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महिला खिलाड़ियों की रुदाली का अंत नहीं ——

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महिला खिलाड़ियों की रुदाली का अंत नहीं ——

अखिलेश अखिल

गजब की राजनीति. इस्तीफा भी नहीं और फेडरेशन चलता रहेगा. खिलाड़ी काम करते रहेंगे. बृजभूषण सिंह पर करवाई नहीं होगी. जांच होती रहेगी. अंत में फैसला यही हुआ. सरकार का यह खेल समझ से परे है. धरने पर बैठे खिलाड़ी वापस चले गए और संघ प्रमुख बृजभूषण अपनी मूछो पर ताव फेरते ठहाका लगाते रहे. राजनीति का यह सच बहुत कुछ कहता है. यह भरमाता भी है और लुभाता भी है. महिला खिलाड़ी पहले भी रुदाली कर रही थी, आगे भी शायद यही सब चलता रहे. सच तो यही है कि कुश्ती फेडरेशन में बृजभूषण सिंह का कार्यकाल मार्च महीने तक है. बवाल नहीं होता तो वो फिर से चुने, जाते लेकिन अब संभव नहीं.

उन्होंने बीजेपी को बताया कि वो कलंकित होकर नहीं हटेंगे. सरकार यही रास्ता निकाले कि अब हम फेडरेशन का काम नहीं देखेंगे. और ऐसा नहीं हुआ तो हम अपना मुँह खोलेंगे. जिससे सुनामी आएगी. यह भयानक बयान था. यह बयान खिलाड़ियों के लिए, उन नेताओं के लिए भी था जो कई दूसरे फेडरेशन को हाँक रहे हैं, और इसी तरह के खेल में संलिप्त रहे हैं. भला इतनी बड़ी जहमत सरकार कैसे मोल लेती. फिर तय हुआ कि सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे. लोकतंत्र का यह खेल गजब का है.

देर शाम तय हुआ कि खिलाडियों के आरोप को लेकर एक जांच समिति गठित की जाएगी जो चार हफ्ते में रिपोर्ट देगी. तत्काल बृजभूषण फेडरेशन का काम नहीं देखेंगे. खिलाड़ी वापस जाए और अपने खेल पर ध्यान दें. खिलाड़ियों से कहलवाया गया कि वो सब खेल मंत्री से सहमत हैं और उन्हें निष्पक्ष जांच की उम्मीद है. फिर सब अपने घर को रवाना हो गए. लेकिन सवाल है कि महिला खिलाडियों ने जिस विषय को सामने रखकर आवाज बुलंद की थी. उस पर कोई कार्रवाई होगी ? क्या आपको लगता है कि एक नेता दूसरे नेता को दण्डित करेगा और क्या बृजभूषण पर लगे आरोप कभी सामने आएंगे ? खेल प्राधिकरण के पास यौन शोषण के चार दर्जन मामले पहले से ही लंबित है. कई कोचों पर यौन शोषण के मामले दर्ज है, कोई परिणाम सामने आया अबतक ? और जांच कमिटी की तो यही कहानी अबतक रही है कि तत्काल मुद्दों को डायवर्ट करने के लिए यह सब किया जाता है. तत्काल मुद्दों को दबा दिया जाता है. यही इतिहास इस देश में हर जांच कमेटी का रहा है.

लेकिन इसी बीच एक और घटना सामने आयी है. हरियाणा सरकार के मंत्री और बीजेपी नेता संदीप सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला कोच ने अब खेल विभाग के एक वरिष्ठ महिला अधिकारी पर आरोप लगाया है. महिला कोच ने कहा है कि महिला अधिकारी ने मुझसे कहा कि मैंने बालों में जो कलर करवा रखे हैं, इससे ऐसी लड़कियों के तो रेप होने ही चाहिए. महिला कोच ने उस महिला अधिकारी के खिलाफ खेल विभाग में शिकायत भी दर्ज की है. जांच भी हुई इस मामले में. लेकिन महिला कोच जांच से संतुष्ट नहीं है. महिला कोच कह रही है कि पुलिसिया जांच से मेरा विश्वास उठ चूका है, और मैं कोर्ट का रुख करुँगी.

ऐसे प्रकरण में अक्सर यही सब होता है, और शायद होता भी रहेगा. हालिया मामले का अंजाम भी यही होगा. खिलाड़ी आखिर करेंगे क्या ? उन्हें अपने करियर का भी तो डर सत्ता रहा है. राजनीतिक लोग इसी का लाभ उठाते हैं.

उधर विनेश फोगट के परिजनों ने जो कुछ कहा है, उस पर भी गौर करने की जरुरत है. विनेश फोगट के भाई हरविंद्र फोगट ने कहा कि महिला खिलाड़ियों के साथ इस तरह के वर्ताव ठीक नहीं. अगर ऐसे ही चलता रहा तो कौन सा परिवार अपनी बहन बेटियों को खेल के मैदान में उतारेगा ? क्या देश इस बात को सुन सकेगा ? हरगिज नहीं. जो देश सालों भर चुनाव में मस्त रहता है, और जाति और धर्म की चाशनी में डूबकर चुनाव में कूद-कूद कर वोट डालता है. उस समाज को इतनी फुर्सत कहाँ कि महिलाओं की तार-तार होती इज्जत पर सवाल खड़ा करे. सच तो यही है कि यह सब पहले से होता रहा है, और आगे भी होता रहेगा.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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