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पीएफआई पर बैन : पसमांदा संगठन और लालू प्रसाद की प्रतिक्रियाएं बहुत कुछ कहती है 

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पीएफआई पर बैन : पसमांदा संगठन और लालू प्रसाद की प्रतिक्रियाएं बहुत कुछ कहती है 

 

पीएफआई पर लगे बैन के बाद इस पर पसमांदा संगठन की प्रतिक्रया सामने आयी है. ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की तरफ से जारी बयान के अनुसार, ‘देश में भारतीय संविधान के विरुद्ध एवं असामाजिक गतिविधियों में लिप्त तथाकथित सामाजिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के विरुद्ध भारत सरकार की सुरक्षा एजेंसी एनआईए द्वारा लगातार की जा रही छापेमारी से जो तथ्य सामने आए हैं, उससे यह जगजाहिर हो गया है कि संगठन देश के भीतर सामाजिक सौहार्द एवं भाईचारे के विरुद्ध तो काम कर ही रहा है. भारतीय संप्रभुता को भी चेतावनी देते हुए देश विरुद्ध कार्य में लिप्त है.’

संगठन ने कहा, ‘पीएफआई के अतिरिक्त अन्य सामाजिक संगठन जो अपने आप को देशहित की दुहाई दे रहे, उनहें भी देश की अखंडता एवं संप्रभुता के विरुद्ध कार्य करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.’

फारसी शब्द ‘पसमांदा’ का मतलब ‘पीछे छूटे हुए’ है. इसका इस्तेमाल मुसलमानों में पिछड़े वर्ग के लिए किया जाता है. आंकड़े बताते हैं कि भारत की कुल मुस्लिम आबादी का ये 85 प्रतिशत हैं. मुखर नहीं रहने और मजबूत नेतृत्व के अभाव में राजनीतिक दलों की तरफ से इन्हें काफी नजरअंदाज किया गया. हालांकि, बीजेपी अब स्थिति बदलती नजर आ रही है. बीजेपी की नजर पसमांदा समाज पर है और उसे लगता है कि मुसलमानो का यह बड़ा वर्ग उसके साथ आ गया तो उसकी राजनीति पहले से भी मजबूत होगी और विपक्ष के सारे खेल को पलटा जा सकता है. लेकिन यह कितना संभव होगा इसे देखना है. अभी देश के अधिकतर मुसलमान सपा, राजद, बसपा और कांग्रेस के साथ खड़े दिखते हैं.

उधर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने “पीएफआई प्रतिबंध” को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तीखा हमला किया है. उन्होंने आरएसएसको एक ”हिंदू चरमपंथी संगठन” बताया और कहा कि पीएफआई से पहले इसपर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए था. लालू प्रसाद यादव ने यह टिप्पणी एक कड़े आतंकवाद विरोधी कानून के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके कई सहयोगियों पर प्रतिबंध के बारे में पत्रकारों के सवालों के जवाब में की. लालू प्रसाद यादव ने कहा, “वो पीएफआई के हौसले को बढ़ाते रहते हैं. यह आरएसएस है, जो हिंदू चरमपंथ (‘कट्टारपंथ’) को बढ़ावा देता है और यह पहले प्रतिबंधित होने के योग्य है.”

बता दें कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है. पीएफआई पर कथित तौर पर हिंसा की एक श्रृंखला में शामिल होने और आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ “लिंक” होने का आरोप लगाया गया है.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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