Home देश उत्तराखंड में धामी की ताजपोशी के साथ ही बढ़ी चुनौतियाँ

उत्तराखंड में धामी की ताजपोशी के साथ ही बढ़ी चुनौतियाँ

उत्तराखंड में धामी की ताजपोशी के साथ ही बढ़ी चुनौतियाँ

पुष्कर सिंह धामी ने आज उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. उन्हें राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (रि) ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. इस दौरान मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी मौजूद रहे. शपथ लेने के तुरंत बाद पुष्कर धामी पीएम मोदी का आशीर्वाद लेने उनके पास पहुंचे. धामी राज्य के 12वें मुख्यमंत्री बने हैं.
पुष्कर सिंह धामी के बाद सतपाल महाराज ने मंत्री पद की शपथ ली. सतपाल के अलावा धन सिंह रावत, गणेश जोशी, रेखा आर्य, सुबोध उनियाल, सौरव बहुगुणा, प्रेमचंद अग्रवाल और चंदन राम दास को भी राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (रि) ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.
पुष्कर सिंह धामी लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं. वह सूबे के 12वें सीएम हैं. इससे पहले जुलाई 2021 में तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे के बाद बीजेपी ने पुष्कर सिंह धामी को राज्य की कमान सौंपी थी, लेकिन धामी के सीम बनते ही अब उनके सामने चुनौतियां भी बढ़ गई है. सूबे की जनता ने बड़े ही आस के साथ बीजेपी को वोट डाला था ताकि उनकी हालत में सुधार हो. सीएम बनने के बाद धामी जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतारते हैं इसे देखना होगा, सीएम धामी को अब कमजोर अर्थव्यवस्था, राजस्व के सीमित स्रोतों के बीच शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और परिवहन सेवाओं से जैसे बुनियादी मुद्दों का हल तलाशना है, बल्कि लोगों की अपेक्षाओं पर भी खरा उतरना है. साथ ही चुनाव के दौरान किए गए वायदों पर खरा उतरना भी सीएम के लिए बड़ा लक्ष्य होगा.
बता दें कि राज्य की अर्थव्यवस्था संतोषजनक स्थिति में नहीं है. आय के साधन न होने की वजह से राज्य पर इस वक्त 65 हजार करेाड़ रुपये का कर्ज हो चुका है. हालत यह है कि कार्मिकों के वेतन के लिए अक्सर सरकार को बाजार से कर्ज लेना पड़ता है. कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए राज्य को नया कर्ज लेना पड़ता है. आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए आय के नए स्रोत तलाशने होंगे.
पलायन राज्य की बड़ी समस्याओं में शामिल है. रोजगार के अभाव में लोगों को शहरों और दूसरे राज्यों को पलायन करना पड़ रहा है. वर्ष 2011 तक राज्य के 968 गांव खाली हो गए थे. वर्ष 2011 के बाद इनमें 734 गांव और जुड़ चुके हैं. सीमांत क्षेत्रों के विकास के लिए ठोस योजनाएं न होने की वजह से पलायन का सिलसिला लगातार जारी है. कोरोना काल में लौटे प्रवासियों में भी ज्यादातर इसी वजह से वापस लौट चुके हैं.
इसके साथ ही उत्तराखंड वर्षों से बेरोजगारी के दंश से जूझ रहा है. रोजगार दफ्तरों में इस वक्त 8 लाख से ज्यादा बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं. कोरेाना काल में लौटे प्रवासियों को रोजगार देने के लिए सरकार उपनल में भी रजिस्ट्रेशन खोले थे. उपनल में भी करीब एक लाख नाम दर्ज हो चुके हैं. पिछले पांच साल में सरकार 11 हजार के करीब ही नौकरियां दे पाई हैं.
उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराना भी बड़ी चुनौती है. राज्य के 20 हजार से ज्यादा बेसिक, जूनियर, माध्यमिक स्कूलों में न तो पर्याप्त शिक्षक ही हैं और न ही पर्याप्त संसाधन. बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं जहां न बिजली की सुविधा है और पानी, टायलेट भी नहीं हैं. माध्यमिक स्तर पर ही छह हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं. इनमें 4500 पर अतिथि शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है.
पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को दूर करना नए सीएम के लिए चुनौती होगी. इस वक्त राज्य के सरकारी अस्पतालों की स्थिति रैफरल सेंटर जैसी हो चुकी है. 515 डाक्टरों की कमी के कारण लोगों को उपचार के लिए प्राइवेट अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है. राज्य में 56 ऐसे अस्पताल हैं जहां अब तक जेनरेटर तक की व्यवस्था नहीं है.
भ्रष्टाचार उत्तराखंड में हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. समाज कल्याण छात्रवृत्ति, एनएच मुआवजा, भर्ती, बस खरीद, निर्माण कार्य, खनन-शराब समेत तमाम कई घोटाले हैं जो हर सरकार में आते रहे हैं. अब जबकि भ्रष्टाचार जोंक बनकर उत्तराखंड को चूस रहा है, नई सरकार को इस जोंक के खात्मे के लिए सुशासन का तीखा नमक तैयार करना होगा.
इसके साथ ही राज्य के 6.46 लाख घरों में अब तक पेयजल कनेक्शन नहीं है. इसके साथ ही राज्य के 100 में से 80 शहरों में लोगों को 135 एलपीसीडी के तय मानक से काफी कम पानी मिल रहा है. गरमियों में स्रोत सूख जाने की वजह से पर्वतीय क्षेत्रों में पानी का संकट और विकराल हो जाता है.
अफसरशाही को साधकर चलना भी हर सरकार के लिए चुनौती रहा है. उत्तराखंड माना जाता रहा है कि नौकरशाही कभी सरकार के नियंत्रण में नहीं रही. पिछली सरकार में तमाम मंत्री अफसरों के सामने अपनी लाचारी की पीड़ा सार्वजनिक रूप से जाहिर करते रहे हैं. अफसरों को नियंत्रित रखना और उनमें पब्लिक सर्वेंट की भावना जागृत करना सीएम के लिए बड़ा टास्क रहेगा.
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र पर अमल कराना भी सीएम धामी के लिए बड़ी चुनौती होगा. भाजपा चुनाव घोषणा पत्र में कामन सिविल कोड लागू करने का बड़ा वादा किया. इसके साथ ही बीपीएल महिलाओं को साल में तीन मुफ्त सिलेंडर, कामगारों और गरीब महिलाओं को मासिक पेंशन, किसानों को केंद्र के समान सम्मान निधि समेत कई वायदे किए हैं. राज्य की कमजोर माली हालत के बीच इन वादों को पूरा करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी भी है.

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पिछले 30 वर्षों से मिशनरी पत्रकारिता करने वाले अखिलेश अखिल की पहचान प्रिंट, टीवी और न्यू मीडिया में एक खास चेहरा के रूप में है। अखिल की पहचान देश के एक बेहतरीन रिपोर्टर के रूप में रही है। इनकी कई रपटों से देश की सियासत में हलचल हुई तो कई नेताओं के ये कोपभाजन भी बने। सामाजिक और आर्थिक, राजनीतिक खबरों पर इनकी बेबाक कलम हमेशा धर्मांध और ठग राजनीति को परेशान करती रही है। अखिल बासी खबरों में रुचि नहीं रखते और सेक्युलर राजनीति के साथ ही मिशनरी पत्रकारिता ही इनका शगल है। कंटेंट इज बॉस के अखिल हमेशा पैरोकार रहे है।

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