अखिलेश अखिल
बिहार सरकार ने राज्य में जातीय जनगणना कराने का फैसला कर लिया है. तमाम राजनीतिक खेल के बाद सीएम नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना को आगे बढ़ाने का ऐलान कर दिया है. इस महाअभियान पर सरकारी खजाने से 500 करोड़ खर्च कर 9 महीने में प्रदेश की करीब 14 करोड़ आबादी की जाति की गिनती की जाएगी. जाति गणना के दौरान आर्थिक गणना भी होगी. गुरुवार को कैबिनेट ने जातीय जनगणना कराने से संबंधित प्रस्ताव को मंजूर कर लिया और इसके साथ ही राज्य में जाति आधारित गणना कराने की प्रक्रिया भी शुरु हो गई.
राज्य के चीफ सेक्रेटरी आमिर सुबहानी ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराने का प्रस्ताव स्वीकृत कर दिया है. जाति आधारित गणना करने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है. जिलों में गणना के सम्पूर्ण काम के लिये जिलाधिकारी यानी डीएम नोडल अधिकारी होंगे.
ग्राम पंचायत समेत उच्च स्तर के किसी भी विभाग के कर्मियों की सेवा सामान्य प्रशासन विभाग इस काम के लिए ले सकेगा. गणना पर 500 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे. बिहार आकस्मिकता निधि से ये राशि खर्च की जाएगी. फरवरी 2023 तक गणना का काम पूरा करने का लक्ष्य है. इस संबंध में 24 घंटे पहले ही सरकार ने सर्वदलीय बैठक आयोजित की थी. जिसमें जातीय जनगणना का निर्णय लिया गया था.
सुबहानी ने बताया कि गणना कराने की पूरी प्लानिंग चल रही है. राज्य के सभी दलों के नेताओं को समय-समय पर जाति गणना की चल रही प्रक्रिया की जानकारी दी जाती रहेगी. इस बारे में कर्नाटक मॉडल का जिक्र भी आया. कहा गया कि कर्नाटक की तरह बिहार सरकार भी ऐसी पहल कर सकती है.
दरअसल, कर्नाटक की सिद्दरमैया सरकार ने 2014 में जातीय जनगणना शुरू की थी. इसका विरोध हुआ तो इसका नाम बदलकर ‘सामाजिक एवं आर्थिक’ सर्वे कर दिया. 2017 में आई इसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हुई, क्योंकि इसमें 192 से अधिक नई जातियां सामने आ गई थीं.