Friday, April 19, 2024
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कांग्रेस को मिलेगा दलित अध्यक्ष !

लम्बे समय के बाद कांग्रेस को कोई गैर गांधी, पार्टी की कमान सम्हालेगा. संभव है दलित अध्यक्ष! नाम होगा मलिकार्जुन खड़गे. अगर ऐसा हुआ तो 51 साल बाद पार्टी को कोई दलित अध्यक्ष मिलेगा. इसके पहले जगजीवन राम पार्टी के अध्यक्ष बने थे. कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए शुक्रवार यानी 30 अक्टूबर को 3 नामांकन हुए. पहला नामांकन शशि थरूर, दूसरा नामांकन झारखंड के कांग्रेस लीडर के. एन त्रिपाठी और तीसरा नॉमिनेशन मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया. इसके साथ ही तय हो गया है कि अगला अध्यक्ष गैर-गांधी ही होगा.

थरूर और त्रिपाठी के प्रस्तावकों में इक्का-दुक्का लीडर्स थे, लेकिन गांधी फैमिली की चॉइस बताए जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावकों की लिस्ट में 30 बड़े नेताओं के नाम हैं. इनमें जी-23 के बड़े चेहरे आनंद शर्मा और मनीष तिवारी भी शामिल हैं. खड़गे के साथ नेताओं के हुजूम की तस्वीर यह साफ कर रही है कि नॉमिनेशन ही नतीजे हैं.
हाईकमान और टॉप लीडर्स के सपोर्ट से खड़गे का अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है. अगर ऐसा होता है तो खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद दूसरे दलित अध्यक्ष बनेंगे. जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे.
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में नामांकन के आखिरी दिन गांधी परिवार के भरोसेमंद मल्लिकार्जुन खड़गे ने वाइल्ड कार्ड एंट्री मारी है. गुरुवार देर रात तक सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के बीच नए अध्यक्ष को लेकर मीटिंग हुई, जिसके बाद शुक्रवार सुबह खड़गे को 10 जनपथ पर बुलाया गया था.
गांधी परिवार के बैकडोर सपोर्ट की वजह से खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है. सब कुछ सही रहा तो मजदूर आंदोलन से करियर की शुरुआत करने वाले खड़गे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद दूसरे दलित अध्यक्ष बनेंगे. जगजीवन राम 1970 – 71 में कांग्रेस के अध्यक्ष थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 44 सीटों पर ही सिमट गई. मोदी लहर में पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए. ऐसे में कर्नाटक के गुलबर्ग से आने वाले खड़गे ने अपनी सीट बचा ली, जिसका उन्हें फायदा मिला. कांग्रेस ने लोकसभा में उन्हें पार्टी का नेता बनाया. 2014 में करारी हार के बाद कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया.
दक्षिण भारत से होने के बावजूद खड़गे सदन में हिंदी में ही अपनी बातें रखते रहे. राहुल गांधी के उठाए गए राफेल से लेकर नोटबंदी के मुद्दे को खड़गे ने लोकसभा में बखूबी उठाया, जिससे वो टीम राहुल में भी शामिल हो गए. हालांकि, 2019 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन जल्द ही राज्यसभा के जरिए खड़गे ने सदन में एंट्री कर ली. बाद में पार्टी ने गुलाम नबी को हटाकर खड़गे को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था.
2019 में महाराष्ट्र में जब धुर-विरोधी उद्धव के साथ सरकार बनाने की बात आई, तो पार्टी ने खड़गे को ही प्रभारी बनाकर वहां भेजा. खड़गे सोनिया के इस मिशन को वहां कामयाब करने में सफल रहे. इतना ही नहीं, जुलाई महीने जब ED ने सोनिया-राहुल को पूछताछ के लिए दफ्तर बुलाया था, उस वक्त संसद में विरोध का मोर्चा खड़गे ने ही संभाला था.
2013 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद खड़गे मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे थे, लेकिन उन्हें केंद्र की पॉलिटिक्स में ही रहने के लिए कहा गया और उनकी जगह के सिद्धरमैया को सीएम बनाया गया. खड़गे उस वक्त मनमोहन कैबिनेट में श्रम विभाग के मंत्री थे, जिसके बाद उन्हें रेल मंत्रालय का जिम्मा दिया गया. मल्लिकार्जुन खड़गे 5 साल तक, यानी 2009 से 2014 तक मनमोहन कैबिनेट में मंत्री रहे.
50 साल से ज्यादा समय से पॉलिटिक्स में सक्रिय खड़गे को 1969 में कर्नाटक के गुलबर्गा शहर अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी. खड़गे ने एक इंटरव्यू में बताया कि शुरुआत में वो पार्टी के प्रचार के लिए खुद पर्चा बांटते थे और स्लोगन दीवारों पर लिखते थे.
खड़गे साल 1972 में वह पहली बार विधायक बने. इसके बाद वे 2008 तक लगातार विधायक चुने जाते रहे. साल 2009 में पार्टी ने उन्हें गुलबर्गा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया. इसके बाद वह लोकसभा पहुंचे. वह लगातार दो बार 2009 और 2014 में सांसद बने. खड़गे अपने राजनीतिक करियर में नौ बार विधायक रह चुके हैं.
तमाम उपलब्धियों के बाद खड़गे विवादों में भी रहे. राजनीतिक करियर में खड़गे का नाम 2 बड़े विवादों में आ चुका है. साल 2000 में कन्नड़ सुपरस्टार डॉ. राजकुमार का चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण कर लिया था. उस वक्त खड़गे प्रदेश के गृह मंत्री थे, जिसके बाद विपक्ष ने उनकी भूमिका पर सवाल उठाया. वहीं इसी साल नेशनल हेराल्ड केस में ईडी ने उनसे पूछताछ की थी. हेराल्ड केस में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है. हालांकि, अब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
खड़गे के परिवार में पत्नी राधाबाई के अलावा तीन बेटियां और दो बेटे हैं. उनका एक बेटा कर्नाटक के बेंगलुरु में स्पर्श हॉस्पिटल का मालिक है, जबकि दूसरा बेटा प्रियांक विधायक है. 2019 चुनाव के दौरान खड़गे ने अपनी संपत्ति करीब 10 करोड़ के आसपास बताई थी.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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