Sunday, September 8, 2024
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तालिबान सरकार में नरक में जीने को अभिशप्त है अफगानिस्तान की महिलाएं !

 

अखिलेश अखिल

 

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने महिलाओं का जीना दूभर कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने महिलाओं पर हो रहे जुर्म को लेकर तालिबान सरकार से सवाल किया और उसे रोकने की बात कही है, लेकिन तालिबान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की सलाह को नकार दिया है. तालिबान सरकार ने कहा है कि यहां इस्लामी सरकार है और इस्लाम में महिलाओं को परदे में तो रहना ही होगा साथ ही उसे कई पाबंदियां भी झेलनी होगी. तालिबान की हालत ये हैं कि बुर्के में भी महिलाये जब बाजार में निकलती है तो उन पर कोड़े बरसाए जा रहे हैं.

सच तो यही है कि तालिबान सरकार में महिलाओं की हालत दुनिया से छिपी नहीं है. 15 अगस्त 2021 को सत्ता में वापसी के बाद तालिबानियों ने महिला अधिकारों बरकरार रखने का वादा किया था, लेकिन उनके फरमानों से तालिबानियों की कथनी और करनी में फर्क साफ नजर आता है. तालिबानी प्रवक्ता अब्दुल कहर बालख ने यूएन की सलाह को नकारते हुए कहा- अफगानिस्तान मुस्लिम आबादी का देश है. इसलिए हमारी सरकार महिलाओं के पर्दे और हिजाब को समाज और संस्कृति के लिए जरूरी मानती है.

पिछले साल अगस्त में तालिबान ने काबुल पर कब्जा करने के बाद महिलाओं के ज्यादातर अधिकार सीमित कर दिए हैं. तालिबान ने काबुल के अलावा अधिकतर महिला स्कूल और कॉलेजों को खोला नहीं है. अगर कहीं प्राथमिक स्कूलों को खोला भी गया है, कई तरह के प्रतिबंध लगाकर उन्हें स्कूल जाने की इजाजत दे रही है. तालिबान ने कंधार समेत कई प्रांतो में स्कूल खोलने की बात सामने आई थी, लेकिन कुछ घंटो बाद ही इन्हें बंद रखने का आदेश जारी कर दिया था.

इसके अलावा तालिबान ने महिलाओं के अकेले फ्लाइट में ट्रेवल करने पर भी रोक लगाई है. उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस जारी न करने के आदेश दिए गए हैं. साथ ही तालिबान ने कई ऑफिसों में महिलाओं के जाने पर भी रोक लगा दी थी. इन प्रतिबंधों के बाद अफगानिस्तान की महिलाओं ने सड़क पर उतर कर तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन भी किए. ये प्रदर्शन अधिकतर काबुल और हैरात जैसे बड़े शहरों में ही हुए थे. इन प्रदर्शनों के बाद कई बार महिलाओं के साथ मारपीट की बात भी सामने आई थी.

Anzarul Bari
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पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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