Home देश अटल की राह पर गडकरी, विपक्ष की राजनीति के बने पैरोकार

अटल की राह पर गडकरी, विपक्ष की राजनीति के बने पैरोकार

अटल की राह पर गडकरी, विपक्ष की राजनीति के बने पैरोकार
The Union Minister for Road Transport & Highways and Shipping, Shri Nitin Gadkari addressing the Economic Editors’ Conference-2016, organised by the Press Information Bureau, in New Delhi on November 10, 2016.

अखिलेश अखिल.

लोकतंत्र में विपक्ष की राजनीति कितनी जरूरत है इसके अगुआ बने हैं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी. कभी लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष की जरुरी धुरी मानते थे अटल बिहारी वाजपेयी. विपक्ष में रहकर अटल ने सत्ता पक्ष को कोसने से बाज नहीं आते थे और सत्ता में रहकर विपक्ष को नजर अंदाज नहीं करते थे. वो मानते थे कि पक्ष और विपक्ष की मजबूती से ही लोकतंत्र फल फूल सकता है. बिना मजबूत विपक्ष के देश का कल्याण संभव नहीं. यह बात और आज की तारीख में अटल की इस सोच-समझ का कोई मायने नहीं रह गया है. मौजूदा सत्ता पक्ष तो मुख्य विपक्षी कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना करता है. लेकिन इस मोदी सरकार में आज भी एक मंत्री ऐसे हैं जो अटल की राह को सही मानते हैं और मजबूत विपक्ष की कामना करते हैं.
आज कांग्रेस जिस समय बहुत ही बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है, उसकी हौसला अफजाई के लिए सबसे आगे उसके मुख्य विरोधी दल भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ही आए हैं. उन्होंने कहा है कि देश के लोकतंत्र के लिए कांग्रेस का मजबूत होना बहुत जरूरी है और साथ ही उन्होंने कांग्रेसियों को पार्टी के साथ डटकर खड़े रहने की भी सलाह दी है. उन्होंने कुछ उदाहरण भी दिए हैं, जो निश्चित तौर पर कांग्रेस के नेताओं के लिए मनोबल को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. इसके साथ ही उन्होंने महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर भी अपनी बात रखी है.
शनिवार को पुणे में एक जर्नलिज्म अवॉर्ड कार्यक्रम में केंद्रीय सड़क परिवहन और हाइवे मंत्री नितिन गडकरी ने कांग्रेस नेताओं के गिरते मनोबल को उठाने के लिए कई अच्छे मशवरे दिए हैं और महाराष्ट्र की राजनीति में वापस लौटने की संभावनाओं को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. एक प्रमुख अखबार की ओर से आयोजित कार्यक्रम में सवाल और जवाब सत्र के दौरान वे बोले, ‘मैं एक राष्ट्रीय राजनेता हूं और इस समय महाराष्ट्र में लौटने का इच्छुक नहीं हूं. एक समय की बात है कि मैं खासकर केंद्र में जाने का इच्छुक नहीं था, लेकिन अब मैं वहां खुश हूं।. मैं दृढ़ विश्वास से काम करने वाला राजनेता हूं और खासकर महत्वाकांक्षी नहीं हूं.’ उन्होंने यह भी कहा है कि वो प्रधानमंत्री पद की ‘रेस में नहीं’ थे.
गडकरी ने देश में कांग्रेस पार्टी के मजबूत रहने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा है कि क्षेत्रीय दलों को विपक्ष की भूमिका पर कब्जा करने से रोकने के लिए यह आवश्यक है. सबसे बड़ी बात ये है कि कांग्रेस की मुख्य-विरोधी भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता ने कांग्रेसियों को यह भी सलाह दी है कि वो अपना विश्वास बनाए रखें और अपनी पार्टी में ही बने रहें. वो बोले की लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत रहना जरूरी है और कमजोर कांग्रेस लोकतंत्र के लिए सही नहीं है, क्योंकि उसकी जगह क्षेत्रीय पार्टियां ले लेंगी, जो कि अच्छा संकेत नहीं है.
दरअसल, हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों में कांग्रेस की दुर्गति होने के बाद पार्टी नेताओं में जिस तरह से निराशा फैली हुई है, उसपर गडकरी ने उदाहरण देकर भी मुख्य विपक्षी दल का हौसला बढ़ाना चाहा है. उन्होंने कहा है, ‘अटल बिहारी वाजपेयी 50 के दशक में लोकसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन फिर भी पंडित जवाहर लाल नेहरू से उन्हें सम्मान मिलता था. इसलिए लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है. मेरी दिल से इच्छा है कि कांग्रेस मजबूत बनी रहे. आज जो कांग्रेस में हैं वो निश्चित रूप से अपना विश्वास बनाए रखें और कांग्रेस में बने रहें. वो काम करना जारी रखें और उन्हें हार से निराश नहीं होना चाहिए.’ उन्होंने कहा है कि हर पार्टी का समय आता है, लेकिन जरूरी है कि काम करते रहना चाहिए.
बता दें कि राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष में मतभेद होते हैं लेकिन मनभेद नहीं होते. अगर मनभेद हो गए तो यहीं से दुश्मनी की शुरुआत होती है. और ऐसा होने पर लोकतंत्र कमजोर होता है. देश के सामने कई संकट आते हैं. बानगी के तौर पर कहा जा सकता है कि जब इंदिरा गाँधी या राजीव गाँधी भी सत्ता में थे तब उन्होंने कभी विपक्ष को कमतर नहीं माना और हमेशा अटल जी की सराहना की और पार्टी लाइन से उठकर मदद भी की.
1977 में इंदिरा गांधी लोकसभा का चुनाव हार गयीं थीं. इमरजेंसी में हुए अत्याचार को लेकर उनके खिलाफ जनता में बेहद गुस्सा था. मोरारजी सरकार के कई मंत्री आपाताकाल में जेल की यंत्रणा भोग चुके थे. उनमें भी बहुत आक्रोश था. अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इमरजेंसी में इंदिरा गांधी की तानाशाही झेली थी. लेकिन उनकी सोच बिल्कुल अलग थी. चुनाव हारने के बाद इंदिरा गांधी बहुत डरी-सहमी रहती थीं. जनाक्रोश देख कर उनके मन में डर बना रहता था कि अगर जनता सरकार के किसी नेता ने लोगों की भावनाएं भड़का दीं तो उनके साथ अनहोनी हो सकती है. भीड़ उन पर हमला कर के कहीं खून खराबा न कर दे. मोरारजी सरकार के बने कुछ ही दिन हुए थे. विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इंदिरा गांधी की मनोदशा के बारे में जानकारी हुई तो चिंतिति हो गये. वो प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के पास पहुंचे. उन्होंने कहा, किसी नेता से हमारा राजनीतिक विरोध हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह हमारा दुश्मन है. हमें बदले की भावना से राजनीति नहीं करनी चाहिए. इंदिरा गांधी डरी हुई हैं. उन्हें सरकार की तरफ से भरोसा दिया जाना चाहिए कि वो बिल्कुल सुरक्षित हैं. मोरारजी देसाई तब से इंदिरा गांधी के विरोधी थे जब वो कांग्रेस में थे. उन्होंने वाजपेयी जी को टालने की कोशिश की, लेकिन वाजपेयी जी ने अपनी बातों से मोरारजी देसाई को आखिरकार मना लिया.
अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी के घर पहुंचे. उन्होंने इंदिरा गांधी को भरोसा दिलाया कि जनता पार्टी का कोई भी नेता उनके या उनके परिवार के खिलाफ हिंसा भड़काने की कोशिश नहीं करेगा. उनके साथ उचित व्यवहार किया जाएगा और वो पूरी तरह सुरक्षित हैं. अटल बिहारी वाजपेयी खुद इस बात के लिए सतर्क रहे. उनके प्रभाव से जनता पार्टी के नेता भी कुछ दिनों तक चुप रहे. लेकिन गृह मंत्री चरण सिंह को इंदिरा गांधी से खास खुन्नस थी. चरण सिंह के समर्थक इंदिरा गांधी को सबक सिखाने का मौका खोजने लगे. जनता पार्टी सरकार हकीकत में कई दलों की सरकार थी. चरण सिंह का धड़ा इंदिरा गांधी के मामले में आक्रामक हो गया. एक हद के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के भी हाथ बंधे हुए थे. जनता सरकार ने संजय गांधी और इंदिरा गांधी को जेल भेज कर ही दम लिया. वाजपेयी जी की बात नहीं मानी गयी. लेकिन बाद में कांग्रेस के नेताओं ने वाजपेयी जी की इस उदारता के लिए उनकी तारीफ की थी.
इसी तरह एक बार अटल बिहारी वाजपयी बीमार चल रहे थे. उनकी बिमारी का इलाज तब अमेरिका में ही संभव था. लेकिन उनके पास अमेरिका जाने -आने के लिए पैसे नहीं थे। यह वह समय था जब राजीव गाँधी सत्ता में थे. जब राजीव गांधी को अटल जी के बारे में यह सब जानकारी मिली तो उन्होंने अटल जी को बुलाकर कहा कि सरकार की तरफ से एक दल संयुक्त राष्ट्र संघ में जा रहा है, आप भी इस दल का हिस्सा हैं. उम्मीद है कि वहां जाकर आप अपन इलाज भी करा लेंगे. और ऐसा हुआ भी. हालांकि राजीव गांधी ने कभी भी इस बात की चर्चा किसी से नहीं की और न ही अटल जी ने कभी इसका ज़िक्र किया. लम्बे समय के बाद अटल जी ने एक इंटरव्यू के दौरान यह राज खोला और कहा कि आज वो जिन्दा हैं तो इसके पीछे राजीव गांधी का सहयोग था.
जाहिर सी बात है कि तब की राजनीति और मौजूदा राजनीति में काफी अंतर है, लेकिन कई नेता आज भी इस बात में यकीन करते हैं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष मिलकर ही देश का कल्याण कर सकते हैं और एक बेहतर समाज की रचना में अहम भूमिका निभा सकते हैं. नितिन गडकरी ऐसे ही नेताओं में शुमार हैं. आखिर वो अटल की राजनीति को आदर्श जो मानते हैं

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पिछले 30 वर्षों से मिशनरी पत्रकारिता करने वाले अखिलेश अखिल की पहचान प्रिंट, टीवी और न्यू मीडिया में एक खास चेहरा के रूप में है। अखिल की पहचान देश के एक बेहतरीन रिपोर्टर के रूप में रही है। इनकी कई रपटों से देश की सियासत में हलचल हुई तो कई नेताओं के ये कोपभाजन भी बने। सामाजिक और आर्थिक, राजनीतिक खबरों पर इनकी बेबाक कलम हमेशा धर्मांध और ठग राजनीति को परेशान करती रही है। अखिल बासी खबरों में रुचि नहीं रखते और सेक्युलर राजनीति के साथ ही मिशनरी पत्रकारिता ही इनका शगल है। कंटेंट इज बॉस के अखिल हमेशा पैरोकार रहे है।

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