अखिलेश अखिल
यह देश कितना बेईमान और पाखंडी है, इसकी बानगी ईडी द्वारा की जा रही छापेमारी में बरामद करोड़ों की नकदी से हो रहा है. क्या नेता, क्या नौकरशाह और क्या कारोबारी. सबने अपने पाखंड और बेईमानी का सबूत देश को दिया है. लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब 2016 में पीएम मोदी ने अचानक नोटबंदी की घोषणा की थी और काले धन पर लगाम कसने, नकली करेंसी को रोकने, आतंकवाद के आर्थिक श्रोत को खतम करने और नक्सलवादी गतिविधियों को कम करने के लिए देश को जैसे आपातकाल की स्थिति में डाल दिया था. कितने लोगों की जाने गई, न जाने कितनी बेटियों की शादियां रुक गई, और टूट गई और न जाने लोगों ने अपनी मौलिक समस्या को झेला. देश को आज भी याद है.
देश ने तब यह सब इसलिए झेल लिया था कि देश साफ़ सुथरा करने और कालाधन की वापसी के साथ ही नकली नोटों को चलन से बहार करने के लिए पीएम मोदी ने देश में नोट बंदी का एलान किया था. लोगो को लगा था कि देश को पहली बार एक ईमानदार और इकबाली पीएम मिला है. जिसकी धड़कने केवल राष्ट्र निर्माण के लिए धड़कती है. पीएम ने तब जनता से पच्चास दिन का समय माँगा था और कहा था कि अगर नोटबंदी का लाभ देश को नहीं मिला तो देश की जनता किसी चौराहे पर उन्हें खड़ा कर जो भी दंड देगी उन्हें मान्य होगा.
लेकिन अब उसी नोटबंदी की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट तैयार है. सुप्रीम अदालत की संविधान पीठ अब इस पर सुनवाई करेगी और पता करेगी कि जिन उदेश्यों को लेकर नोटबंदी की गई. उसका फायदा क्या मिला? सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी को लेकर दर्जनों याचिकाएं दी गई है. जिसमे अलग-अलग तरह के सवाल खड़े हैं. बड़ा सवाल तो नकली नोटों के चलन से जुड़ा है. जिस गति से नकली नोटों का चलन पिछले 6 साल में बढ़ा हैं, सुप्रीम कोर्ट भी भौंचक है. ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या नोटबंदी के दौरान नकली नोटों को बैंक से बदला गया और इस खेल में राजनीति, कारोबारी, व्यापारी, कॉर्पोरेट के साथ ही आम जनता भी शरीक थी. सुप्रीम कोर्ट अब इस खेल को समझने की कोशिश कर रहा है.
पिछले कुछ सालों में ईडी और इनकम टैक्स के जरिए जिस अंदाज में नकदी नोटों की बरामदगी हो रही है, वो चौंकाने वाला है. देश का ऐसा कोई इलाका नहीं बचा है, जहां से नकदी की बरामदी नहीं हुई है. याद रहे ये बरामदगी तो अभी विपक्षी नेताओं और उसके सहयोगियों के यहां से हो रही है. अगर सत्ता पक्ष की घेराबंदी की जाए तो जो तस्वीर सामने आएगी उससे राष्ट्रवाद की कथित सारी राजनीति भी लज्जित हो जायेगी.
ईडी के अनुसार, अब तक जितनी राशि देश के कुछ छापेमारी में मिली है. उस जब्त की गई राशि में से करीब 57,000 करोड़ रुपये बैंक फ्रॉड और पोंजी स्कीम मामलों से है. ईडी द्वारा हाल ही में जब्त की गई कुछ संपत्तियों की बिक्री भी शुरू की गई थी. ईडी द्वारा की गई इस नीलामी में 15,000 करोड़ रुपये की बिक्री हुई थी. यह पैसा उन बैकों को रिफंड कर दिया गया. ईडी पिछले कुछ वर्षों से पैसों की धोखाधड़ी करने वालों पर जमकर कार्रवाई कर रही है. सालाना दर्ज होने वाले मामलों की संख्या पिछले 4 वर्षों में छह गुना हो गई है.
