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एपीसीआर ने बिहार के दो जिलों में रामनवमी हिंसा पर अपनी तथ्यान्वेषी रिपोर्ट जारी की

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एपीसीआर ने बिहार के दो जिलों में रामनवमी हिंसा पर अपनी तथ्यान्वेषी रिपोर्ट जारी की

सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और देश के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने का रामनवमी का काला और लंबा इतिहास रहा है. इस साल, बिहार शरीफ और सासाराम में रामनवमी के जुलूसों के दौरान सबसे खराब हिंसा देखी गई, क्योंकि भीड़ ने मुसलमानों की संपत्तियों पर हमला किया और उनके घरों को आग लगा दी.

30 अप्रैल, 2023 को शोभा यात्रा का जुलूस बिना किसी गंभीर हिंसा के गुजर गया. हालाँकि, 31 अप्रैल, 2023 को स्थिति भयावह हो गई, क्योंकि भीड़ ने तलवारें लहराईं और अश्लील सांप्रदायिक गाने बजाए, शुक्रवार की नमाज़ के दौरान मुस्लिम समुदाय को भड़काया. हिंसा तब और तेज हो गई जब भीड़ ने 100 साल पुराने अजीजिया मदरसा में आग लगा दी, जिससे 4500 किताबें नष्ट हो गईं. स्थानीय दुकानों और विक्रेताओं को भी महत्वपूर्ण संपत्ति का नुकसान हुआ. अकेले बिहार शरीफ में अनुमान है कि शोभा यात्रा में 60,000 लोगों ने भाग लिया और चश्मदीदों ने यह भी आरोप लगाया है कि गगन दीवान पेट्रोल पंप के पास हिंसा के कुछ दिन पहले सीसीटीवी कैमरे हटा दिए गए थे.

मामले की जांच करने के लिए एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स फैक्ट फाइंडिंग टीम, जिसमें मोहम्मद मोबशशिर अनीक एडवोकेट, प्रशांत टंडन सीनियर जर्नलिस्ट, सैफुल इस्लाम एडवोकेट, गुलरेज अंजुम सोशल एक्टिविस्ट, नसीकुज जमान एडवोकेट, मोहम्मद जाहिद सोशल एक्टिविस्ट और अकबर शामिल हैं. प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया और उन परिवारों की गवाही दर्ज की जिन्हें चोटें लगीं और उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ. तथ्य-खोज ने राज्य की पूरी विफलता का खुलासा किया और कैसे बजरंग दल के सदस्यों ने पुलिस की उपस्थिति में अपने झंडे फहराए, जिन्होंने उन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं किया. अन्य प्रत्यक्षदर्शियों ने टीम को बताया कि हिंसा शुरू होने के पांच से छह घंटे बाद पुलिस पहुंची और रामनवमी से कुछ दिन पहले एक शांति बैठक के बावजूद, प्रशासन सहमत निर्देशों का पालन करने में विफल रहा.

रिपोर्ट में कई सिफारिशें की गई हैं, जिसमें राज्य सरकार से हिंसा के पीड़ितों को मुआवजा देने का आग्रह किया गया है, जिन्होंने अपनी आजीविका और आश्रय खो दिया है और जिन पर बजरंग दल के गुंडों ने गंभीर हमला किया है.

इस अवसर पर प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने कहा कि बिहार में रामनवमी के दौरान हाल की हिंसा, विशेष रूप से बिहार शरीफ और सासाराम में, पूर्व नियोजित और समवर्ती थी. उन्होंने उल्लेख किया कि 2018 में भी इसी तरह की हिंसा हुई थी, लेकिन शांति समिति के निर्देशों का पालन करते हुए इन सभी वर्षों में इसे नियंत्रित किया गया था, जैसे उत्तेजक गीतों और हथियारों से परहेज करना, जिसे प्रशासन द्वारा अनुमोदित किया गया था, लेकिन इस वर्ष प्रशासनिक प्रबंधन में गंभीर खामियां देखने को मिली.

एडवोकेट मोबशशिर अनीक ने 2018 की एक रिपोर्ट की सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा, कि 2023 में, शांति समिति के निर्देशों के जमीनी कार्यान्वयन में कमी थी. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिंसा ने महत्वपूर्ण नुकसान पहुँचाया है, और स्थानीय राजनेताओं की चुप्पी और पुलिस की पक्षपाती कार्रवाई निंदनीय है.

इस दौरान पत्रकार भाषा सिंह ने फर्जी खबरों का मुकाबला करने के लिए फैक्ट फाइंडिंग के महत्व पर जोर दिया और राजनेताओं सहित जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए हिंसा की सुनियोजित प्रकृति पर प्रकाश डाला. उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए त्योहारों के उपयोग और बेरोजगार युवाओं में संभावित कट्टरता का भी उल्लेख किया.

सामाजिक कार्यकर्ता जॉन दयाल ने इस्लामोफोबिया के मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यह एक टिक-टिक करने वाला टाइम बम है जो देश को नष्ट कर रहा है. उन्होंने इस्लामोफोबिया को बढ़ावा देने वाले स्कूलों और समुदायों के उदाहरणों और हिंसा का मुकाबला करने के लिए धर्मनिरपेक्षता और राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता का उल्लेख किया. उन्होंने समुदाय विशेष को नफरत से दूर करने के महत्व पर भी बल दिया.

सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने बिहार में रामनवमी के जुलूसों को मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किये जाने का आरोप लगाया. जिसमें मुस्लिम घरों और व्यवसायों को नष्ट करने का एक पैटर्न दिखाया गया है. पुलिस को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और हिंदू समुदाय को अपने बच्चों को ऐसी हिंसा में भाग लेने से रोकने के लिए पहल करनी चाहिए.

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश जी ने कहा कि जब त्योहारों, खासकर रामनवमी के जुलूसों के दौरान हिंसा की बात आती है तो बिहार अपवाद नहीं है. प्रशासन के प्रयासों की कमी और राजनीतिक ध्रुवीकरण समस्या में योगदान करते हैं. हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है और खुलेआम खरीदा जाता है. फिर भी ऐसी हिंसा को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इसके लिए बेहतर राजनीतिक दल के प्रयासों की आवश्यकता है.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि निजी रिपोर्टों का तत्काल प्रभाव नहीं हो सकता है, लेकिन वो दीर्घकालिक परिवर्तन में योगदान करते हैं. स्मृति और शक्तिशाली जो हमें याद नहीं रखना चाहते हैं, उनके खिलाफ संघर्ष जारी है. उम्मीद और आजादी हासिल करने के लिए न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में बदलाव की जरूरत है.

सभी वक्ताओं ने सर्वसम्मति से बिहार में रामनवमी के दौरान पूर्व नियोजित हिंसा, निर्देशों के कार्यान्वयन में कमी, इस्लामोफोबिया के मुद्दे और हिंसा को संबोधित करने और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए फैक्ट फाइंडिंग और राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता पर चिंता व्यक्त की.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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