Monday, December 9, 2024
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बीजेपी की तिकडमी राजनीति को बांधने की तैयारी 

 

बिहार में खेला हो गया, और बीजेपी ताकती रह गई. बीजेपी की तरफ से हलकी कोशिश तो की गई, लेकिन पूरे मन से नहीं. बीजेपी की प्रदेश इकाई मन से कोशिश चाहती भी नहीं थी, और केंद्रीय इकाई को पहले से सब पता चल गया था कि इस बार बड़ा खेला होगा. नीतीश मानेंगे नहीं. सो वह सब होता चला गया, जिसकी सम्भावना थी. बिहार में एनडीए ख़त्म हो गया है. और आगे क्या कुछ हो सकता है, इसकी सम्भावना बीजेपी तलाश रही है. लेकिन जिस अंदाज में जदयू बीजेपी पर हमलावर है. उससे बीजेपी सहम भी रही है. उसे लगने लगा है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी लम्बे समय तक जनता के बीच झूठ की राजनीति के सहारे खेला नहीं जा सकता.

बिहार में 9 साल में ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब बिहार में बीजेपी अपने ही गठबंधन सरकार को नहीं बचा पाई है. इससे पहले 16 जून, 2013 को नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ा था, और महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. बीते 6 साल में 7 राज्यों में सेंधमारी की कोशिश कर चुकी बीजेपी 4 राज्यों में सरकार बनाने में तो सफल रही, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि यही बीजेपी बिहार में नीतीश कुमार से दो-दो बार मात खा गई. बीजेपी के खेल पर नजर डालने की जरूरत है.

कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों को बीजेपी के पाले में करना और कमलनाथ की सरकार गिरा देना. इसके लिए बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा के हाथ में कमान सौंपी गई. 2018 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस ने निर्दलियों की बैसाखी पर सरकार बनाई. बड़े नेताओं ने सिंधिया से संपर्क साधा, और 9 मार्च 2020 को सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर दी. इन विधायकों को चार्टर प्लेन से बंगलुरु पहुंचा दिया गया. तमाम कोशिशों के बाद भी सिंधिया नहीं माने और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. बीजेपी सफल हो गई.

उधर, राजस्थान का सीएम नहीं बन पाने के कारण नाराज सचिन पायलट के जरिए कांग्रेस विधायकों को बीजेपी के पाले में कर अशोक गहलोत की सरकार को गिराने के लिए राजस्थान बीजेपी की स्टेट यूनिट को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई. राजस्थान में 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर मुश्किल से बहुमत आंकड़ा छुआ था. बसपा और निर्दलियों को कांग्रेस के पाले में कर सीएम अशोक गहलोत ने अपनी कुर्सी मजबूत करने की कोशिश की. ऐसे में बीजेपी के ‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए सचिन पायलट सबसे मुनासिब चेहरा थे. राजस्थान बीजेपी के नेताओं ने उनकी नाराजगी को भांप उनसे संपर्क किया. 11 जुलाई 2020 सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ लेकर सचिन गुरुग्राम के एक होटल में पहुंच गए. गहलोत ने भी अपने पाले वाले विधायकों को एक होटल में रखा. इसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट से 10 अगस्त 2020 को बातचीत कर उन्हें मना लिया. यहां पर गहलोत भारी पड़े.

बीजेपी ने कर्नाटक में भी खेल किया. कांग्रेस के विधायकों को अपने पाले में करके विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा कम कर और सरकार बनाने का खेल किया. बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को इस पूरी स्ट्रैटजी की कमान सौंपी. 2017 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ भी ले ली, लेकिन फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाए. सरकार गिर गई. इसके बाद कांग्रेस के 80 विधायकों ने मिलकर सरकार बना ली. दो साल भी पूरे नहीं हुए थे कि पॉलिटिकल क्राइसिस शुरू हो गई. सरकार फ्लोर टेस्ट में फेल हो गई और सीएम कुमारस्वामी ने इस्तीफा दे दिया.

फरवरी 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस 17 सीटों के साथ सबसे बड़ा पार्टी बनकर उभरी. सत्ता की चाबी छोटे दलों और निर्दलियों के हाथ में थी. मनोहर पर्रिकर ने 21 विधायकों के समर्थन की बात कहते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया. राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने उन्हें सरकार गठन का न्यौता दे दिया. राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि गोवा में कांग्रेस के बहुमत का बीजेपी ने हरण कर लिया.

इसी तरह से 2014 के चुनाव बाद अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. हालांकि कांग्रेस के नेताओं के बीच की रंजिश खुलकर सामने आती रही. आखिरकार 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और 42 विधायक पार्टी छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हो गए. पीपीए ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई.

सीएम पद से हटाए गए कांग्रेस नेता विजय बहुगुणा की नाराजगी को भुनाकर कांग्रेस को तोड़ना और विधानसभा में बहुमत हासिल करना था. उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा रही. कांग्रेस 32 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि बीजेपी को 31 सीटें मिलीं. बीजेपी ने बहुगुणा की नाराजगी का फायदा उठाया. 18 मार्च 2016 को बहुगुणा समेत कांग्रेस के 9 विधायक बागी हो गए. हालांकि, उत्तराखंड के स्पीकर ने जब कांग्रेस के 9 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया तो केंद्र सरकार ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को बीजेपी के पाले में करना और उद्धव सरकार को गिराने देना के लिए बीजेपी नेता और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणनवीस के हाथ में कमान सौंपी गई. 21 जून को शिंदे 35 से अधिक विधायकों के साथ गुजरात पहुंचे. उन्होंने 35 से अधिक विधायकों के साथ होने का दावा किया. 22 जून को शिंदे 40 विधायकों के साथ गुवाहाटी पहुंचे. बागी विधायकों ने शिंदे को अपना नेता घोषित किया.

बीजेपी के इस खेल को कौन नहीं जनता ? अब बिहार की नयी कहानी अगर आगे बढ़ गई, और विपक्ष की एकता मजबूत हो गई तो आगे का खेल कुछ और ही हो सकता है. जिस तरह से जदयू के नेता बीजेपी पर हमला कर रहे हैं, अगर देश निर्माण को लेकर सभी दल एक जुट हो गए तो देश की राजनीति बदल भी सकती है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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