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आखिर क्यों हुई डीयू के प्रोफ़ेसर रतन लाल की गिरफ्तारी ?

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आखिर क्यों हुई डीयू के प्रोफ़ेसर रतन लाल की गिरफ्तारी ?

अखिलेश अखिल

आस्था पर हमला भला कौन बर्दास्त करे ! यही आस्था तो समाज को बढ़ाता है और कभी कभी समाज को तोड़ता भी है. आस्था जब कट्टरता का रूप ले ले तो समाज में कटुता बढ़ती है और इंसानियत शर्मसार होता है. कशी विश्वनाथ हिन्दुओं के आराध्य है. वो स्वयंभू हैं. उनके बारे में तर्क कैसा ? उधर ज्ञानवापी में मुसलमानो की आस्था है. हमारे संविधान में सभी की आस्था का सम्मान है और उस आस्था पर कोई सवाल भी नहीं. लेकिन जब कशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में ज्ञानवापी का मामला सामने आया तो फिर से अयोध्या की याद ताजा हो गई. अयोध्या में मंदिर और मस्जिद की लड़ाई वर्षों तक चलती रही. नेताओं ने इस लड़ाई को खूब भुनाया और कई चुनावी खेल भी किये. किसी को लाभ हुआ तो किसी की राजनीति गर्त में चली गई. सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में अयोध्या विवाद को सुलझाया.
अब ऐसा ही सबकुछ बनारस में होता दिख रहा है. अदालत की देखरेख में ज्ञानवापी में कई तरह के सर्वे चल रहे हैं. सर्वे के दौरान कई चीजे मिलने की बातें कही जा रही है. मिली चीजों का सच क्या है यह तो वैज्ञानिक जांच से ही पता चल सकता है लेकिन इस मसले पर बोलने वाले बाज नहीं आ रहे. सब बोल ही तो रहे हैं. हिन्दुओं का एक वर्ग अपने पक्ष में दलील देता नजर आता है तो मुसलमानो का एक पक्ष अपना दावा पेश करता है. सच तो यही है कि इनमे से कोई पाक साफ़ नहीं है. सबके मन मैल हैं. उधर कुछ बुद्धिजीवी भी अपना ब्यान दर्ज कर रहे हैं और सरकार के रडार पर चढ़ रहे हैं.
इसी ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रत्न लाल को दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने आईपीसी की धारा 153ए, और 295ए के तहत गिरफ्तार किया है. बताते चलें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने अपने फेसबुक अकाउंट पर ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.
पुलिस के मुताबिक एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने) और 295ए (धर्म का अपमान कर किसी वर्ग की धार्मिक भावना को जानबूझकर आहत करना) के तहत साइबर पुलिस ने गिरफ्तार किया है. दिल्ली के एक वकील की शिकायत के आधार पर रतन लाल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. वकील विनीत जिंदल ने अपनी शिकायत में कहा कि रतन लाल ने हाल ही में ‘शिवलिंग’ पर एक अपमानजनक और उकसाने वाला ट्वीट किया था.
ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई अब वाराणसी के जिला जज करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए आदेश दे दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद में नमाज जारी रहेगी. इसके साथ ही कथित शिवलिंग वाला एरिया पूरी तरह से सील रहेगा. आगे क्या होगा आखिर कौन जाने ! लेकिन इस खेल में प्रोफ़ेसर रतन लाल शिकार हो गए हैं. वो समाज और मजलूमों की चिंता करते हैं. बहस करते हैं. दलित विमर्श भी करते हैं लेकिन किसी की आस्था पर चोट भला वो कैसे कर सकते हैं. क्या वो नहीं जानते कि इसी आस्था की लड़ाई में हम क्या से क्या होते जा रहे हैं. दुनिया विज्ञान के सहारे कहाँ से कहाँ पहुँच रही है लेकिन हम भारत के लोग धर्म के पाखंड में डुबकी लग रहे हैं.

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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