिए आवाज उठाई. रूस ने जब चेचेन्या पर हमला किया और 2009 में संगठन की नतालिया एस्तेमिरोवा मारी गईं तो इस संगठन ने विश्व स्तर पर आवाज उठाई. रूसी सरकार इसे विदेशी जासूसों का संगठन बताती है.