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झारखंड में हॉर्स ट्रेडिंग की बढ़ी सम्भावना, क्या खतरे में है हेमंत सरकार ?

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झारखंड में हॉर्स ट्रेडिंग की बढ़ी सम्भावना, क्या खतरे में है हेमंत सरकार ?

 

झारखंड में जो कुछ भी हो रहा है, सब कुछ अजूबा है. सूबे में ऐसा कोई विधायक नहीं जिस पर कोई दाग नहीं लगा हो. सत्ता पक्ष के विधायक हों या विपक्ष के अधिकतर विधायकों के दामन पर कालिख पुती हुई है. इन दागदार चेहरों पर ही जनता बाजी लगाती है, लेकिन दागी भला जनता के कल्याण के लिए कुछ कहाँ करता है ! हेमंत सरकार में शामिल विधायकों को भ्रष्ट बताने वाली बीजेपी अपने दागदार विधायकों के साथ सरकार बनाने को उतावली है. इसके साथ ही कांग्रेस और झामुमों के दागी विधायकों पर बीजेपी की नजर है. बीजेपी को उम्मीद है कि सत्ता पक्ष के कुछ विधायक टूटेंगे और हेमंत को चलता कर दिया जाएगा. बीजेपी कई राज्यों में इस तरह की प्रैक्टिस कर चुकी है. अब झारखंड की बारी है. हॉर्स ट्रेडिंग का जैसा खेल वहाँ होता दिख रहा है अजूबा ही है.

झारखंड में जारी सियासी संकट के बीच महागठबंधन की सरकार अब राज्यपाल पर नोटिफिकेशन जारी करने का दबाव बनाने लगी है. महागठबंधन के विधायकों ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल नोटिफिकेशन जारी करवाने में जानबूझकर देरी कर रहे हैं ताकि बीजेपी को हॉर्स ट्रेडिंग करने का टाइम मिल जाए.

वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी के सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के कई विधायक अभी भी बीजेपी के संपर्क में हैं. झारखंड कांग्रेस के एक बड़े नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इसकी पूरी जानकारी राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को है. वो अपने विधायकों को एकजुट करने की कोशिश में जुटे हैं. राज्य में टूटती कांग्रेस को एकजुट रखने के लिए प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे पिछले दो दिनों से झारखंड में डेरा डाले हुए हैं, और विधायकों से वन टू वन मीटिंग कर रहे हैं.

सीएम हेमंत सोरेन को भी इस बात का डर है कि बीजेपी राज्य में सरकार गिराने के लिए कोई बड़ी चाल चल सकती है. यही कारण है कि वो विधायकों को कभी डिनर तो कभी सियासी पिकनिक पर लेकर निकल रहे हैं. वो यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार में सब ऑल इज वेल है.

इस बीच, अब महागठबंधन के नेता राजभवन पर दबाव बनाने लगे हैं. वो सीधा राज्यपाल को चुनौती दे रहे हैं. चंपई सोरेन ने कहा कि अगर राजभवन के पास अगर निर्वाचन आयोग ने कोई रिपोर्ट भेजी है, तो उसे तत्काल ही सार्वजनिक करनी चाहिए. ऐसे में इस बात की संभावना जताई जा रही है कि चुनाव आयोग सोमवार को कभी भी हेमंत सोरेन की विधायकी से संबंधित नोटिफिकेशन जारी कर सकता है.

हेमंंत सोरेन के साथ उनके छोटे भाई बसंत सोरेन की विधायकी को लेकर फैसला भी आज चुनाव आयोग की तरफ से सुनाया जा सकता है. इसकी सुनवाई लगभग पूरी कर ली गई है. अब माना जा रहा है कि दोनों भाइयों की सदस्यता पर फैसला एक साथ सुनाया जा सकता है.

झारखंड सरकार में मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि रोज-रोज घुट-घुट कर मरने से अच्छा है शेर की तरह मरना, कायर की तरह मरना सही नहीं है. इस लिए हम लड़ेंगे ना झुके हैं ना झुकेंगे. जनता ने जो बहुमत दिया है उसका पाई-पाई काम करके जनता को दिखाएंगे. हमारे पास 50 से ज्यादा विधायक हैं.

खतरा केवल झामुमों को नहीं है. सरकार की तरफ से भी पुख्ता तैयारी की गई है. विधानसभा में बीजेपी के सबसे बड़े नेता बाबू लाल मरांडी की विधायकी पर भी तलवार लटक रही है. 30 अगस्त को विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो के न्यायाधिकरण में मरांडी के खिलाफ सुनवाई की तिथि निर्धारित है. झारखंड की स्थिति को लेकर बीजेपी के केंद्रीय नेता इस विषय पर सजग हो गए हैं. बाबूलाल मरांडी के खिलाफ दल-बदल कानून की आड़ में उनकी विधायकी समाप्त की जा सकती है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी जाने के बाद बीजेपी पर चोट करते हुए यह कार्रवाई की जाएगी.

बात केवल बाबू लाल मरांडी और हेमंत सोरेन की विधायकी तक खत्म नहीं होने जा रही है. झारखंड विधानसभा के 7 विधायकों की विधायकी पर खतरा है. इनमें छह ऐसे हैं, जिनकी विधायकी पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है. इनमें सत्ता पक्ष के मुख्यमंत्री हेमंत साेरेन, बसंत साेरेन, इरफान अंसारी, नमन विक्सल काेंगाड़ी, राजेश कच्छप और विपक्ष के बाबूलाल मरांडी शामिल हैं.

अगर, विधानसभा में बहुमत साबित करने के समय 6 विधायक कम रहे, तो इनमें से 5 यूपीए के हाेंगे. ऐसे में शेष विधायकों की संख्या 76 हाे जाएगी. अगर स्पीकर को वाेट देने की जरूरत न पड़ी तो यह संख्या 75 हाे जाएगी, तब बहुमत का आंकड़ा 38 हाे जाएगा. यूपीए समर्थित 5 विधायकों की अनुपस्थिति में भी 45 विधायक यूपीए के साथ हैं.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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