कांग्रेस की माया भला कौन जाने ! एक तरफ राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं तो दूसरी तरफ दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष चुनाव को लेकर खेल जारी है. पहले सोनिया गाँधी की पसंद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत माने गए लेकिन वो राजस्थान छोड़ने को तैयार नहीं हैं और वो किसी भी सूरत में सचिन पायलट के हाथ राजस्थान की बागडोर देना नहीं चाहते. पिछले दिनों इसको लेकर गहलोत की काफी किरकिरी भी हुई है. यह बात और है कि गहलोत आज भी अध्यक्ष पद की रेस में हैं लेकिन जिस तरह से दिग्विजय सिंह को दिल्ली बुलाया गया है उसके मायने भी किसी से छुपे नहीं हैं. सियासी गलियारों में अब चर्चा शुरू हो गई कि दिग्विजय सिंह भी अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ सकते हैं. दिग्विजय सिंह पहले भी इसकी तरफ इशारा कर चुके हैं.
दिग्विजय सिंह साल 1987 से ही गांधी परिवार के करीबी रहे हैं, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष राजीव गांधी ने उन्हें बुलाकर एमपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था. राजीव की मौत के बाद दिग्विजय, सोनिया गांधी के विश्वासपात्र बने और उन्हें राजनीति की बारीकियां समझने में मदद की. राजनीति में सोनिया की एंट्री का औपचारिक ऐलान दिग्विजय ने ही किया था. इसके बाद जब राहुल गांधी राजनीति में आए तो दिग्विजय उनके मार्गदर्शक की भूमिका में आ गए. बीच-बीच में कई नेताओं ने पार्टी में गांधी परिवार के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन दिग्विजय न केवल साथ खड़े रहे बल्कि विरोधियों के खिलाफ अपनी आवाज भी बुलंद करते रहे. वो अध्यक्ष बन भी गए तो इसकी संभावना बेहद कम है कि आगे चलकर गांधी परिवार के लिए चुनौती बनें या पार्टी में अलग पावर सेंटर बनने की कोशिश करें.
दिग्विजय अपने बयानों के चलते अक्सर विवादों में रहते हैं. क्योंकि वो बीजेपी और उसके हिंदुत्व के खिलाफ मुखर होकर बोलते हैं. बीजेपी नेता अक्सर उन्हें अल्पसंख्यक-समर्थक बताकर अपना निशाना बनाते हैं, लेकिन दिग्गी कभी अपना आपा नहीं खोते. वो हर आरोप का शालीन तरीके से, लेकिन मजबूती से जवाब देते हैं. दिग्विजय की छवि भी साफ है. उन पर कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, लेकिन आज तक कुछ सिद्ध नहीं हुआ.
दिग्विजय दस साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वो लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं. लोकसभा और राज्यसभा का सदस्य रहने के अलावा वो पार्टी की केंद्रीय कार्यसमिति के भी वर्षों से सदस्य हैं. वो कई राज्यों में कांग्रेस के प्रभारी रहे हैं. पार्टी के कई अभियानों में उनकी अहम भूमिका रही है. फिलहाल चल रही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के भी वे इंचार्ज हैं. उनकी प्लानिंग और रणनीति का नतीजा है कि इस यात्रा को उम्मीद से ज्यादा समर्थन मिल रहा है.
मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय सिंह ने एक बार कहा था कि चुनाव वोट से नहीं, पॉलिटिकल मैनेजमेंट से जीते जाते हैं. इसके कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाई थी और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से विदाई का भले उन्हें बड़ा कारण माना जाता हो, लेकिन यह भी सच है. दिग्गी राजा के समर्थन के बूते ही कमलनाथ भी मुख्यमंत्री बन सके. वो हर राजनीतिक चुनौती को मैनेज करने में सक्षम हैं, इसे कई बार साबित कर चुके हैं. दिग्विजय सिंह की पहुँच सभी दलों के बीच है और उनके चाहने वाले भी हर दल में हैं. ऐसे में लग रहा है कि कांग्रेस की आगामी राजनीति के लिए दिग्विजय सिंह काफी अहम साबित हो सकते हैं. देखना ये है कि कांग्रेस आगे क्या कदम उठाती है और किसे गद्दी पर बैठाती है.