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बिहार महागठबंधन : ऊपर से एकता लेकिन भीतर से सुलगती आग

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बिहार महागठबंधन : ऊपर से एकता लेकिन भीतर से सुलगती आग

अखिलेश अखिल

बिहार की मौजूदा महागठबंधन सरकार का भविष्य क्या होगा, इसको लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. ऊपर से देखने में नीतीश कुमार की अगुवाई में सरकार चलती दिख रही है, लेकिन भीतर से राजद और जेडीयू के बीच खींचतान जारी है. राजद कोटे के कई मंत्री जेडीयू पर कई तरह के आरोप लगाते हैं, तो कई मंत्री यह कहते भी सुने जा रहे हैं कि वो अपनी इच्छा के मुताबिक कुछ नहीं कर पा रहे हैं. सूबे के आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री दबी जुबान से कहते है कि न अपने मुताबिक कोई अधिकारी वो रखने की स्थिति में हैं, और न ही वो कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं. राजद कोटे के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह पहले ही नीतीश सरकार से स्तीफा दे चुके हैं. सुधाकर सिंह लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर हैं. अब इनके आवाज को कई और मंत्री और राजद नेता धार देते नजर आ रहे हैं. नीतीश कुमार राजद के भीतर से उठ रही हर आवाज को सुन रहे हैं, और अपने नेताओं को कुछ भी बोलने से सचेत भी कर रहे है.

लेकिन मामला यही तक का नही है. जबतक लालू प्रसाद पटना में थे, तबतक सब ठीक चल रहा था, लेकिन जैसे ही वो इलाज के लिए सिंगापुर निकले, राजद नेताओं के हमले तेज हो गए है. राजद के लोग चाहते हैं कि तेजस्वी के हाथ में सत्ता की बागडोर सौंप कर नीतीश कुमार केंद्र को राजनीति करें. ऊपरी तौर पर नीतीश कुमार की भी यही इच्छा है लेकिन वो यह भी जानते हैं कि उनके दिल्ली की राजनीति में जाते ही पार्टी में टूट हो सकती है. नीतीश कुमार ये भी जानते हैं कि पार्टी के कई नेताओं पर अब भी बीजेपी की नजर है और बीजेपी वक्त मिलते ही पार्टी को तोड़ सकती है. इसके साथ ही कुछ नेता राजद और अन्य पार्टियों के साथ भी जा सकते हैं. ऐसे में पटना में रहकर ही विपक्षी एकता की कहानी आगे बढ़ाएंगे. नीतीश कुमार को कांग्रेस की भारत जोड़ा यात्रा की समाप्ति का इंतजार है.

जदयू सूत्रों का कहना है कि ये बात सही है कि मौजूदा बिहार सरकार में कुछ बातों को लेकर मंत्रियों के बीच अनबन है. लेकिन इतनी खराब भी नही है कि सरकार पर कोई आंच आ जाए. जदयू अभी इंतजार के मूड में है. कांग्रेस की यात्रा जैसे ही खत्म होगी. जदयू की राजनीति आगे बढ़ेगी. कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक कर विपक्षी एकता की रणनीति बनेगी.

एक सवाल के जवाब में जदयू नेता कहते हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं, और भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस को जो समर्थन मिलता दिख रहा है. उसमे राहुल की भूमिका को कमतर नहीं किया जा सकता. हम केवल वक्त का इंतजार कर रहे हैं. आने वाले दिनों में बड़ा फैसला होगा.

लेकिन जब प्रशांत किशोर के बयानों की तरफ जदयू नेता का ध्यान खींचा गया, तो वो मैं हो गए. प्रशांत किशोर ने पिछले दिनों कहा था कि नीतीश कुमार फिर से पलटी मारकर बीजेपी के साथ जा सकते है, और बीजेपी के कई नेताओं से इनके नेताओं की बातचीत जारी भी है. प्रशांत किशोर ने यहां तक कह दिया कि राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश के जरिए जदयू बीजेपी से तालमेल करती दिख रही है. बता दें कि हरिवंश जदयू के सदस्य हैं और बीजेपी से अलग होने के बाद भी हरिवंश ने इस्तीफा नही दिया है.

ये बात और है कि नीतीश कुमार बार बार प्रशांत किशोर के हमले को ओंकार करते हैं और प्रशांत किशोर की बातों को नोटिस न लेने को बात करते है, लेकिन राजद के बीच इन बातों को लेकर परेशानी तो बढ़ी है. राजद को लग रहा है कि जिस तरह नीतीश कुमार विपक्षी एकता को मजबूत करने के इरादे से निकले थे. उसका बेहतर रिस्पॉन्स नही मिलता देख, नीतीश कुमार आगे कुछ भी कर सकते हैं. यही डर राजद को ज्यादा सता रहा है. हालाकि नीतीश कुमार कई मंचों और प्रेस के सामने कह चुके है कि बीजेपी के साथ जाकर उन्होंने गलती की थी और अब कभी बीजेपी के साथ नही जायेंगे. लेकिन राजनीति में नेताओं के बयान ठीक उलट ही होते है.

जानकर मान रहे हैं कि अगर विपक्षी एकता की कहानी को नीतीश आगे नहीं बढ़ाते है और राहुल गांधी आगामी विधान सभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर देते है. तब नीतीश के प्रयास को झटका लग सकता है. राहुल गांधी विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार हो सकते हैं. इसके बाद फिर किसी नए मोर्चा की जरूरत नहीं होगी. केवल यूपीए का विस्तार होगा. जिसमे कई और दल शामिल हो सकते हैं.

दरअसल जदयू की कोशिश और रणनीति नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की है. लेकिन इसमें मुख्य अड़चन केसीआर और ममता बनर्जी हैं. उधर नीतीश कुमार भी अपनी ताकत को समझते है. साथ ही पवार और उद्धव की बढ़ती ताकत से भी नीतीश कुमार बखूबी वाकिफ हैं. ऐसे में नीतीश कुमार एक बड़ी ताकत बनने के लिए जनता परिवार की एकता को लेकर भी संभावना तलाश रहे हैं. कई खबरे इस बात को लेकर सामने आ रही है कि राजद और जदयू एक हो जाए. दोनो पार्टी के विलय को लेकर भी बाते चल रही है. और इसकी संभावना भी जताई जा रही है कि जनता परिवार को एक कर किसी नए नाम और सिंबल पर आगे की रणनीति बनाई जाए. कहा जा रहा है कि इसके लिए लालू प्रसाद भी सहमत हैं. अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर जनता परिवार की एकता बड़ी पार्टी के रूप में सामने आ सकती है. लेकिन अब सपा और जेडी एस की इसमें क्या भूमिका होगी और उसकी कितनी सहमति होगी यह देखने की बात है.

असली सवाल तो ये है कि बिहार की मौजूदा सरकार का क्या होगा. राजद के एक मंत्री ने साफ कहा है कि सरकार के भीतर कई मंत्री नाराज है. लेकिन इतनी मर्जी नही है कि सरकार पर कोई आंच आए. लेकिन यह भी सच है कि मंत्रियों को काम करने में जो दिक्कत आ रही है उसे नही निपटाया गया तो विपक्षी एकता कमजोर होगी और फिर बीजेपी को घेरना कठिन होगा.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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