जिस ईडी यानी इंफोर्स्मेंट डिपार्टमेंट को कांग्रेस सरकार के काल में मजबूत किया गया था अब वही ईडी कांग्रेस नेताओं के गले की फांस बन गई है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी आज ईडी के लपेटे में हैं. नेशनल हेराल्ड केस में ईडी राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी और हेराल्ड की संपत्ति के साथ क्या व्यवहार करती है इसपर सबकी निगाहें टिकी है. लेकिन एक दूसरा सच ये भी है कि इसी ईडी के रडार पर कांग्रेस के दर्जन भर नेता भी हैं. जिसने ईडी को मजबूत बनाया वह पी चिदंबरम भी ईडी के जाल में फंस गए हैं. राहुल गाँधी पर ईडी की वक्र दृष्टि पड़ने के बाद इस सरकारी संस्थान का शोर अब शहर की दहलीज से पार गांव तक पहुँच गया है.
भारत सरकार की जितनी भी जांच एजेंसियां है. उनमे ईडी आज सबसे ज्यादा चर्चा में है. ईडी और सरकार की अन्य एजेंसियों में क्या फर्क है. इस पर हम चर्चा करेंगे लेकिन सबसे पहले हम उन कांग्रेस नेताओं की यहां बात करेंगे जो ईडी के घेरे में हैं और उसके जाल से निकल नहीं पा रहे हैं.
ईडी के जाल में फंसे नेताओं में सबसे ज्यादा चर्चित मामला अभी नेशनल हेराल्ड केस का है. सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी इस मामले में ईडी के जाल में हैं. बता दें कि बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 2012 में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के ही मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे पर घाटे में चल रहे नेशनल हेराल्ड अखबार को धोखाधड़ी और पैसों की हेराफेरी के जरिए हड़पने का आरोप लगाया था. अगस्त 2014 में ईडी ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया. दिसंबर 2015 में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने सोनिया और राहुल गांधी समेत सभी आरोपियों को जमानत दे दी. अब ईडी ने इसी मामले की जांच के लिए सोनिया और राहुल को समन जारी किया. ईडी अभी इसी मामले में राहुल गाँधी से पूछताछ कर रही है.
ईडी के रडार पर पंचकुला लैंड केस मामले में भूपिंदर सिंह हुड्डा भी हैं. ईडी ने 26 अगस्त को हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा और कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा के खिलाफ एजेएल मामले में चार्ज शीट दायर की थी. हुड्डा पर आरोप है कि उन्होंने 64.93 करोड़ रुपए का प्लॉट एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड यानी एजेएल को 69 लाख 39 हजार रुपये में दिया था. पंचकुला स्थित इस भूखंड को 2018 में ईडी ने कुर्क कर लिया था. बता दें कि एजेएल नेशनल हेराल्ड अखबार का प्रकाशन करता था.
ईडी के फांस में आय से अधिक संपत्ति के मामले में कर्नाटक से दिग्गज कांग्रेसी नेता और पूर्व मंत्री डीके शिवकुमार भी हैं. 3 सितंबर 2019 को ईडी ने कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व मंत्री डीके शिवकुमार को टैक्स चोरी और आय से अधिक संपत्ति के मामले में गिरफ्तार किया था. इससे पहले उनसे 2 दिन तक पूछताछ हुई थी. इसी तरह आईएनएक्स मीडिया मामले में पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्तिकेय भी ईडी के जाल में फंसे हैं.
ईडी जमीन खरीद घोटाला मामले में प्रियंका गाँधी के पति रॉबर्ट वाड्रा की भी जाँच कर रही है. 2007 में रॉबर्ट वाड्रा ने स्काइलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड के नाम से एक कंपनी शुरू की थी. रॉबर्ट और उनकी मां मौरीन इसके डायरेक्टर थे. आरोप है कि इस कंपनी के नाम पर वाड्रा ने बीकानेर में कौड़ियों के भाव में जमीन खरीदी, फिर ऊंचे दाम पर बेच दी. ईडी ने मनी वाड्रा पर लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया. इस मामले में रॉबर्ट वाड्रा से अब तक 11 से ज्यादा बार पूछताछ हो चुकी है. इसी तरह से स्टर्लिंग बायोटेक बैंक धोखाधड़ी मामले में फैसल पटेल भी ईडी के रडार पर हैं. गुजरात के कारोबारी चेतन और नितिन संदेसरा के खिलाफ स्टर्लिंग बायोटेक बैंक धोखाधड़ी मामले में ईडी ने कांग्रेस नेता अहमद पटेल के बेटे फैसल और दामाद इरफान सिद्दीकी से पूछताछ की थी.
