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अमेठी को बीजेपी के चंगुल से छुड़ाने की राहुल बाबा की चुनौती

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अमेठी को बीजेपी के चंगुल से छुड़ाने की राहुल बाबा की चुनौती

क्या अमेठी में राहुल -प्रियंका की जोड़ी कुछ बेहतर कर पायेगी ? क्या अमेठी को बीजेपी के चंगुल से राहुल बहार निकाल पाएंगे ? इस बात को सब जानते हैं कि यूपी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस कोई बड़ा करिश्मा नहीं करने जा रही है। लेकिन कांग्रेस के बारे में यह साफ़ हो गया है कि मौजूदा चुनाव में कांग्रेस करीने से लड़ रही है और आगामी लोक सभा चुनाव के लिए आधार तैयार कर रही है। कांग्रेस का यह आधार जितना मजबूत होगा ,आगामी चुनाव में पार्टी को इसका लाभ मिलेगा। यूपी में कांग्रेस भी एक ताकत के रूप में उभरेगी। लेकिन यह सब भविष्य की बात है। कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती तो अमेठी को बीजेपी से मुक्ति दिलाने की है। जो अमेठी गाँधी परिवार का गढ़ रहा है अब उस अमेठी में बीजेपी मजबूती से खड़ी। अमेठी के अधिकतर कोंग्रेसी बीजेपी के साथ है और अधिकतर कार्यकर्ता पार्टी से निराश और हताश होकर या तो मौन हैं या फिर सपा -बीजेपी के बीच बंट गए हैं।
सच तो यही है कि कांग्रेस के पास अमेठी में कुछ भी नहीं है। पहले अमेठी से बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने राहुल को चलता किया, अमेठी की तीन विधान सभा सीटें बीजेपी के पास गयी और बाद में एक सीट जो अदिति सिंह के पास थी अब वह भी अब कांग्रेस से जुड़ा होकर बीजेपी से चुनाव लड़ रही है। राहुल -प्रियंका को चुनौती दे रही है। यानी पांच में से चार सीटें फिलवक्त बीजेपी के पास है और एक सीट सपा के पास। कांग्रेस के पास अमेठी में कुछ भी नहीं है।
लेकिन अमेठी से कांग्रेस का लगाव है। उसकी जड़ें हैं और उसकी यादे भी। ऐसा ही कुछ अमेठी का भी कांग्रेस के साथ जुड़ाव रहा है। लेकिन अब अमेठी की तासीर बदल चुकी है। उसका मिजाज बदल गया है। जो अमेठी गाँधी परिवार के इशारे पर नारे लगाती थी अब बीजेपी की हुंकार से गाँधी परिवार को डराती है। चुनौती देती है। अमेठी अब कांग्रेस का गढ़ नहीं रहा वह तो कांग्रेस के हाथ से छीनी गई बीजेपी का एक प्रतीक है ,पहचान है और बीजेपी के लिए कांग्रेस मुक्त भारत का एक उदाहरण भी। पहले इस इलाके से राहुल को निपटाया गया और अब रायबरेली से सोनिया गाँधी को निपटाने की बारी है। बीजेपी के इस खेल की जिस दिन पूर्णाहुति होगी उसी दिन बीजेपी की यह घोषणा हो सकती है कि यूपी से गाँधी परिवार को मुक्ति मिल गई। यह कांग्रेस मुक्त भारत की शुरुआत है।
पांच राज्यों के चुनाव में कहने के लिए कांग्रेस को खोने के लिए कुछ भी नहीं है। जब कांग्रेस खुद ही खो चुकी है तो उसे डर किसका ! जानकार कहते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है क्योंकि उसे चार राज्यों के खोने का भय है। कांग्रेस की प्रतिष्ठा सिर्फ पंजाब में दाव पर है। पंजाब में फिर से कांग्रेस की वापसी अगर हो गई तो राहुल का मान रह जाएगा। लेकिन सच क्या यही है ? क्या पंजाब की वापसी से ही कांग्रेस की इज्जत बच जाएगी ? ऐसा नहीं है। इस चुनाव में अगर कांग्रेस ने बीजेपी को मात नहीं दिया और कुछ राज्यों में उसकी सरकार नहीं बनी तो सच मानिये कांग्रेस अगले चुनाव तक जमींदोज हो जाएगी। गाँधी परिवार का इकबाल भी समाप्त हो जाएगा और फिर कांग्रेस के भीतर जो खेल होगा उसकी कल्पना भी नहीं जा सकती। इसलिए कांग्रेस के सामने बीजेपी से बड़ी चुनौती है। उसकी चुनौती राहुल -प्रियंका की राजनीति को स्थापित करने की है। और ऐसा नहीं हुआ तो फिर कांग्रेस क्षेत्रवार कई गुटों में बंट सकती है ,टूट सकती है और जमींदोज भी हो सकती है।
याद रहे यह चुनाव पूरी तरह से राहुल प्रियंका के दम पर लड़े जा रहे हैं,जिसमे किसी और कोंग्रेसी नेताओं की बड़ी भूमिका नहीं दिखती। पांच राज्यों का यह चुनाव राहुल -प्रियंका का लिटमस टेस्ट है। इस टेस्ट में वह सफल होते है तो कांग्रेस जीवंत होगी , पार्टी का इकबाल बढ़ेगा और पार्टी के प्रति नए लोगों का आकर्षण भी होगा। मौजूदा चुनाव में राहुल -प्रियंका की जोड़ी यही कुछ करने को तैयार हैं ताकि पार्टी भी बचे और गाँधी परिवार का इकबाल भी दिखे। लेकिन क्या यह सब इतना आसान है ? हरगिज नहीं।
