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देश की असली समस्या के उलट, अब क़ुतुब मीनार पर हंगामा

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देश की असली समस्या के उलट, अब क़ुतुब मीनार पर हंगामा

अखिलेश अखिल

लोभी जनता और ठग सरकार की बानगी यही है कि देश की जनता अभाव, महंगाई और गरीबी, बेरोजगारी में जीने को अभिशप्त है लेकिन सरकार और उसके लोग इस पर बात करने के बजाय हिन्दू, मुसलमान और राष्ट्रीय स्मारकों पर पिले पड़े हैं. ताजमहल किसने बनवाया, यह हिन्दू का है या मुस्लिम का ? क़ुतुब मीनार किसने और क्यों बनवाया ? यह तो हिन्दुओं की संपत्ति है फिर इसपर मुगलो का दावा क्यों ? मुसलमानो के नाम पर रखे गए गांव, शहर के नाम क्यों ? ऐसे ही बातों पर बीजेपी के लोग देश को गुमराह कर रहे हैं. जो देश की समस्या है उससे उनका कोई सरोकार नहीं. जातियों की राजनीति तो इस देश में देखी जा रही थी लेकिन बीजेपी का यह स्वर्णकाल धार्मिक राजनीति के लिए भी इतिहास में दर्ज रहेगा. सच तो यही है कि मुग़ल मुसलमान थे. अगर वो मुसलमान नहीं होते तो संभव था कि मुगलों के कई राजा इसी देश में पूजे जाते और बीजेपी के लोग उन्हें अपनाने से बाज नहीं आते. याद रहे बीजेपी और संघ के लोग नए इतिहास के निर्माण में जुटे हैं. एक ऐसे इतिहास की तैयारी में हैं जो अखंड भारत और हिन्दू, हिन्दुस्तान व हिंदुत्व की व्याख्या से लबरेज हो.
बिहार में भी एक खेल हो रहा है. सम्राट अशोक की जाति की तलाश नए सिरे से की गई है. इस तलाशी अभियान में जदयू और बीजेपी तो शामिल है ही खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके अगुआ हैं. इतिहास कहता है कि सम्राट अशोक क्षत्रिय समुदाय से आते हैं लेकिन नयी राजनीति ने सम्राट अशोक को कुशवाहा यानि कोइरी जाति से होने का प्रमाण पेश किया है. अब कुर्मी -कोइरी जाति के आठ से दस फीसदी वोट पर बीजेपी और जदयू की नजरे हैं. दोनों दलों के नेता और मंत्री अपने -अपने हिसाब से उनकी जयंती मना रहे हैं. बेचारे सम्राट अशोक की मूर्ति बेबस, लाचार टुकुर टुकुर ताक रही है. महापुरषो की जातियों के इस खेल का सच तो राजनीति है लेकिन उस बिहार के इस सच पर किसी की नजर नहीं है कि वहां की 33 फीसदी आबादी गरीबी में जी रही है, शिक्षा और स्वास्थ्य का बुरा हाल है. अस्पताल में डाक्टर नहीं हैं तो स्कूलों में शिक्षक नहीं. लेकिन जातीय खेल पर युद्ध जारी है. यही हाल पुरे देश का है. महंगाई और बेरोजगारी से देश तबाह है लेकिन सरकार का जोर धार्मिक उन्माद पर है.
दिल्ली में एक नया खेल विश्व हिंदू परिषद ने शुरू किया है. विहिप ने दावा किया है कि कुतुब मीनार पहले ‘विष्णु स्तंभ’ था. मीनार का निर्माण 27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़कर प्राप्त सामग्री से किया गया था. हिंदू समुदाय को परेशान करने के लिए इसका निर्माण किया गया. विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल ने मांग की है कि उन सभी 27 मंदिरों का पुनर्निर्माण किया जाए, जिन्हें पूर्व में गिराया गया था. इसके साथ ही हिंदुओं को कुतुब मीनार में पूजा करने की अनुमति दी जाए.
इससे पहले पूर्व राज्यसभा सांसद तरुण विजय ने कुतुब मीनार परिसर में एक जगह भगवान गणेश की उल्टी प्रतिमा और एक जगह उनकी प्रतिमा को पिंजरे में बंद कर हिंदू भावनाओं को अपमानित करने का आरोप लगाया था. उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक को पत्र लिख कर इन प्रतिमाओं को राष्ट्रीय संग्रहालय में रखवाने की मांग की है.
25 मार्च को लिखे पत्र में कहा कि अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान उन्हें बुद्धिजीवियों, प्रतिनिधिमंडलों से जूते उतारने की जगह गणेश की उल्टी प्रतिमा रखने और एक जगह पर पिंजरे में बंद रखने की शिकायत मिली. इसे भारत के संविधान की समानता और न्याय की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए उन्होंने लिखा कि इन प्रतिमाओं को सम्मान के साथ राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा जा सकता है. पत्र के साथ उन्होंने दोनों प्रतिमाओं की फोटो भी एएसआई के महानिदेशक को भेजी है.
