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नोटबंदी पर सुनवाई फिर टली, क्या सुप्रीम कोर्ट के सवालों का जवाब दे पाएगी मोदी सरकार ?

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नोटबंदी पर सुनवाई फिर टली, क्या सुप्रीम कोर्ट के सवालों का जवाब दे पाएगी मोदी सरकार ?

अखिलेश अखिल

सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से नोटबंदी मामले की सुनवाई टल गई है. दरअसल सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल ने जवाब के लिए कोर्ट से और समय देने का अनुरोध किया था. कोर्ट ने सरकार के अनुरोध को मानते हुए मामले की सुनवाई के लिए 24 नवंबर की अगली डेट दे दी है. अब सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर सरकार बार बार अदालत के सामने अगली तारीख क्यों मांगती जा रही है ? क्या सरकार के पास नोटबंदी को लेकर समुचित उत्तर नही है ? क्या सरकार नोटबंदी किसी कानून के तहत नही कर पाई थी ? और क्या सरकार ने अपने मिजाज के मुताबिक बिना कुछ तैयारी किए, बिना कुछ सोचे समझे और बिना कोई कानूनी प्रक्रिया को अपनाए नोटबंदी का ऐलान कर दिया था और देश को मुश्किल में डाल दिया था ? आज से 6 साल पहले 8 नवंबर की रात्रि को अचानक जब प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी घोषणा की तो देश के साथ ही दुनिया भी स्तब्ध रह गई थी. तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इससे कालाधन बाहर आएगा और आतंकवाद का खात्मा होगा. नोटबंदी के समय देश में करीब 17 लाख करोड़ की करेंसी चलन में थी जो अभी लगभग 40 लाख करोड़ के पास है. नोटबंदी से कालाधन तो सामने नहीं आ सका लेकिन मौजूदा समय में बड़े स्तर पर कालेधन की मौजूदगी दिख रही है. साथ ही बड़े स्तर पर नकली नोटों की पकड़ भी हो रही है. ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि आखिर सरकार के प्रयास के पीछे का कारण क्या था. सरकार के इस खेल से लोगों की परेशानी हुई और देश की अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई, लेकिन आज तक सरकार ने नोटबंदी की न तो कोई मुक्कमल रिपोर्ट सामने लाई और न ही इसके फायदे गिना सकी. तब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सदन में सरकार के इस खेल की काफी आलोचना की थी और अर्थव्यवस्था के लिए घातक बताया था.

 

इसके बाद नोटबंदी मामले को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई. पिछले 12 अक्टूबर को अदालत ने इस मामले पर सुनवाई की शुरुआत की लेकिन हर बार सरकार हलफनामा देकर तारीख बढ़ती जा रही है. बता दें कि इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ कर रही है.

बता दें कि देश की सर्वोच्च अदालत ने एक महत्वपूर्ण आदेश में पिछले महीने 12 तारीख को साफ किया था कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा को लेकर लक्ष्मण रेखा से अच्छी तरह वाकिफ है. लेकिन वह 2016 के नोटबंदी के फैसले की समीक्षा अवश्य करेगा. कोर्ट ने कहा कि हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह मामला केवल ‘अकादमिक’ कवायद तो नहीं था. याद रहे कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नोटबंदी लाई गई थी. इसके बाद एक हजार और पांच सौ रुपये के पुराने नोट बंद कर दिये गये थे.

गौरतलब है कि जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने तब कहा था कि जब कोई मामला संविधान पीठ के समक्ष लाया जाता है, तो उसका जवाब देना, उसका दायित्व हो जाता है. संविधान पीठ ने इसके साथ ही 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को विस्तृत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था. इस पीठ में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रमासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं.

इस मामले पर अपनी बात रखते हुए तब अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक नोटबंदी से संबंधित अधिनियम को उचित परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक ही रहेगा. 1978 में बड़े मूल्य वाले बैंक नोटों को लेकर नोटबंदी अधिनियम पारित किया गया था. ताकि कुछ बड़े नोटों का जनहित में नोटबंदी की जा सके और अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक धन के अवैध हस्तांतरण पर लगाम लगाई जा सके. इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कवायद को अकादमिक या निष्फल घोषित करने के लिए मामले की जांच-पड़ताल जरूरी है. क्योंकि दोनों पक्षों पर सहमत नहीं हुआ जा सकता है. संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इस पहलू का जवाब देने के लिए कि यह कवायद अकादमिक है या नहीं या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है, हमें इसकी सुनवाई करनी होगी. सरकार की नीति और उसकी बुद्धिमता, इस मामले का एक पहलू है.’’

तब पीठ ने आगे कहा, ‘‘हम हमेशा जानते हैं कि लक्ष्मण रेखा कहां है, लेकिन जिस तरह से इसे किया गया था, उसकी पड़ताल की जानी चाहिए. हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा.’’ केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का समय ‘‘बर्बाद’’ नहीं करना चाहिए. मेहता की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि वह ‘‘संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी’’ जैसे शब्दों से हैरान हैं. क्योंकि पिछली पीठ ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए.

एक अन्य पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है. उन्होंने कहा कि इस तरह के विमुद्रीकरण के लिए संसद से एक अलग अधिनियम की आवश्यकता है. शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 9 नवम्बर, 2022 की तारीख मुकर्रर की थी.

बता दें कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने 16 दिसंबर, 2016 को नोटबंदी के निर्णय की वैधता और अन्य मुद्दों से संबंधित प्रश्न पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ को भेज दिया था. तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने तब कहा था कि यह मानते हुए कि 2016 की अधिसूचना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत वैध रूप से जारी की गई थी, लेकिन सवाल यह था कि क्या वह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के विपरीत थी ?

अनुच्छेद 300(ए) कहता है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी तौर पर सुरक्षित उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा. पीठ ने एक मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा था, ‘‘क्या बैंक खातों में जमा राशि से नकदी निकालने की सीमा का कानून में कोई आधार नहीं है ? और क्या यह अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन है ?’’ अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है. जबकि अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है. अनुच्छेद 21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकारों से संबंधित है.

चुकी इस मामले की सुनवाई बुधवार 9 नवंबर को पहले से तय थी लेकिन सरकार के वकीलों ने कागज जमा करने के लिए और समय की मांग की और अदालत ने अगली तारीख 24 नवंबर की तय कर दी है. अब सवाल है कि क्या क्या सरकार के पास अदालती सवाल के कोई जवाब नही है जो बार बार उसे समय की जरूरत पड़ रही है. सवाल ये भी है कि अदालत को जो उत्तर चाहिए, क्या उसके बारे में सरकार ने कभी कल्पना भी नहीं की थी ? जानकर मान रहे हैं कि सरकार ने बिना कोई तैयारी के ही इतना बड़ा निर्णय लिया था. इस मामले में आरबीआई भी एक पार्टी है. और उसे भी नोटबंदी से जुड़े दस्तावेज अदालत के सामने पेश करने है. उसकी सहमति और असहमति पर भी सुनवाई होनी है.

6 साल बाद अचानक सामने आया नोटबंदी का यह मामला अब सरकार के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है. अगर अदालत सख्ती से इस मामले की जांच करती है तो सरकार के पसीने छूटेंगे और सरकार ने कोई मुक्कमल जवाब नही दिया तो सरकार के खिलाफ कारवाई भी संभव है. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के साथ ही मोदी का इकबाल कितना बचेगा इसे देखना होगा.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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