चुनाव आयोग ने शिवसेना के दोनों गुटों को नोटिस जारी का कहा है कि वो आठ अगस्त तक पार्टी पर अपने दावे को लेकर सम्बंधित दस्तावेज जमा करें. उधर सुप्रीम कोर्ट भी संविधान पीठ गठित करने को तैयार है जो शिवसेना के बंटवारे का फैसला करेगी और यह तय करेगी कि शिवसेना के भीतर जो कुछ भी हुआ है उसमे पार्टी पर दावा किसका बनता है.
चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों को पार्टी में विवाद पर अपना लिखित स्टेटमेंट देने को भी कहा है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उपजे शिवसेना पर संकट पर दोनों गुटों के अपने-अपने दावे हैं. शिंदे गुट के पास पार्टी के 55 में से 40 विधायकों और 18 लोकसभा सांसदों में से 12 का समर्थन है. वहीं, ठाकरे गुट पार्टी के कार्यकारिणी के समर्थन का दावे पर अपना पक्ष मजबूत किए है.
महाराष्ट्र के सियासी संकट पर उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाले खेमे और एकनाथ शिंदे खेमे की याचिकाओं पर चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच अगली सुनवाई अब 1 अगस्त को करेगी. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने विधायकों की सदस्यता मामले में पीठ गठित करने की बात भी कही थी.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ ही डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी शपथ ली थी. उनके शपथ ग्रहण के बाद से मंत्रिमंडल विस्तार का कार्यक्रम अटका हुआ है. विधायकों की सदस्यता पर फैसला होने के बाद ही मंत्रिमंडल के विस्तार की अटकले हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिवसेना पर फैसला होगा. शिंदे गुट को अगर कोर्ट से राहत मिलती है, तो चुनाव आयोग जाएगी. हालांकि शिवसेना पर दावा इतना आसान नहीं है. इसकी वजह शिवसेना का सांगठनिक स्ट्रक्चर है.
बता दें कि शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने 1976 में शिवसेना के संविधान का मसौदा तैयार किया. इस संविधान के अनुसार यह घोषणा की गई थी कि सर्वोच्च पद यानी ‘शिवसेना प्रमुख’ के बाद 13 सदस्यों की कार्यकारी समिति, पार्टी को लेकर कोई भी निर्णय ले सकती है.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, सुधीर जोशी, लीलाधर दाके, सुभाष देसाई, दिवाकर राउत, रामदास कदम, संजय राउत और गजानन कीर्तिकर शामिल हैं. इनमें से ज्यादातर अभी उद्धव के साथ ही हैं.