जम्मू कश्मीर में भी गुजरात और हिमाचल के साथ ही चुनाव होने की सम्भावना है. ये चुनाव नवंबर दिसंबर में होंगे. जानकारी के मुताबिक़ जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने की पूरी तैयारी चुनाव आयोग ने कर ली है. 2019 में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पहली बार ये चुनाव होंगे. चुनाव के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर में पांच साल की सरकार बनेगी. अब तक राज्य में सरकार का कार्यकाल विशेष प्रावधान के तहत 6 साल के लिए होता था.
चुनाव आयोग से जुड़े सूत्रों ने बताया है कि परिसीमन का काम पूरा हो चुका है. संशोधित मतदाता सूची 31 अक्टूबर तक जारी की जा सकती है. मतदान केंद्र फाइनल करने का काम भी अंतिम चरण में है. अगले महीने तक इसे भी पूरा कर लिया जाएगा.
पहले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को मिला कर विधानसभा की कुल 87 सीटें थीं. इसमें 4 सीटें लद्दाख की शामिल थी, लेकिन लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 83 सीटें रह गई थीं. परिसीमन के बाद 7 सीटें बढ़ी हैं. इसके बाद कुल सीटों की संख्या 90 हो गई है. इसमें जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 विधानसभा क्षेत्र बनाए गए हैं. 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व की गई हैं.
अभी जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम बहुल वाले कश्मीर में 46 सीटें हैं और बहुमत के लिए 44 सीटें ही चाहिए. हिंदू बहुल इलाके जम्मू में 37 सीटें हैं. परिसीमन के बाद यह गणित बदल जाएगा. नए परिसीमन के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर की कुल 90 सीटों में से अब 43 जम्मू में और 47 कश्मीर में होंगी. साथ ही 2 सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए रिजर्व करने का सुझाव दिया गया है. इन बदलावों के बाद जम्मू की 44% आबादी 48% सीटों पर वोटिंग करेगी. कश्मीर में रहने वाले 56% लोग बची हुई 52% सीटों पर मतदान करेंगे. अभी तक कश्मीर के 56% लोग 55.4% सीटों पर और जम्मू के 43.8% लोग 44.5% सीटों पर वोट करते थे.
बता दें कि आर्टिकल 370 हटाए जाने से पहले जम्मू और कश्मीर की लोकसभा सीटों का परिसीमन केंद्र करता था. विधानसभा सीटों का राज्य सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट, 1957 के तहत होता था. 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा और लोकसभा दोनों सीटों का परिसीमन का अधिकार केंद्र के पास चला गया है.
जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार परिसीमन 1995 में तब हुआ था, जब वहां राष्ट्रपति शासन लागू था. तब वहां विधानसभा की सीटें 76 से बढ़ाकर 87 की गई थीं, जिनमें जम्मू की सीटें 32 से बढ़ाकर 37 और कश्मीर की सीटें 42 से बढ़ाकर 46 की गई थीं. 2002 में जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने राज्य के परिसीमन को 2026 तक के लिए टालने का प्रस्ताव पारित किया था.
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का कहना है कि जब पूरे देश के बाकी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर 2026 तक रोक लगी है, तो फिर जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से परिसीमन क्यों हो रहा है. जम्मू-कश्मीर के परिसीमन के विरोध की दूसरी वजह राजनीतिक भी है. दरअसल, राजनीतिक पार्टियां जनसंख्या के लिहाज से ज्यादा आबादी वाले मुस्लिम बहुल कश्मीर में कम सीटें बढ़ाने और हिंदू बहुल जम्मू में ज्यादा सीटें बढ़ाने के कदम की आलोचना कर रही हैं. उनका आरोप है कि बीजेपी अपने फायदे के लिए ऐसा कर रही है. जम्मू-कश्मीर में अभी भी राष्ट्रपति शासन लागू है.