Home ताज़ातरीन नफरत और विभाजन की राजनीति को खारिज करने पर कर्नाटक के लोगों का शुक्रिया: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद

नफरत और विभाजन की राजनीति को खारिज करने पर कर्नाटक के लोगों का शुक्रिया: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद

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नफरत और विभाजन की राजनीति को खारिज करने पर कर्नाटक के लोगों का शुक्रिया: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद कर्नाटक के लोगों को बधाई देते हुए नफरत की राजनीति को नकारने की जमकर सराहना की है. मीडिया को जारी एक बयान में जमाअत -ए- इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा कि, ” जमाअत-ए-इस्लामी हिंद नफरत और ध्रुवीकरण के पैरोकारों को हराने के लिए कर्नाटक के लोगों की सराहना करती है.

कर्नाटक के लोगों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने और घृणा फैला कर उनका ध्रुवीकरण करने के हताश प्रयासों के बावजूद कर्नाटक के लोगों ने अपना संयम बनाए रखा और साम्प्रदायिकता पर आधारित चुनाव अभियान से अपने वोट को प्रभावित नहीं होने दिया. कर्नाटक के लोगों ने देश की जनता को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि उकसावे के बावजूद किस तरह एकजुट रहें और शांति और सद्भाव बनाए रखें.

उन्होंने दिखाया है कि सत्ता में बैठे लोगों की विफलताओं को छिपाने के लिए जानबूझकर बनाए गए भावनात्मक मुद्दों की तुलना में रोजगार, मूल्य वृद्धि, स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण जैसे वास्तविक मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण हैं. यह एक स्वागत योग्य संकेत है कि जिन लोगों ने समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश की है, और घृणा का सहारा लिया, उनकी चुनावों में व्यापक रूप से हार हुई.”

जमाअत के उपाध्यक्ष ने कहा, “कर्नाटक चुनावी नतीजा सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को भी एक संदेश देता है. उन्हें हिजाब प्रतिबंध, हलाल मुद्दा, मुस्लिम आरक्षण और उनके आर्थिक बहिष्कार जैसे मुद्दों पर राजनीतिक नुकसान के डर के बिना एक सैद्धांतिक रुख अपनाना चाहिए. धर्मनिरपेक्ष दलों और क्षेत्रीय दलों को कर्नाटक के फैसले से सबक सीखना चाहिए और उन नीतियों को अपनाना चाहिए जो जाति और धार्मिक विचारों की परवाह किए बिना न्याय और समानता पर आधारित हों.

उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक समुदाय के विरोध के डर से मुसलमानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उनका उचित हिस्सा देने से इनकार करना सैद्धांतिक रूप से गलत है. कर्नाटक के लोगों ने संदेश दिया है कि भारतीय राजनीति भावनात्मक मुद्दों या विभाजन और ध्रुवीकरण का कारण बनने वाले मुद्दों के बजाय वास्तविक मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए. जो पार्टियां नफरत फैलाकर फायदा उठाने में विश्वास रखती हैं, उन्हें अपनी कार्यशैली में सुधार करना चाहिए क्योंकि यह नीति राजनीतिक रूप से टिकाऊ नहीं है. कर्नाटक के नतीजे साबित करते हैं कि उत्पीड़ितों के लिए न्याय की वकालत करना, सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना और विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना ही चुनाव जीतने का एकमात्र तरीका है.”

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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