Home विदेश पाकिस्तान ने की अमेरिका से मदद की गुहार, सीपीईसी से खींच सकता है हाथ

पाकिस्तान ने की अमेरिका से मदद की गुहार, सीपीईसी से खींच सकता है हाथ

पाकिस्तान ने की अमेरिका से मदद की गुहार, सीपीईसी से खींच सकता है हाथ

आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के बारे में एशिया टाइम्स ने दावा किया है कि जिस तरह से पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय अलगाव का सामना कर रहा है और और बलूचिस्तान इलाके में सीपीईसी का विरोध हो रहा है उससे से इमरान सरकार काफी निराश और हताश हैं। ऐसे में परेशान पाकिस्तान अब अपनी आर्थिक संकट को दूर करने के लिए चीन -पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी सीपीईसी को ख़त्म करने को तैयार है। खबर के मुताबिक़ पकिस्तान को अब यह लगने लगा है कि चीन पर अधिक निर्भरता की वजह से ही अमेरिका समेत दुनिया के बड़े देशों से न सिर्फ उसके सम्बन्ध ख़राब हो रहे हैं बल्कि पकिस्तान कई तरह के प्रतिबंधों का भी सामना कर रहा है। हालांकि एशिया टाइम्स ने यह भी दावा किया है कि पकिस्तान की इमरान सरकार को अगर अमेरिका मदद करने का वैसा ही यकीन करते जैसा की चीन कर रहा है तो इमरान सरकार सीपीईसी को ख़त्म कर सकता है। पकिस्तान के इस रुख का चीन क्या जवाब देगा यह तो बाद की बात है लेकिन आर्थिक संकट से बेहाल पाकिस्तान के पास कोई चारा भी नहीं दिखता। खबर के मुताबिक़ पाकिस्तान की इमरान सरकार ने इस दिशा में काम करना भी शुरू कर दिया है।
दरअसल, पाकिस्तान एक बार फिर अमेरिका के साथ संबंधो को सुधारने की कोशिश कर रहा है। इसीलिए प्रधानमंत्री इमरान खान ने मोईद यूसुफ को पाक नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर यानी एनएसए नियुक्त किया है। एशिया टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया है कि अगर पाकिस्तान को वाशिंगटन से इसी तरह की वित्तीय सहायता मिलती है तो वह चीन के साथ सीपीईसी को खत्म कर देगा। याद रहे इमरान खान कहते आए हैं कि चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर न केवल इस्लामाबाद के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए भी आर्थिक विकास लाएगा।लेकिन अब इमरान सरकार इस मसले पर फिर से सोंच रहे हैं और अमेरिका की तरफ देख रहे हैं।
इस तरह की कोशिशें पहले भी हुई हैं। जुलाई 2019 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के बेलआउट पैकेज के अलावा बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ। अमेरिका के साथ पाकिस्तान की बेहतर संबंध बनाने की संभावनाएं तब और कम हो गईं जब अमेरिका ने नवंबर 2021 में कतर को अफगानिस्तान में अपना राजनयिक प्रतिनिधि घोषित किया था।
फरवरी की शुरुआत में इमरान खान ने चीन इंस्टीट्यूट ऑफ फुडन यूनिवर्सिटी की सलाहकार समिति के निदेशक एरिक ली के साथ एक इंटरव्यू में कहा था कि “हम सीपीईसी और ग्वादर को भू-अर्थशास्त्र के लिए एक महान अवसर के रूप में देखते हैं।” साथ ही पाकिस्तान ने सीपीईसी के ‘कर्ज के जाल’ होने की खबरों को खारिज किया था। लेकिन अब वही इमरान सरकार को लगने लगा है कि पकिस्तान चीन के जाल में है और समय रहते इसे नहीं सुधारा गया तो आने वाले समय में पकिस्तान की हालत और भी ख़राब हो जाएगी।
उधर ,करीब दो साल से सीपीईसी पर काम बंद होने से चीन काफी नाराज है, क्योंकि वो इस प्रोजेक्ट पर करीब 16 अरब डॉलर खर्च कर चुका है। इमरान सरकार चीन को मनाकर इसे शुरू कराना चाहती है, लेकिन काम शुरू होता इसके पहले ही विरोध शुरू हो रहा है। बलूचिस्तान के ग्वादर में कई दिनों से पॉलिटिकल पार्टीज, सिविल राइट्स एक्टिविस्ट्स, मछुआरे समेत कई अन्य तबकों के लोग सीपीईसी के विरोध में सरकार विरोधी रैलियों में शामिल हो रहे हैं। इस विरोध की वजह से चीन भी नाराज है और पकिस्तान के साथ चीन के सम्बन्ध भी ख़राब हो रहे हैं। यहां के लोगों की मांग है कि सीपीईसी पर कोई भी काम शुरू करने से पहले बुनियादी सुविधाएं दी जाएं। इनमें गैरजरूरी चेक पॉइंट्स हटाना, पीने का पानी और बिजली मुहैया कराना, मछली पकड़ने के बड़े ट्रॉलर हटाना और ईरान बॉर्डर खोलना शामिल है।
अब देखने की बात यह है कि पाकिस्तान आगे क्या निर्णय लेता है। एक तरफ अब चीन भी उससे नाराज है और अगर अमेरिका ने उसकी मदद नहीं की तो पाकिस्तान के सामने संकट और भी गहरा सकते हैं। पाकिस्तान को उम्मीद है कि अमेरिका अगर उससे मदद करने का भरोसा दे तो वह चीन से सम्बन्ध तोड़ सकता है और सीपीईसी योजना को भी ख़ारिज कर सकता है।

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