अखिलेश अखिल
पिछले 17 साल से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और उसके कार्यप्रणाली से सुप्रीम कोर्ट आहत है. अदालत ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर जो बातें कही है, वह सरकार की मनशा की पोल तो खोलती ही है, चुनाव आयुक्तों की कहानी को भी दर्शाती है. मौजूदा दौर के चुनाव आयुक्तों के कार्य से नाखुश सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि वह मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर टी.एन शेषन की तरह सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति को चाहता है ताकि चुनाव आयोग की गरिमा बनी रहे. कोर्ट ने कहा कि संविधान ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्तों के नाजुक कंधों पर बहुत जिम्मेदारियां सौंपी हैं.
न्यायमूर्ति के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि उसका प्रयास एक प्रणाली बनाने का है, ताकि सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति मुख्य निर्वाचन आयुक्त बने. पीठ ने कहा, ‘‘अनेक मुख्य निर्वाचन आयुक्त हुए हैं, लेकिन टी.एन शेषन एक ही हुए हैं. तीन लोगों जिनमे एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त के कमजोर कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी है. हमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को चुनना होगा. सवाल है कि हम सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को कैसे चुनें और कैसे नियुक्त करें. ’’जाहिर है कि शेषन के बाद जितने भी चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त चुने गए हैं, सर्वश्रेष्ठ नहीं रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की राय है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी शामिल किया जाए. इससे नियुक्ति प्रक्रिया में तटस्थता आएगी. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रणाली में सुधार की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी टी रविकुमार की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि संविधान ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त के नाजुक कंधों पर बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी हैं.
जस्टिस जोसेफ ने कहा, “योग्यता के अलावा, जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि आपको किसी दृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति की जरूरत है, कोई ऐसा व्यक्ति जो खुद को दबने न दे. ऐसे में सवाल यह है कि इस व्यक्ति की नियुक्ति कौन करेगा ? नियुक्ति समिति में मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति होने पर कम से कम दखल देने की व्यवस्था होगी. हमें लगता है कि उनकी मौजूदगी से ही संदेश जाएगा कि कोई गड़बड़ी नहीं होगी. हमें सबसे अच्छा आदमी चाहिए. और इस पर कोई मतभेद नहीं होना चाहिए. जजों के भी पूर्वाग्रह होते हैं. लेकिन कम से कम आप उम्मीद कर सकते हैं कि तटस्थता होगी.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं पर टीएन शेषन कभी-कभार ही होते हैं. जानकारी के लिए बता दें कि टीएन शेषन केंद्र सरकार में पूर्व कैबिनेट सचिव थे और उन्हें 12 दिसंबर, 1990 को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया था. 12 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक के कार्यकाल में उन्हें पोल पैनल में नियुक्त किया गया था. 10 नवंबर, 2019 को उनका निधन हो गया.
भारत में चुनाव आयोग की स्थापना 1950 में की गई थी, ताकि भारत में निष्पक्ष चुनाव हो सके. लेकिन सच तो यही है कि 1990 तक चुनाव आयोग की भूमिका मात्र एक चुनाव पर्यवेक्षक की ही रही. लेकिन जब 1990 में शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बनाये गए चुनाव आयोग की भूमिका बढ़ गई और फिर नेताओ पर लगाम भी लगने शुरू हो गए. बूथ लूट की कहानी बंद हुई और मतदाताओं को पैसे के दम खरीदने का चलन भी कम हो गया. शेषन की यह बड़ी ताकत रही. उन्होंने देश की चुनाव प्रक्रिया को बदल दिया. इतना ही नहीं वह पहचान पत्र, आदर्श आचार संहिता भी लेकर आये और चुनाव के खर्च की सीमा भी तय की. शेषन के डर से बड़े-बड़े नेता भी भागते रहे.
शेषन सरकार से कभी डरे नहीं. सरकार से उनकी लड़ाई होती रही. लेकिन वो अपने काम को आगे बढ़ाते रहे. साल 1996 में चुनाव सुधार के लिए उन्हें रेमन मैग्सेसे अवार्ड भी दिए गए. इसके बाद 1997 में वो राष्ट्रपति उम्मीदवार भी बने लेकिन के आर नारायणन से हार गए.