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत भी ईडी जांच के दायरे में हैं. अशाोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत से फर्टिलाइजर घोटाले में ईडी ने 2021 में पूछताछ की थी. 2020 में ही ईडी ने अग्रसेन गहलोत के खिलाफ केस दर्ज किया था.
इसी तरह से ईडी ने कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला में सुरेश कलमाडी के खिलाफ केस दर्ज किया था. ईडी ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी पर हवाला ऑपरेटरों की मदद से प्रॉपर्टी जुटाने के आरोप में केस दर्ज किया है. ईडी ने इस मामले में रतुल पुरी को गिरफ्तार भी किया था.
अब एक नजर मनी लॉन्ड्रिंग पर. मनी लॉन्ड्रिंग बड़ी मात्रा में अवैध पैसे को वैध पैसा बनाने की प्रक्रिया है. सीधे शब्दों में कहें तो ब्लैक मनी को वाइट करने को मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं. ब्लैक मनी वो पैसा है, जिसकी कमाई का कोई स्रोत नहीं होता, यानी उस पर कोई टैक्स नहीं दिया गया है. मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ऐसा लगता है कि पैसा किसी लीगल सोर्स से आया है, लेकिन वास्तव में पैसे का मूल सोर्स कोई आपराधिक या अवैध गतिविधि होती है. धोखेबाज इस प्रोसेस का इस्तेमाल अवैध रूप से इकट्ठा पैसे को छिपाने के लिए करते हैं.
सीधे शब्दों में कहें तो मनी लॉन्ड्रिंग पैसे के सोर्स को छुपाने की प्रोसेस है, जो अक्सर अवैध गतिविधियों जैसे ड्रग्स की तस्करी, भ्रष्टाचार, गबन या जुए से मिलता है. यानी अवैध तरीके से मिले पैसे को एक वैध स्रोत में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को ही मनी लॉन्ड्रिंग कहते हैं. मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए ड्रग डीलर से लेकर बिजनेसमैन, भ्रष्ट अधिकारी, माफिया, नेता करोड़ों से लेकर अरबों रुपए तक के फ्रॉड करते हैं.
मजेदार बात यह कि इस कानून को बनाया तो अटल सरकार ने 2002 में था, लेकिन इसे धार देकर 2005 में लागू किया मनमोहन सरकार के वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने. अब यही कानून कांग्रेसी नेताओं के लिए गले का फंदा बना हुआ है. ईडी को अरेस्ट करने के लिए परमीशन की जरूरत नहीं नहीं होती और वह कर सकती है संपत्ति भी जब्त.
मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में जमानत की 2 सख्त शर्तें हैं. पहली-आरोपी जब भी जमानत के लिए अप्लाई करेगा तो कोर्ट को सरकारी वकील की दलीलें जरूर सुननी होंगी. दूसरी – इसके बाद कोर्ट अगर इस बात को लेकर संतुष्ट होगा कि जमानत मांगने वाला दोषी नहीं है और बाहर आने पर ऐसा कोई अपराध नहीं करेगा, तभी जमानत मिल सकती है. यानी जमानत केस की सुनवाई से पहले ही अदालत को ये तय करना पड़ेगा कि जमानत मांगने वाला दोषी नहीं है. इस कानून के तहत जांच करने वाले अफसर के सामने दिए गए बयान को कोर्ट सबूत मानता है, जबकि बाकी कानूनों के तहत ऐसे बयान की अदालत में कोई वैल्यू नहीं है.