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नोटबंदी के बाद, नकदी की बरामदगी से उठते सवाल

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नोटबंदी के बाद, नकदी की बरामदगी से उठते सवाल

 

यह देश कितना बेईमान और पाखंडी है, इसकी बानगी ईडी द्वारा की जा रही छापेमारी में बरामद करोड़ों की नकदी से हो रहा है. क्या नेता, क्या नौकरशाह और क्या कारोबारी, सबने अपने पाखंड और बेईमानी का सबूत देश को दिया है. सबसे बड़ी बात ये है कि जब 2016 में पीएम मोदी ने अचानक नोटबंदी की घोषणा की थी और काले धन पर लगाम कसने के लिए देश को जैसे आपातकाल की स्थिति में डाल दिया था, उसके बाद भी मौजूदा दौर में बड़े स्तर पर नकदी की बरामदी बड़ा सवाल पैदा करता है. नोटबंदी से तब देश को चाहे जो भी हो, लेकिन साल भर बाद जब नोटबंदी की समीक्षा आरबीआई ने की थी तब यह भी साफ़ हो गया था कि सरकार का यह खेल बुरी तरह से पिट गया था. हालांकि दावा किया गया था कि अब फिर से कोई कालाधन का खेल नहीं करेगा. लेकिन जिस अंदाज में करोड़ों रुपए की नकदी पकड़ी जा रही है, उससे तो यही लगता है कि नोटबंदी तो बेअसर रही ही, लोगों की बेईमानी पहले से ज्यादा बढ़ गई है. ईडी की छापेमारी में अभी तो केवल विपक्ष के नेता पकडे जा रहे हैं. अगर सत्ता पक्ष के बेईमानो को दबोचा जाए तो उसके परिणाम अचंभित करने वाले हो सकते हैं.

बंगाल के टीएमसी नेता पार्थ चटर्जी की सहयोगी के यहाँ से 51 करोड़ की नकदी और पांच किलो सोना की बरामदगी सर को चकराने जैसा है. लोग यह भी मान रहे हैं कि यह सब घोटाले का पैसा है और ठीक से छापेमारी हो तो हजार करोड़ की राशि उसी बंगाल से बरामद हो सकती है. इस मामले में टीएमसी के राज्य उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजूमदार का कहना है, ‘ईडी ने अभी तक टीएमसी से डायरेक्ट कनेक्टिविटी के बारे में कुछ नहीं बोला है. वहीं पार्टी ने साफ कर दिया है कि अर्पिता का टीएमसी से कोई लेना देना नहीं है.

अब सबसे जरूरी ये है कि जो पैसे मिले हैं, उसके सोर्स का पता लगाया जाए, क्योंकि नोटबंदी के बाद यह शायद ब्लैक मनी का सबसे बड़ा मामला है. पीएम ने कहा था कि नोटबंदी के बाद ब्लैक मनी खत्म हो जाएगी तो फिर ये 50 करोड़ रुपए कैसे इकट्‌ठे हो गए. क्या यह इंडियन सिस्टम का डिफॉल्ट नहीं है.

ईडी के अनुसार, अब तक जितनी राशि देश के कुछ छापेमारी में मिली है उस जब्त की गई राशि में से करीब 57,000 करोड़ रुपये बैंक फ्रॉड और पोंजी स्कीम मामलों से है. ईडी ने हाल ही में जब्त की गई कुछ संपत्तियों की बिक्री भी शुरू की थी. ईडी द्वारा की गई इस नीलामी में 15,000 करोड़ रुपये की बिक्री हुई थी. यह पैसा उन बैकों को रिफंड कर दिया गया. ईडी पिछले कुछ वर्षों से पैसों की धोखाधड़ी करने वालों पर जमकर कार्रवाई कर रही है. सालाना दर्ज होने वाले मामलों की संख्या पिछले 4 वर्षों में छह गुना हो गई है.

बता दें कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून यानी पीएमएलए के तहत ईडी एक लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम संपत्ति जब्त कर चुकी है. साल 2012-13 से लेकर अब तक ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के 3985 मामले दर्ज किये हैं. साल 2018-19 में केवल 195 मामले दर्ज किये गए थे. यह आंकड़ा 2021-22 में 1180 पर पहुंच गया. एजेंसी ने साल 2019-20 में सबसे अधिक 28,800 करोड़ रुपये की संपत्तियों की कुर्की की थी. जब ईडी भारी मात्रा में धोखाधड़ी की नकदी जब्त कर रही है, तो सुप्रीम कोर्ट ने उसका साथ दिया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के सभी अधिकारों को सही ठहराया. कांग्रेस सहित कुल 242 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फैसला सुनाया. जो इन फ्रॉड्स के मामलों में पीड़ित थे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुर्क की गई संपत्तियों के निपटान को बढ़ावा मिलेगा. रिक्रूटमेंट को लेकर पूरी जांच चल रही है. उसका नोटिफिकेशन 2014 में जारी हुआ था. नोटबंदी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के अधिकारों को बरकरार रखा है.

सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून के तहत संपत्तियों को जब्त करने के ईडी के अधिकारों को बरकरार रखने का फैसला दिया है. इसका मतलब है कि ईडी द्वारा जब्त किया गया एक लाख करोड़ रुपया एजेंसी की कस्टडी में ही रहेगा. ईडी द्वारा जब्त एसेट्स की कीमत 31 मार्च 2022 को एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गई थी. पीएमएलए के तहत न्यायिक प्राधिकरण ने ईडी की 60,000 करोड़ रुपये की कुर्की को बरकरार रखा है. जिसका कब्जा एजेंसी को हस्तांतरित कर दिया जाएगा, जबकि अन्य मामलों में कार्यवाही लंबित है. नई करेंसी 2017 से आई. उसके पहले ही कई अपॉइंटमेंट हो चुके थे. तो क्या नौकरी मिलने के बाद रिश्वत ली गई. ऐसा हो सकता है क्या. इसलिए मैं कह रहा हूं कि इस मामले में किसी भी तरह के कयास न लगाते हुए जो पैसे मिले हैं, उसके सोर्स की डिटेल जांच होना चाहिए.’

नोटबांदी के बाद 2016 – 17 में ईडी की छापेमारी

में 11032 करोड़ की संपत्ति की कुर्की की गई. इसमें बड़ी राशि नकदी की थी. इसी प्रकार 2017-18 में 7432 की नकदी सपत्ति ईडी के हाथ लगी. 2018 -19 में ईडी की छापेमारी में 15490 करोड़ की संपत्ति पकड़ी गई. जिसमे नकदी की संख्या काफी बड़ी थी. 2019 -20 में ईडी ने देश के बेईमानो से 28815 करोड़ की संपत्ति जप्त की. इस जप्ती में नकदी और सोना की बहुलता रही. 2020 -21 में 14107 करोड़ की संपत्ति ईडी के हाथ लगी, और वर्ष 2021 -22 में 8989 करोड़ की संपत्ति जप्त हुई है. ईडी की जप्ती में इधर पांच महीनो में जो नकदी मिली है वह शामिल है.

सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये रकम तो ईडी की छापेमारी से सामने आयी है. इनकम टैक्स, सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों द्वारा पकड़ी गई राशि को जोड़ दिया जाय तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं.

पिछले दो तीन साल के भीतर और कह सकते हैं कि नोटबंदी के बाद जो नकदी देश के कुछ इलाकों से ईडी को हाथ लगी है उसे देखकर शर्म आती है. देश के कारोबारी, नौकरशाह और नेता जनता के पैसों और योजनाओं को लूटकर किस तरह से अपनी तिजोरी भरते रहे हैं उसकी बानगी कानपुर की वह छापेमारी है जिसमे एक कारोबारी के यहाँ से ही ढाई सौ करोड़ से ज्यादा की नकदी मिली थी. यह कालाधन नोटबंदी की पोल खोता है. बंगाल में हालिया छापेमारी में पकड़ी गई राशि बहुत कुछ कहती है. इसी साल डोलो टेबलेट के कारोबारी के यहाँ छापेमारी हुई तो करीब 120 करोड़ की नकदी और करीब डेढ़ करोड़ के सोना पकड़ा गया. मध्य प्रदेश में इसी साल के शुरुआत में शंकर राय कारोबारी के यहाँ छापेमारी हुई तो करीब दस करोड़ की नकदी और करोड़ों के आभूषण पकड़े गए. पिछले साल गुजरात के राजकोट के एक कारोबारी के यहाँ ईडी की छापेमारी हुई तो करीब 300 करोड़ की संपत्ति बरामद हुई. इसमें नकदी सबसे ज्यादा थी. पिछले साल ही आंध्रा और तेलंगाना के एक कारोबारी के यहां छापेमारी में 800 की नकदी और उसकी संपत्ति पकड़ी गई. हमीरपुर के एक गुटका कारोबारी के यहां से करोड़ों की नकदी पायी गई. इसके अलावा देश के कई राज्यों के नौकरशाहों के यहां से करोड़ों की नकदी मिलती रही है. बिहार और मध्य प्रदेश जैसे गरीब राज्य के नौकरशाह इसमें सबसे आगे रहे हैं. झारखंड में अभी हाल में ही तीन कांग्रेस विधायकों के पास से करीब 50 लाख की नकदी जप्त की गई. ये विधायक बंगाल से नकदी लेकर लौट रहे थे. कहा जा रहा है कि झारखंड की हेमंत सरकार को गिराने के लिए ये नकदी दी गई थी. इसके साथ ही इन विधायकों को दस करोड़ और मंत्री पद भी मिलने वाले थे.

नोटबंदी के बाद देश में जितनी रकम नकदी के रूप में पकड़ी गई है, शायद इससे पहले कभी नहीं पकड़ी गई होगी. अब यह साफ़ हो गया है कि इस देश की योजनाएं कैसे लूटी जाती है. साफ़ तो यह भी हो गया है कि धर्म और राष्ट्र के नाम पर इस देश को सबसे ज्यादा लूटने का काम नेता, नौकरशाह और कारोबारी ही करते हैं. देश की जनता अब भी नहीं जाएगी तो देश को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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