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बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 

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बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 

बिहार में जारी जातीय जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होनी है. अब अदालत का फैसला क्या होता है, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई है. दरअसल बिहार में चल रहे जातीय जनगणना को लेकर दो याचिकाएं सुप्रीम कोट में डाली गई और उसे असंवैधानिक बताने की कोशिश की गई है. याचिका में कहा गया है कि जातीय जनगणना संविधान के नियमो के खिलाफ राज्य सरकार करा रही है. अदालत इस पर रोक लगाए. याचिका में यह भी कहा गया है कि इससे समाज में भेदभाव उत्पन्न होगा.

उधर बिहार में जातीय जनगणना जारी है और कर्मचारी घर – घर जाकर लोगों की जानकारी ले रहे हैं. बता दे कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने जातीय जनगणना कराने की बात कही थी ताकि ओबीसी समुदाय को उनका हक़ मिल सके. लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने इसे कराने से इंकार कर दिया. बीजेपी को लगा कि ऐसी जनगणना से समाज में विद्वेष भी होगा. हिन्दू वोटों का बंटवारा भी. बीजेपी अभी हिन्दू वोट की राजनीति कर रही है और डर है कि जनगणना से जातीय आंकड़ों में कोई बदलाव आते है तो एक नयी राजनीति खड़ी होगी, और आरक्षण की मांग उठने लगेगी. इससे बीजेपी को नुक्सान हो सकता है.

उधर केंद्र सरकार के इंकार के बाद बिहार सरकार अपने खर्च पर जातीय जनगणना करा रही है. विपक्ष को लगता है कि इससे हर जाति का आंकड़ा सामने आएगा.

फिर उस जाति के विकास के लिए योजनाए बनाने में आसानी रहेगी. इससे यह भी पता चल जाएगा कि सूबे के भीतर जातीय स्ट्रक्चर कैसा है. आरक्षण की मांग उठती है तो सरकार को आरक्षण देनी होगी. लेकिन बीजेपी ऐसा नहीं चाहती. बीजेपी को लग रहा है यह खेल मंडल पार्ट 2 होगा और फिर देश की राजनीति एक अलग दिशा में चली जाएगी.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका डाली गई है वह बिहार नालंदा से आने वाले एक सज्जन हैं. उनका कहना है कि बिहार में जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए. जदयू के लोग मान रहे हैं कि याचिका करता बीजेपी के हैं, और बीजेपी के इशारे पर इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन इसमें कोई गलत नहीं है. देश में पहले भी कई राज्य इस तरह से जनगणना कर चुके हैं. इसमें असंवैधानिक कुछ भी. उधर आज इस मसले पर अदालत का क्या रुख होगा है यह देखने की बात होगी.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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