कांग्रेस की असली चुनौती तो अब अमेठी और रायबरेली की है। यूपी के चुनाव में कांग्रेस कितनी सीटें पाती है इसका विश्लेषण तो परिणाम के बाद होगा लेकिन अमेठी से कांग्रेस अगर खाली हाथ वापस लौटती है तब गाँधी परिवार का यह गढ़ सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। यूपी से गाँधी परिवार के पलायन और स्थापित होने की असली परीक्षा इसी चुनाव में होनी है। इसलिए अब राहुल की नजर भी यहां टिक गई है। अमेठी को बचाने के लिए अब राहुल गाँधी इंट्री कर चुके हैं। अमेठी में राहुल चुनाव प्रचार करने पहुंचे और लोगों से संवाद भी किया। लेकिन बदल चुकी अमेठी को राहुल भांप भी गए। मुस्कुराती अमेठी पर राहुल की रुदाली का जनता पर क्या असर होगा इसे देखने की जरूरत है।
2019 का चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने दूसरी बार अमेठी का दौरा किया है। जनता ने राहुल के साथ नारे भी लगाए। राहुल भावुक भी हुए और फिर आगे निकल गए। राहुल को लगा कि अब अमेठी केवल उनकी ही नहीं है। अमेठी बदल चुकी है, बीजेपी के साथ अब उनके लोग चले गए हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद अब तक राहुल गांधी महज एक बार ही अमेठी गए थे। लेकिन अपने कमजोर होते गढ़ में वो एक बार फिर दस्तक दे गए। हाथ जोड़े ,अपने लोगों को जगाया ,मनाया भी।बीजेपी की हो गई अमेठी को भला राहुल की अपील से क्या मतलब ! जहां कांग्रेस पार्टी का कभी दबदबा रहा करता था और अब कांग्रेस पार्टी यहाँ नेता विहीन हो गया है।
बता दें कि लोकसभा चुनाव के बाद पहली दफा राहुल गाँधी पिछले साल दिसंबर में अमेठी। वही से उन्होंने चुनाव प्रचार का आगाज किया था।तब कहा गया था कि जिस अमेठी ने राहुल गांधी को हार का स्वाद चखाया, उसी इलाके से पार्टी के चुनावी रथ को गति देना महज एक इत्तेफाक नहीं हो सकता, बल्कि ये कांग्रेस पार्टी की रणनीति को दर्शाता है। जानकारों तब यह भी कहा था कि अमेठी में अपना सब कुछ खो चुकी कांग्रेस अब उसी अमेठी से बीजेपी को चुनौती देगी। यह बात और है कि तब राहुल के अमेठी पहुँचने का भव्य स्वागत हुआ था लेकिन अब अमेठी जब बीजेपी के भगवा रंग में रंग चुकी है ,राहुल यहाँ जनता के मिजाज को कितना बदल सकेंगे कहना मुश्किल है।
अमेठी -रायबरेली में अब कांग्रेस के पास कोई सीटें नहीं है। पंचायत स्तर पर भी कांग्रेस की झोली खाली है। आखिरी विधायक अदिति सिंह थी वह भी भगवा रंग में टांग गई और बीजेपी से ताल थोक रही है। अदिति सिंह के बीजेपी में जाते ही पार्टी का इस इलाके से सूपड़ा साफ हो गया और अब नेहरू-गांधी परिवार के गढ़ अमेठी-रायबरेली क्षेत्र की कुल 10 विधानसभा सीटों में से एक भी कांग्रेस के पास नहीं है। वहीं बीजेपी इन दोनों जिलों की जिला पंचायत तक पर काबिज हो चुकी है।
राहुल गांधी की हार और सोनिया गांधी के खराब स्वास्थ्य के चलते क्षेत्र में कार्यकर्ताओं को लगातार निर्देश न मिलने के चलते भी पार्टी अमेठी-रायबरेली में कमजोर हुई है। क्षेत्र के कई बड़े नेताओं, जिनमें दो विधायक भी शामिल हैं, के पार्टी छोड़कर जाने से भी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है। इसके अलावा जमीनी स्तर पर बीजेपी और अमेठी में राहुल गांधी को मात देने वाली स्मृति ईरानी भी बीजेपी के विस्तार के लगातार प्रयासों में जुटी हुई है। इन तमाम कारणों के चलते प्रदेश भर में दंभ भरने वाली कांग्रेस अपने ही गढ़ में कमजोर और बीजेपी मजबूत नजर आ रही है।
यूपी चुनाव में बड़े -बड़े दाव खेलने की तैयारी कांग्रेस ने जरूर की है लेकिन मौजूदा चुनाव में कांग्रेस कोई बड़ी उपलब्धि पाती नजर नहीं आ रही। महिलाओं पर दाव और बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार की घोषणा लुभाती जरूर है लेकिन जाति और धर्म की राजनीति कांग्रेस को पिछाड़ रही है। यही वजह है कि पार्टी के तमाम बड़े नेता अभी मौन हैं। उनकी चुप्पी तब टूटेगी.
जब कांग्रेस के आखिरी गढ़ अमेठी और रायबरेली में प्रियंका और राहुल की जोड़ी को चमत्कार कर पायेगी। पंजाब को वापस कर सकेगी और उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में अपनी दस्तक दे पायेगी। ऐसा हुआ तो राहुल -प्रियंका की युवा और नयी राजनीति आगे बढ़ेगी वरना बीजेपी को मात देने की थर्ड फ्रंट की कथित राजनीति और कथित पीएम उम्मीदवार कांग्रेस को बाईपास कर आगे निकल जाएगी।

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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.

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