गुजरात दंगों पर आधारित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर छिड़ी बहस के बीच ही पंचमहल ज़िले की एक अदालत ने मंगलवार को 22 लोगों को सबूत के अभाव में बरी कर चर्चा को और गर्मा दिया है. इन पर गोधरा कांड के बाद हुए सांप्रदायिक नरसंहार से जुड़े एक मामले में अल्पसंख्यक समुदाय के 17 सदस्यों की हत्या का आरोप था. जिनमें दो बच्चे भी शामिल थे.
बचाव पक्ष के वकील गोपाल सिंह सोलंकी ने कहा कि एडिशनल सेशन जज हर्ष त्रिवेदी की अदालत ने सभी 22 अभियुक्तों को बरी कर दिया है, जिनमें से आठ की मामले की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी थी.
सोलंकी ने कहा कि ज़िले के देलोल गांव में दो बच्चों समेत अल्पसंख्यक समुदाय के 17 लोगों की हत्या और दंगा भड़काने के मामले में अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी अभियुक्तों को बरी किया है.
वहीं, अभियोजन पक्ष का कहना है कि पीड़ितों को 28 फ़रवरी, 2002 को मार दिया गया था और सबूत नष्ट करने के इरादे से उनके शवों को जला दिया गया था.
देलोल गांव में हिंसा के बाद हत्या और दंगे से संबंधित आईपीसी की धाराओं के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी. लेकिन एक अन्य पुलिस निरीक्षक ने घटना के लगभग दो साल बाद नए सिरे से मामला दर्ज किया और दंगों में शामिल होने के आरोप में 22 लोगों को गिरफ़्तार किया था.
सोलंकी ने कहा कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत इकट्ठा नहीं कर सका और यहां तक कि गवाह भी मुकर गए. जबकि बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि पीड़ितों के शव कभी नहीं मिले.
पंचमहल ज़िले के गोधरा कस्बे के पास 27 फ़रवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी में आग लगने की दर्दनाक घटना पेश आई थी. इसके एक दिन बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक नरसंहार शुरू हो गया था. बोगी जलने की घटना में 59 यात्रियों की मौत हो गई थी, जिनमें से अधिकांश ‘कारसेवक’ थे और अयोध्या से लौट रहे थे.
जिसके बाद गुजरात के अलग अलग शहरों में संप्रदायिक दंगों में एक अनुमान के मुताबिक़ 1000 से अधिक लोग मारे गए.