प्रपंची राजनीति कब किस करवट बैठ जाए आखिर किसे पता ! कौन किसको दगा दे, इसे कौन जाने ! चरित्रहीन राजनीति का यही चरित्र है जिसमे सभी पार्टियां जीती है और इसी चरित्र को ढोते हुए सत्ता सुख भी भोगती है. राजनीति का यह चरित्र सभी पार्टियां अपनाये हुए है. कोई किसी पर सवाल खड़ा नहीं कर सकता. जनता सरकार और अपना नेता चुनती है लेकिन सरकार हड़पने और सरकार गिराने में कोई भी पार्टी जनता से राय नहीं लेती. आजादी के बाद लोकतंत्र की यह खूबी लुभाती भी है और भरमाती भी है.
तो कहानी यह है कि नीतीश कुमार अब खुलकर बीजेपी के सामने आ गए हैं. उसी तरह जैसे वो पहले कभी नरेंद्र मोदी के खिलाफ आ गए थे. हालांकि अभी से खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार तो नहीं बता पा रहे हैं. लेकिन पीगें फूट रही हैं. जैसे रातभर पानी में पड़े रहे मूंग में फूटती हैं. अब वो साफ कह रहे हैं कि उनके पास विपक्षी दलों के खूब फोन आ रहे हैं. वो अब तमाम विपक्षी दलों को एक साथ, एक मंच पर लाने का प्रयास करेंगे जी-जान से. नीतीश आए दिन नेताओं पर पड़ रहे छापों पर भी गुस्सा हैं. उनका कहना है- छापे वालों को जनता माफ नहीं करेगी.
दरअसल, नीतीश के इस तरह गुस्सा होने के कई कारण हैं. नया कारण है बुधवार को विधानसभा में उनके बहुमत साबित करने के दिन ही महागठबंधन के कई साथियों पर सीबीआई का ताबड़तोड़ छापा. इस छापेमारी की चपेट में लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव भी आए. लोगों को अब पता चला कि दिल्ली में भी तेजस्वी का लम्बा- चौड़ा कारोबार है. मॉल भी बन रहा है. उस पर भी छापा पड़ा.
सवाल उठता है कि छापेमारी उसी दिन क्यों जब विधानसभा में विश्वासमत हासिल करना हो. हो सकता है केंद्र सरकार बिहार की जनता को बताना चाहती हो कि जिन लोगों ने नई सरकार बनाई है. वो और उनके साथी कितने भ्रष्ट हैं. हालांकि बिहार की जनता राजनीतिक रूप से बहुत सजग है और वह ये सब पहले से जानती ही होगी. ऐसे में सीबीआई के छापे कहीं बीजेपी का ही नुकसान कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.
इतिहास बताता है कि कांग्रेस के पैर जब से बिहार से उखड़े, उसके बाद वहां की जनता ने अक्सर स्थानीय राजनीतिक दलों पर ही भरोसा जताया है. राष्ट्रीय दलों में उसका पूरा विश्वास तो नहीं ही रहा. बिहार के लोग दरअसल उन्हीं नेताओं को पसंद करते हैं जो उनकी तरह बोले. उनकी ही तरह दिखे. बीजेपी के पास फिलहाल ऐसे स्थानीय नेताओं की कमी है. सच है, सीबीआई जैसी एजेंसियों का मनचाहा उपयोग हर दल की सरकार में हुआ है, लेकिन समय की नजाकत हमेशा देखी गई.
बहरहाल, नीतीश का गुस्सा कम नहीं हुआ और उधर हैदराबाद में ओवैसी तमतमा गए हैं. वहां बीजेपी विधायक राजा सिंह के खिलाफ ओवैसी ने सड़कें जाम कर दी हैं. उनका कहना है कि जब तक राजा सिंह को दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जाता, उनका और उनके लोगों का प्रदर्शन रुकने वाला नहीं है. राजा सिंह वही हैं जिन्होंने पैगम्बर मुहम्मद साहब (PBUH) पर टिप्पणी की थी. जाने क्यों, बीजेपी ऐसे लोगों की गलत बयानबाजी को रोक नहीं पाती! हालांकि संघ प्रमुख जब-तब हिदायत देते रहते हैं, लेकिन सुनते या मानते कम ही लोग हैं. अब विधायक के पद पर बैठे लोग ही गलत बयानी पर उतर आएं तो कोई क्या कर लेगा!
राजा सिंह हैदराबाद की गोशामहल विधानसभा से बीजेपी के विधायक हैं. ऑडियो और वीडियो कैसेट बेचने से लेकर राजनीति में आने के बाद उन पर अब तक 75 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं. इनमें 30 मामले धार्मिक भावनाएं आहत करने और दो समुदायों के बीच वैमनस्य भड़काने से जुड़े हैं. 17 मामले दंगा करने और खतरनाक हथियार रखने से जुड़े है.
खैर ओवैसी इसलिए गुस्सा हैं क्योंकि गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों बाद राजा सिंह को जमानत पर रिहा कर दिया गया. ओवैसी को रास्ता मिल गया. हजारों लोग उनके समर्थन में प्रदर्शन करते हुए गला काटने, सिर धड़ से अलग करने के खुलेआम नारे लगा रहे हैं.
विधायक राजा सिंह पैगंबर मुहम्मद साहब (PBUH)पर विवादित टिप्पणी करने के बाद गिरफ्तार कर लिए गए. कुछ ही घंटे बाद जमानत भी मिल गई. राजा ने तो अपनी राजनीति चमका ली. अब बारी है हैदराबाद के सांसद ओवैसी की. ओवैसी राजा की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. इस विरोध के जरिए ओवैसी अब अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं.
बीजेपी विधायक राजा सिंह अपनी राजनीति चमका चुके और अब ओवैसी उनका विरोध करके अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं. बयानबाजी जारी है, राजनीति जारी है. मर्यादा, नैतिकता और ईमानदार राजनीति कहीं खो गई है. जनता को स्वच्छ राजनीति और ईमानदार राजनेता दरकार है. इच्छा कब पूरी होगी? होगी भी या नहीं, फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता.