Thursday, April 25, 2024
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नेतन्याहू बने इजरायल के प्रधानमंत्री, फिलिस्तीन के साथ बढ़ सकता है संघर्ष 

बेंजामिन नेतन्याहू फिर से इजरायल के प्रधानमंत्री बन गए. गुरूवार को ही उन्होंने पद और गोपनीयता की शपथ ली. 73 वर्षीय नेतन्याहू के नेतृत्व में छह दलों की गठबंधन सरकार बनी है. माना जा रहा है कि यह सरकार अबतक की सबसे कट्टरपंथी सरकार है. जिस तरह के नेता और पार्टी इस सरकार में शामिल है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले समय में फिलिस्तीन के साथ संघर्ष बढ़ेगा. फिलिस्तीन भी इस सरकार के गठन के बाद सतर्क हो गया है.

इजराइली संसद को नीसेट कहा जाता है. गुरुवार को संसद के अंदर और बाहर माहौल काफी गर्म नजर आया. छठवीं बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते वक्त नेतन्याहू को नारेबाजी का सामना करना पड़ा. संसद के बाहर भी उनके विरोधियों ने बैनर पोस्टर लेकर विरोध प्रदर्शन किया.

दरअसल, शपथ लेने के बाद जब नेतन्याहू ऑफिस पहुंचे तो टेबल पर उन्हें हिब्रू में लिखा यह पेपर नोट मिला. यह नोट पूर्व पीएम येर लैपिड छोड़कर गए. इस पर ‘लैपिड 2024’ लिखा था. माजरा कुछ यूं है कि नेतन्याहू ने पिछली बार जब इस्तीफा देकर सरकार छोड़ी थी तो वो तब के नए प्रधानमंत्री लैपिड के लिए एक नोट छोड़कर गए थे. उस पर लिखा था- मैं बहुत जल्द वापसी करूंगा. अब येर लैपिड ने दावा किया है कि वो 2024 में फिर इजराइल के प्रधानमंत्री बनेंगे.

इजराइल की सियासत में सरकारें बदलना कोई नई बात नहीं है. गुरुवार को जब नेतन्याहू शपथ लेने के बाद अपनी सीट की ओर बढ़े तो पूर्व प्रधानमंत्री येर लैपिड ने उनसे हाथ मिलाना भी मुनासिब नहीं समझा. लैपिड संसद से बाहर निकल गए. इसके बाद बाकी मंत्रियों ने शपथ ली.

1948 में अलग देश का दर्जा पाने वाले इजराइल में यह 37वीं सरकार है. करीब 75 साल के संसदीय इतिहास में अब तक किसी पार्टी ने अपने दम पर पूर्ण बहुमत वाली सरकार नहीं बनाई है.

बता दें कि इजराइली संसद में कुल 120 सीटें हैं. नेतन्याहू के गठबंधन के पास 63 सीटें हैं. उनकी लिकुड पार्टी के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं. इजराइली मीडिया के मुताबिक- नेतन्याहू के लिए इस सरकार को चलाना बेहद मुश्किल साबित हो सकता है. इसकी वजह यह है कि उन्हें हर कदम पर सहयोगी पार्टियों से मदद लेनी होगी, और ये सभी फिलिस्तीन और अरब विरोधी हैं. नेतन्याहू को वर्ल्ड पॉलिटिक्स और डिप्लोमैसी भी देखनी है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि देश की सियासत और वर्ल्ड डिप्लोमैसी के बीच वो कैसे बैलेंस बनाकर चलते हैं.

गठबंधन सरकार में शामिल दूसरी पार्टियां वेस्ट बैंक या पश्चिमी किनारे से फिलिस्तीनियों की बस्तियां मिलिट्री की मदद से हटाना चाहती हैं. इससे संघर्ष और बढ़ेगा. एक बहुत बड़ा खतरा फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास के हमलों का भी है. इसे ईरान से खुली मदद मिलती है और यहूदी एक्शन के जवाब में यह अकसर इजराइल में रॉकेट हमले करता रहता है.

हमास के हमलों से इजराइल में ज्यादा नुकसान इसलिए नहीं होता, क्योंकि उसका एयर डिफेंस सिस्टम इन रॉकेट को देश की सीमा में घुसने से पहले ही मार गिराता है. बहरहाल, इसके बावजूद हमास और दूसरे फिलिस्तीनी संगठन से जुड़े लोग यहां किसी न किसी रूप में इज़राइली कार्रवाई पर हमले करते ही रहते हैं.

नेतन्याहू को संसद में बहुमत खोने की वजह से पिछले साल इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद 1 नवंबर को चुनाव हुए और नेतन्याहू की लिकुड पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी. हालांकि, उसके पास सदन में 61 सांसदों का जादुई आंकड़ा नहीं था. लिहाजा 6 दलों का समर्थन हासिल किया.

लिकुड पार्टी के चीफ नेतन्याहू कुल 15 साल प्रधानमंत्री रह चुके हैं. यह उनका छठी बार का टर्म होगा. इजराइली सियासत में अब तक कोई नेता इतने लंबे वक्त तक सत्ता के शिखर पर नहीं रह सका है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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