इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी में मदरसों में मौलवी, आलिम, मुंशी की पढ़ाई की जगह राज्य के दूसरे कॉलेजों में तकनीकी व विज्ञान की दी जा रही शिक्षा मदरसों में भी दिए जाने की मांग को लेकर दाखिल एक याचिका को खारिज कर दिया है. शुक्रवार के दिन खारिज इस याचिका को कोर्ट ने गैर पोषणीय बताया है. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने हाईकोर्ट की वकील सहर नकवी की तरफ से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए पारित किया है.
मदरसों में तकनीकी व विज्ञान की शिक्षा की मांग को लेकर याची अधिवक्ता ने इससे पहले भी हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. जिसे दोबारा याचिका दाखिल करने की कोर्ट से अनुमति लेते हुए वापस ले लिया था. इसके बाद इस याचिका को एक बार फिर इसी मुद्दे को लेकर दाखिल की गई थी. कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में याची अधिवक्ता का कहना था कि मदरसों में पढ़ रहे मुस्लिम बच्चे केवल अरबी, फारसी, उर्दू की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. इसलिए उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए एक ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो अन्य कॉलेजों में दी जा रही है.
याची का कहना यह भी था कि जब तक मदरसों में तकनीकी व वैज्ञानिक शिक्षा नहीं दी जाएगी. तब तक बच्चों को मदरसों की पढ़ाई से कुछ भी हासिल नहीं होगा. राज्य के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कोर्ट को बताया कि मदरसों में दी जा रही मौलवी, मुंशी व आलिम की शिक्षा यूपी बोर्ड के जूनियर हाईस्कूल व इंटरमीडिएट के बराबर है. इतना ही नहीं उन्होंने सरकार की तरफ से मदरसों में दी जा रही शिक्षा व इससे जुड़े कानूनी पहलुओं को भी कोर्ट में रखकर ध्यान खींचना चाहा, लेकिन अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जनहित याचिका को गैर पोषणीय मानते हुए खारिज कर दिया.