मोरबी की घटना ने अब सियासी रंग ले लिया है. चुनावी मैदान में खड़ी पार्टियां मौतों पर सियासी रोटियां सेंकने की बात नही करती, लेकिन परोक्ष रूप से अब इसे चुनावी खेल से जोड़ा जा रहा है. हादसा के शिकार हुए लोगों के परिजनों को कितना न्याय मिलेगा ? यह कोई नहीं जानता, लेकिन यह हादसा बीजेपी के गले की हड्डी बनता जा रहा है. ऐन चुनाव के वक्त इस हादसे ने बीजेपी को घेर लिया है और सरकार के खेल को भी उजागर कर दिया है. खासकर कांग्रेस इस घटना पर बीजेपी को छोड़ने वाली नही लगती. जिस तरह से पुल मरम्मत का ठेका एक अनजान कंपनी को दिया गया और फिर पुल का फिटनेस सर्टिफिकेट मिले बगैर पुल को खोला गया. अब बीजेपी इस मामले में फंसती जा रही है.
मोरबी पुल को खोलने से पहले न तो फ़िटनेस सर्टिफिकेट लिया गया और न ही लोड टेस्टिंग की गई. यह गलती वहाँ के स्थानीय प्रशासन की भी है और बहुत हद तक स्थानीय सरकार की भी. बहरहाल, मोरबी की घटना पर सभी पार्टियाँ राजनीति कर रही है.
दरअसल, जनता जब कष्ट में होती है, परेशानी में होती है तब नेता और राजनीतिक दल चमक कर ऊपर उठने लगते हैं. अफ़सर प्रमोशन पाते हैं और सहायता समितियाँ चंदे के रुपए बटोरती हैं. अकाल हो, दंगा हो या मोरबी जैसा कोई बड़ा हादसा हो, नेता, अफ़सर और समितियाँ ही फ़ायदे में रहती हैं. उनके हिस्से में केवल आंसू ही आते हैं जिनके तीन तीन बेटे पुल के नीचे दब के मरते हैं या जिनकी इकलौती बेटी पुल से गिरकर डूब जाती है.
मोरबी हादसे के बाद बीजेपी राहत कार्यों की प्रशंसा करती है. नौ लोगों की गिरफ्तारी की बात करती है, लेकिन यह चर्चा करना ही नहीं चाहती कि दोषी कंपनियों के नाम एफआईआर में क्यों नहीं हैं. न पुल का संचालन करने वाली कंपनी का, न रेनोवेशन करने वाली कंपनी का.
हालाँकि जब कांग्रेस पुल ढहने की जाँच में लीपापोती की बात करती है, तो वह अपने ही चक्रव्यूह में फँस जाती है. क्योंकि उस पर आरोप दोहराया जाता है कि भोपाल गैस कांड के दोषी वारेन एंडरसन को रातोरात देश से भगाने वाले तो आप ही थे. इसलिए आपको ऐसे मामलों में दूसरों पर आरोप लगाने का कोई अधिकार नहीं है. सही भी है और जगज़ाहिर भी कि भोपाल गैस कांड में कांग्रेस ने जो लीपापोती की, उससे बड़ी गलती तो कोई हो ही नहीं सकती.
बहरहाल, राजनीतिक पार्टियाँ हों या किसी भी दल की सरकार, अपनी गलती मानने को कभी तैयार नहीं होंती. सरकारें अपने चेहरे पर नया नक़ाब पहन लेती हैं ताकि इस नए चेहरे के साथ नई बात की जा सके, लेकिन सवाल यह उठता है कि कोई भी तंत्र जब अपने चेहरे को छिपाने के लिए एक और चेहरा ओढ़ लेता है, उस पर वो सब कैसे आस्था या विश्वास रख सकते हैं, जो तंत्र के चरित्र और स्वभाव से भली भाँति परिचित हैं.
कुल मिलाकर दुर्भाग्य से मोरबी का हादसा हो गया और इस वजह से सभी राजनीतिक पार्टियों में एक तरह की नई ऊर्जा आ गई है, क्योंकि दो-तीन दिन में गुजरात चुनाव घोषित होने वाले हैं. ये बात और है कि पहले संभावना थी कि एक या दो नवंबर को चुनाव की घोषणा हो जाएगी, लेकिन मोरबी हादसे के कारण यह संभावना दो-चार दिन और टल जाएगी, ऐसा लगता है.
पीएम मोदी ने मोरबी के सिविल अस्पताल में ब्रिज हादसे में घायल लोगों से मुलाकात की और उनका हालचाल जाना. हालाँकि इस हादसे पर प्रधानमंत्री मोदी मंगलवार को मोरबी गए. वो वहाँ घटनास्थल पर भी गए और अस्पताल जाकर घायलों से भी मिले. उनके हाल जाने. अधिकारियों की मीटिंग लेकर प्रधानमंत्री ने राहत सामग्री और मुआवज़े के वितरण में तेज़ी लाने के निर्देश दिए हैं.
हालाँकि हादसे के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में भी जल्दी दिखाने को प्रधानमंत्री ने ज़रूर कहा होगा, लेकिन क्या कहा, यह बात अभी तक बाहर नहीं आ पाई है.