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कांग्रेस को धोखा देने वाले आजाद की रुदाली का सच

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कांग्रेस को धोखा देने वाले आजाद की रुदाली का सच

 

पिछले आठ सालों में कांग्रेस के 170 से ज्यादा बड़े नेताओं ने विपक्ष का दामन थामा. इनमे से करीब 155 नेता बीजेपी में गए. इन्ही कांग्रेसी नेताओं के दम पर बीजेपी ने खेल शुरू किया और फिर कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भी दिया. बीजेपी आज भी अपने इस अभियान को आगे बढ़ा रही है, और कांग्रेस आज भी अपने नेताओं की दगाबाजी से कराह रही है. जिस पार्टी ने नेताओं को सब कुछ दिया, मान-सम्मान, शोहरत और पद से नवाजा, वही नेता कांग्रेस पर सवाल उठाकर निकलते चले गए. इसी सूची में अब गुलाम नबी आजाद भी शामिल हो गए हैं. कहने को 73 साल की उम्र में गुलाम नबी आजाद अपनी अलग पार्टी बनाने का दावा कर कांग्रेस से निकले हैं, लेकिन सच यही नहीं है. वो बीजेपी की रणनीति पर चल रहे हैं और बीजेपी के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर में कोई बड़ा खेल करने वाले हैं. बड़ा खेल क्या है ? वही सत्ता की भूख. संभव है कि आजाद बीजेपी के मिलकर जम्मू कश्मीर में एक नयी राजनीति शुरू कर दे, और सत्ता तक पहुँच भी जाएं, लेकिन क्या कांग्रेस में रहकर वो सत्ता की पूर्ति नहीं करते रहे हैं ? उन पर सवाल तो बहुत कुछ उठ रहा है. और उठता भी रहेगा. वो बीजेपी में जायेंगे या परोक्ष रूप से बीजेपी के सहयोगी बनेंगे यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन उनके जैसा नेता जब पार्टी से इल्जाम लगाकर निकलता है तो राजनीति का चरित्र भी तार-तार हो जाता है. दगाबाजी का ऐसा खेल राजनीति में ही संभव है.

खबर तो यही है कि कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी से इस्‍तीफा दे दिया. इसके बाद उनके बीजेपी में जाने के कयास लगाये जाने लगे. कांग्रेस ने उनका नाम पीएम नरेंद्र मोदी के साथ भी जोड़ना शुरू कर दिया. इन सबके बीच गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वह जम्मू कश्मीर में ‘‘जल्द ही” अपनी नयी पार्टी बनाएंगे.

गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वह अपने समर्थकों और लोगों से मुलाकात करने के लिए जल्द ही जम्मू कश्मीर जाएंगे. उन्होंने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजने के बाद टीवी चैनलों से बात की. उन्होंने कहा कि मैं जल्द ही जम्मू कश्मीर जाऊंगा. मैं जम्मू कश्मीर में जल्द ही अपनी पार्टी बनाऊंगा. मैं भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी में शामिल नहीं होऊंगा.

यहां ये भी बताते चलें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने करीब पांच दशकों के बाद शुक्रवार को पार्टी को अलविदा कह दिया. उन्होंने दावा किया कि देश का सबसे पुराना दल अब ‘समग्र रूप से नष्ट हो चुका है’ तथा इसका नेतृत्व आतंरिक चुनाव के नाम पर ‘धोखा दे रहा है. ‘उन्होंने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर ‘अपरिपक्व और बचकाने व्यवहार’ का भी आरोप लगाया और कहा कि अब सोनिया गांधी नाममात्र की नेता रह गयी हैं. क्योंकि फैसले राहुल गांधी के ‘सुरक्षागार्ड और निजी सहायक’ करते हैं.

इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के पार्टी से इस्तीफे के पत्र के कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं. गुलाम नबी आजाद ने 1970 के दशक में पार्टी में शामिल होने के बाद से कांग्रेस के साथ अपने लंबे जुड़ाव का उल्लेख किया. आजाद ने राहुल गांधी पर पार्टी के भीतर परामर्श तंत्र को खत्म करने का आरोप लगाया है. आजाद ने कहा है कि सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया और अनुभवहीन ‘चापलूसों’ की नई मंडली पार्टी के मामलों में दखल देने लगी. आजाद ने राहुल गांधी द्वारा सरकारी अध्यादेश को पूरे मीडिया के सामने फाड़ने को ‘अपरिपक्वता’ का ‘उदाहरण’ बताया. आजाद ने कहा कि राहुल गांधी की यह हरकत भी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की 2014 में हुई हार का एक कारण रही. उन्होंने कहा कि पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए वह पंचमढ़ी (1998), शिमला (2003) और जयपुर (2013) में हुए पार्टी के मंथन में शामिल रहे हैं, लेकिन तीनों मौकों पर पेश किये गये सलाह-मशवरों पर कभी गौर नहीं किया गया और न ही अनुशंसाओं को लागू किया गया.

उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए विस्तृत कार्य योजना ‘‘पिछले नौ वर्षों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के ‘स्टोर रूम’ में पड़ी है. साल 2014 से सोनिया गांधी के नेतृत्व में और उसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस ‘शर्मनाक तरीके’ से दो लोकसभा चुनाव हार गई है. पार्टी 2014 और 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से 39 में भी हार गई.

आजाद ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी की स्थिति खराब हुई है. चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने आवेग में आकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. यूपीए सरकार की संस्थागत अखंडता को खत्म करने वाला ‘‘रिमोट कंट्रोल मॉडल” अब कांग्रेस पर लागू होता है.

आपके (सोनिया गांधी) पास सिर्फ नाम का नेतृत्व है, सभी महत्वपूर्ण फैसले या तो राहुल गांधी लेते हैं, या ‘‘फिर इससे भी बदतर स्थिति में उनके सुरक्षाकर्मी और निजी सहायक लेते हैं.”

गुलाम नबी आजाद ने आरोप लगाया कि पार्टी की कमजोरियों पर ध्यान दिलाने के लिए पत्र लिखने वाले पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं को अपशब्द कहे गए, उन्हें अपमानित किया गया, नीचा दिखाया गया. आजाद ने नेतृत्व पर आंतरिक चुनाव के नाम पर पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर ‘धोखा’ करने का आरोप लगाया. आजाद ने कहा कि पार्टी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पहले ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ निकालनी चाहिए थी.

आजाद के इन आरोपों को किस रूप में देश देखेगा इसे तो समय ही बताएगा लेकिन एक सवाल यह भी है कि पूरी जिंदगी आजाद जब कांग्रेस का रसपान कर रहे थे तब यह प्रवचन उन्हें याद क्यों नहीं आ रहा था. सच तो यही है कि वो बीजेपी के साथ खड़े हैं और वह भी उस समय जब कांग्रेस अपनी जमीनी लड़ाई लड़ रही है. सच्चा साथी परेशानी की बेला में साथ निभाता है न कि अपने लाभ के लिए दुश्मन को गले लगाता है. आजाद का भी इतिहास बनेगा.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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