इससे पहले ताजमहल को लेकर छिड़े विवाद में मुस्लिम शासकों और उनके दौर पर भी बहस चल रही है. भारतीय जनता पार्टी के कई नेता मुग़लों से जुड़ी पहचानों पर सवाल उठाते रहे हैं. इसमें चाहे ताजमहल हो या सड़कों के नाम. बीजेपी के पूर्व विधायक संगीत सोम ने ताजमहल को भारतीय संस्कृति पर धब्बा बताया था तो केंद्रीय मंत्री वीके सिंह अकबर रोड का नाम महाराणा प्रताप करने की मांग कर चुके हैं. इससे पहले औरंगज़ेब रोड का नाम अब्दुल कलाम रोड किया जा चुका है. यूपी में ना जाने कितने सड़कों, शहरों और गावों के नाम बदले जा चुके हैं. आखिर इस खेल के पीछे का सच क्या है ? धार्मिक तुष्टिकरण और हिन्दुओं को अपने पाले में लाने का खेल ही तो है. देश की सारी समस्या से ध्यान भटकाने की कोशिश है यह सब. इस खेल में जनता को भी मजा आ रहा है और सरकार भी गदगद है.
पिछले साल बीजेपी नेता शायना एनसी ने मुग़ल शासक अकबर की तुलना हिटलर से की थी. शायना ने ट्वीट कर कहा था, ”अकबर रोड का नाम महाराणा प्रताप मार्ग कर देना चाहिए. कल्पना कीजिए कि इसराइल में किसी सड़क का नाम हिटलर पर रहे! हम लोगों की तरह कोई भी देश दमनकारियों को सम्मान नहीं देता है.” लगता है कि बीजेपी को अंग्रेजो की गुलामी से कोई परहेज नहीं. अंग्रेजो के बनाये गए बड़े-बड़े स्मारकों, भवनों से आपत्ति नहीं लेकिन अपने ही देश में जन्मे मुस्लिम शासकों, राजाओं और समाज सुधारकों के स्मारकों से परहेज है. मौजूदा काल देश की सेक्युलर समाज पर सबसे बड़ा हमला तो है ही, धार्मिक दुराव का भी यह अमृतकाल है.
अब एक नजर कुतब मीनार पर. दिल्‍ली के अंतिम हिन्‍दू शासक की पराजय के तत्‍काल बाद 1193 में कुतुबुद्धीन ऐबक द्वारा क़ुतुब मीनार को 73 मीटर ऊंची विजय मीनार के रूप में निर्मित कराया गया. इस इमारत की पांच मंजिलें हैं. प्रत्‍येक मंजिल में एक बालकनी है और इसका आधार 1.5 मी. व्‍यास का है जो धीरे-धीरे कम होते हुए शीर्ष पर 2.5 मीटर का व्‍यास रह जाता है और पहली तीन मंजिलें लाल बलुआ पत्‍थर से निर्मित है और चौथी तथा पांचवीं मंजिल मार्बल और बलुआ पत्‍थरों से निर्मित हैं. मीनार के करीब क्‍वातुल-इस्‍लाम मस्जिद है. विहिप जैसे हिंदू संगठनों का दावा है कि यह 27 हिन्‍दू मंदिरों को तोड़कर इसके अवशेषों से निर्मित की गई है.”इस मस्जिद के प्रांगण में एक 7 मीटर ऊँचा लौह-स्‍तंभ है. कहा जाता है कि यदि आप इसके पीछे पीठ लगाकर इसे घेराबंद करते हो जो आपकी इच्‍छा होगी पूरी हो जाएगी.
कुतुबमीनार का निर्माण विवादपूर्ण है कुछ मानते है कि इसे विजय की मीनार के रूप में भारत में मुस्लिम शासन की शुरूआत के रूप में देखा जाता है. कुछ मानते है कि इसका निर्माण मुअज्जिन के लिए अजान देने के लिए किया गया है. बहरहाल इस बारे में लगभग सभी एकमत है. कि यह मीनार भारत में ही नहीं बल्कि विश्‍व की बेहतरीन स्‍मारक है. दिल्‍ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्धीन ऐबक ने 1200 ई. में इसके निर्माण कार्य शुरु कराया किन्‍तु वो केवल इसका आधार ही पूरा कर पाए थे. इनके उत्‍तराधिकारी अल्तमश ने इसकी तीन मंजिलें बनाई और 1368 में फिरोजशाह तुगलक ने पांचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई थी.
वर्ष 1230 में अल्‍तमश ने और 1315 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस भवन का विस्तार कराया. इस मस्जिद के आंतरिक और बाहरी प्रागंण स्‍तंभ श्रेणियों में है आंतरिक सुसज्जित लाटों के आसपास भव्‍य स्‍तम्‍भ स्‍थापित है. इसमें से अधिकतर लाट 27 हिन्‍दू मंदिरों के अवशेषों से बनाए गए हैं. मस्जिद के निर्माण हेतु इनकी लूटपाट की गई थी अतएव यह आचरण की बात नहीं है कि यह मस्जिद पारंपरिक रूप से हिन्‍दू स्थापत्‍य–अवशेषों का ही रूप है.
लेकिन यह सब तो इतिहास की बात है. क़ुतुब मीनार स्थापत्य बेजोड़ नमूना है और भारत को इस गर्व भी है. 12 सौ साल की यह कहानी अब फिर से उखाड़ी जा रही है. भारत के आर्थिक विकास में मौजूदा खेल का क्या योगदान होगा यह तो कोई नहीं जनता. लेकिन इतना तो साफ़ है कि देश के भीतर जिस तरह के उन्माद बढ़ता दिख रहा हैं वह केवल देश के बुनियादी सवालों पर पर्दा डालने से ज्यादा कुछ भी नहीं है. देश को आगे बढ़ाने के लिए प्रगति के रास्ते खोजने की जरूरत है. देश में अशांति और धार्मिक उन्माद के जरिये वोट तो हासिल किये जा सकते हैं लेकिन हम विकसित नहीं कहे जा सकते.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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