बता दें कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून यानी पीएमएलए के तहत ईडी एक लाख करोड़ रुपये की भारी – भरकम संपत्ति जब्त कर चुकी है. साल 2012-13 से लेकर अब तक ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के 3985 मामले दर्ज किये हैं. साल 2018-19 में केवल 195 मामले दर्ज किये गए थे. यह आंकड़ा 2021-22 में 1180 पर पहुंच गया. एजेंसी ने साल 2019-20 में सबसे अधिक 28,800 करोड़ रुपये की संपत्तियों की कुर्की की थी. जब ईडी भारी मात्रा में धोखाधड़ी की नकदी जब्त कर रही है, तो सुप्रीम कोर्ट ने उसका साथ दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के सभी अधिकारों को सही ठहराया है. कांग्रेस सहित कुल 242 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फैसला सुनाया. जो इन फ्रॉड्स के मामलों में पीड़ित थे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुर्क की गई संपत्तियों के निपटान को बढ़ावा मिलेगा. रिक्रूटमेंट को लेकर पूरी जांच चल रही है. उसका नोटिफिकेशन 2014 में जारी हुआ था. नोटबंदी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के अधिकारों को रखा बरकरार रखा है.
नोटबंदी के बाद 2016 -17 में ईडी की छापेमारी में 11032 करोड़ की संपत्ति की कुर्की की गई. इसमें बड़ी राशि नकदी की थी. इसी प्रकार 2017 -18 में 7432 करोड़ की नकदी संपत्ति ईडी के हाथ लगी. 2018 -19 में ईडी की छापेमारी में 15490 करोड़ की संपत्ति पकड़ी गई. जिसमे नकदी की संख्या काफी बड़ी थी. 2019 -20 में ईडी ने देश के बेईमानो से 28815 करोड़ की संपत्ति जप्त की. इस जप्ती में नकदी और सोना की बहुलता रही. 2020 -21 में 14107 करोड़ की संपत्ति ईडी के हाथ लगी. और 2021 -22 में 8989 करोड़ की संपत्ति जप्त हुई है. ईडी की जप्ती में इधर पांच महीनो में जो नकदी मिली है, वह भी शामिल है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये रकम तो ईडी की छापेमारी से सामने आयी है. इनकम टैक्स, सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों द्वारा पकड़ी गई राशि को जोड़ दिया जाय तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं.
पिछले दो तीन साल के भीतर और कह सकते हैं कि नोटबंदी के बाद जो नकदी देश के कुछ इलाकों से ईडी को हाथ लगी है. उसे देखकर शर्म आती है. इस देश के कारोबारी, नौकरशाह और नेता, जनता के पैसों और योजनाओं को लूटकर किस तरह से अपनी तिजोरी भरते रहे हैं. उसकी बानगी कानपुर की वह छापेमारी है, जिसमे एक कारोबारी के यहाँ से ही ढाई सौ करोड़ से ज्यादा की नकदी मिली थी. यह कालाधन नोटबंदी की पोल खोलता है. बंगाल में हालिया छापेमारी में पकड़ी गई 50 करोड़ नकदी की राशि बहुत कुछ कहती है. इसी साल डोलो टेबलेट के कारोबारी के यहाँ छापेमारी हुई तो करीब 120 करोड़ की नकदी और करीब डेढ़ करोड़ के सोन पकड़ा गया. मध्य प्रदेश में इसी साल के शुरुआत में शंकर राय कारोबारी के यहाँ छापेमारी हुई तो करीब दस करोड़ की नकदी और करोडो के आभूषण बरामद हुआ. पिछले साल गुजरात के राजकोट के एक कारोबारी के यहाँ ईडी की छापेमारी हुई तो करीब 300 करोड़ की संपत्ति बरामद हुई. इसमें नकदी सबसे ज्यादा थी. पिछले साल ही आंध्रा और तेलंगाना के एक कारोबारी के यहां छापेमारी में 800 की नकदी और उसकी संपत्ति पकड़ी गई. हमीरपुर के एक गुटका कारोबारी के यहां से करोडो की नकदी पायी गई. इसके अलावा देश के कई राज्यों के नौकरशाहों के यहां से करोडो की नकदी मिलती रही है. बिहार जैसा गरीब प्रदेश के नौकरशाह इसमें सबसे आगे रहे हैं. झारखंड में अभी हाल में ही तीन कांग्रेस विधायकों के पास से करीब 50 लाख की नकदी जप्त की गई. ये विधायक बंगाल से नकदी लेकर लौट रहे थे. कहा जा रहा है कि झारखंड की हेमंत सरकार को गिराने के लिए ये नकदी दी गई थी. इसके साथ ही इन विधायकों को दस करोड़ और मंत्री पद भी मिलने वाले थे.
नोटबंदी के बाद देश में जितनी रकम नकदी के रूप में पकड़ी गई है, शायद इससे पहले कभी नहीं पकड़ी गई. अब यह साफ़ हो गया है कि इस देश की योजनाएं कैसे लूटी जाती है. साफ़ तो यह भी हो गया है कि धर्म और राष्ट्र के नाम पर इस देश को सबसे ज्यादा लूटने का काम नेता, नौकरशाह और कारोबारी ही करते हैं. देश की जनता अब भी नहीं जागेगी तो देश को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता. लेकिन इस नकदी का एक और सच है. जानकार मान रहे हैं कि नोटबंदी के दौरान बड़ी संख्या में जाली नोटों को बैंक के जरिये सफ़ेद किया गया. यही वजह है कि तब जितने नॉट आरबीआई द्वारा जारी किये गए थे लगभग उतने नॉट बरामद हो गए थे और कालाधन की वापसी न के बराबर हुई थी.
सरकार और बीजेपी के लोग देश की हालत की सच्चाई जानते हैं, लेकिन जनता को गुमराह करने से पीछे नहीं हटते. मौजूदा सरकार का यह खेल निराला है. नोटबंदी के समय भी वह जनता से बहुत कुछ छुपा रही थी और नोटबंदी के फायदे गिना रही थी. लेकिन नोटबंदी का जो सच सामने आया, इसे सब बखूबी जानते हैं. नोटबंदी की असफलता को ढकने के लिए सरकार नैरेटिव बदलती रही और अंत में जनता को राशन और कुछ पैसे देकर उसे चुप कराती रही. आज भी यह सब चल रहा है. साफ़ है कि इसमें सरकार का दोष चाहे जो भी हो असली दोषी तो जनता है, जो धर्म और जाति के साथ ही नकली अर्थव्यवस्था पर डफली पीटती है, लेकिन सच जानने की कोशिश नहीं करती. नोटबंदी के दौरान भी आरबीआई ने कई संकेत दिए थे. और उसे देश के लिए सही नहीं माना था. अब आरबीआई की जो रिपोर्ट सामने आयी है वह तो चौकाने वाली है.
आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार देश में 500 और 2000 के रुपए के नकली नोटों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज हुई है. इसी मामले को लेकर तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डेरेक ओ ब्रायन ने पीएम मोदी को कटघरे में ला खड़ा किया है. डेरेक ओ ब्रायन ने एक वार्षिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीएम मोदी से नोटबंदी से जुड़ा सवाल पुछा है. डेरेक ओ ब्रायन ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, “नमस्कार मिस्टर पीएम नोटबंदी याद है ? और कैसे ममता बनर्जी ने आपके इस कदम की आलोचना की थी ? आपने कैसे राष्ट्र से वादा किया था कि नोटबंदी सभी नकली नोटों को मार्केट से खत्म कर देगी. लेकिन यह आरबीआई की हालिया रिपोर्ट है, जो नकली नोटों की संख्या में भारी वृद्धि की ओर इशारा करती है.”
. खबरों के अनुसार, 500 रुपए के नकली नोट एक साल में दोगुने हो गए हैं. पिछले साल की तुलना में 500 रुपए के 101.9% ज्यादा नोट और 2 हजार रुपए के 54.16% ज्यादा नोटों पाए गए. वित्तीय वर्ष 2022 में बैंक में जमा हुए 500 और 2000 रुपए के नोट में 87.1% नकली नोट थे, जबकि वित्तीय वर्ष 2021 (1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक) यह आंकड़ा 85.7% था. खबरों के अनुसार 31 मार्च 2022 तक चलन में मौजूद नोटों का कुल 21.3% था.
वित्त वर्ष 2022 के दौरान 2.3 लाख नोटों का पता चला, जबकि वित्त वर्ष 2021 में 2 लाख नोटों का पता चला था. 500 रुपये के नकली नोटों की संख्या पिछले वर्ष के 39,453 से दोगुनी होकर 79,699 हो गई. आरबीआई द्वारा वित्तीय वर्ष 2022 के दौरान बैंक नोटों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 100 रुपये सबसे पसंदीदा थे. जबकि 2,000 रुपये सबसे कम पसंदीदा नोट थे.
ऐसे में क्या प्रधानमंत्री और उनके लोग अब इस पर कोई जबाब देंगे ? क्या पीएम मोदी देश के किसी भी चौराहा पर खड़े हो कर दंड झेलने को तैयार हैं ? बीजेपी तो तीसरी बार फिर से केंद्र की सत्ता में आने को बेचैन हैं और पीएम मोदी अपने सामने किसी को मानते नहीं. लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी की कहानी को समझने की कोशिश कर रही है तो उम्मीद है कि एक बड़ा तथ्य सामने आएगा. संभव है कि यह देश का सबसे बड़ा घोटाला न साबित हो जाए !